Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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अनुशासन में रहना सीखो
औद्योगिक क्षेत्र में, वह हर जगह अपना अलग ही
स्थान बनायेगा, उसका व्यक्तित्व अलग चमकेगा, __ युवा वर्ग को आज सबसे पहली जरूरत है
सबको प्रभावित भी करेगा; और सभी क्षेत्रों में अनुशासित रहने की, संगठित रहने की । छोटे-छोटे
प्रगति, उन्नति एवं सफलता भी प्राप्त करेगा। स्वार्थों के कारण, प्रतिस्पर्धा के कारण, जहाँ युवक अप परस्पर टकराते हैं, एक-दूसरे की बुराई और एक- अनुशासन भी कई प्रकार के हैं सबसे पहला दूसरे को नीचा दिखाने का काम करते हैं, वहाँ और सबसे आवश्यक अनुशासन है- 'आत्मानुशासन।' कभी भी निर्माण नहीं हो सकता, नवसृजन नहीं जिसने अपने आप पर अनुशासन करना सीख लिया हो सकता।
वह संसार में सब पर अनुशासन कर सकता है और
. सब जगह सफल हो सकता है। ___अनुशासन, प्रगति का पहला पाठ है । जो स्वयं । अनुशासन में रहना जानता है, वह दूसरों को भी आत्मानुशासन का मतलब है-अपनी अनावअनुशासित रख सकता है । जहाँ सब मिलकर एक- श्यक इच्छाओं पर, आकांक्षाओं पर, गलत आदतों जुट होकर काम करते हैं, वहाँ प्रगति, समृद्धि और पर, और उन सब भावनाओं पर बुद्धि का नियन्त्रण सत्ता स्वयं उपस्थित होती है। तथागत बुद्ध ने कहा रखना, जिनसे व्यर्थ की चिंता, भाग-दौड़, परेशानी, था-'जब तक वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय परस्पर हानि और बदनामी हो सकती है । मनुष्य जानता है । मिलकर विचार करेंगे, वद्धजनों का परामर्श मानेंगे, कि मेरी यह इच्छा कभी पूरी होने वाली नहीं, (६) एक-दूसरे का सन्मान करेंगे और संगठित-एकमत या मेरी इस आदत से मुझे बहुत नुकसान हो सकता होकर कोई कार्य करेंगे, तब तक कोई भी महा- है, बोलने की, खाने की, पीने की, रहन-सहन की, शक्ति इनका विनाश नहीं कर सकती।
ऐसी अनेक बुरी आदतें होती हैं, जिनसे सभी तरह
की हानि उठानी पड़ती है, आर्थिक भी, शारीरिक भारत जैसे महान राष्ट्र के लिए भी आज यही भी। कभी-कभी इच्छा व आदत पर नियन्त्रण न बात कही जा सकती है, यहाँ का युवावर्ग यदि अपने कर पाने से मनुष्य अच्छी नौकरी से हाथ धो बैठता वृद्धजनों का सन्मान करता रहेगा, उनके अनुभव से है, अपना स्वास्थ्य चौपट कर लेता है और धन लाभ लेता रहेगा, उनका आदर करेगा और स्वार्थ बर्बाद कर, दर-दर का भिखारी बन जाता है, अतः की भावना से दूर रहकर धर्म व राष्ट्रप्रेम की जीवन में सफल होने के लिए 'आत्मानुशासन' सबसे । भावना से संगठित रहेगा, एक-दूसरे को सन्मान महत्त्वपूर्ण गुर है । देगा तो वह निश्चित ही एक दिन संसार की महा
आत्मानुशासन साध लेने पर, सामाजिक अनुशक्ति बन जाएगा । कोई भी राष्ट्र इसे पराजित तो शासन, नैतिक अनुशासन और भावनात्मक अनुशाक्या टेढ़ी आंख से भी देखने की हिम्मत नहीं करेगा सन, स्वतः सध जाते हैं, अतः युवा वर्ग को सर्वप्रथम अतः सर्वप्रथम युवावर्ग को 'अनुशासन' में रहने की
भगवान् महावीर का संदेश पद-पद पर स्मरण आदत डालनी चाहिए। अनुशासित सिपाही की रखना चाहिए-'अप्पादन्तो सुही होई' अपने र भांति, संगठित फौज की भांति उसे अपनी जीवन
आप पर संयम करने वाला सदा सुखी रहता है। शैली बनानी चाहिए।
अपनी भावना पर, अपनी आदतों पर और अपनी ___ जो व्यक्ति अनुशासित जीवन जीना सीख लेता हर गतिविधि पर स्वयं का नियन्त्रण रखे । है, वह चाहे राजनैतिक क्षेत्र में रहे, धार्मिक क्षेत्र पाँच आवश्यक गुण में रहे, प्रशासनिक क्षेत्र में रहे, या व्यापारिक, यह माना कि 'युवा' आज संसार की महान
चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
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