Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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परम्परा-वह मध्य कड़ी है, जिससे अतीत इतिहास का एक छोर बंधा है, तो वर्तमान और भविष्य का दूसरा छोर भी बंधा रहता है। परम्परा की परिभाषा ही है-जो चलती आई है, चलती रहेगी।
जैन परम्परा अपने आप में अत्यन्त गौरव मंडित रही है।
समाज, राष्ट्र के नवजागरण संदेश के साथ मानवता का कल्याणोन्मुखी प्रवाह-निरंतर-निरंतर बहता रहता है, अनेक स्रोतों में ।
प्रस्तुत खण्ड में विविध राष्ट्रीय सन्दर्भो में जैन परम्परा की परिलब्धियों पर एक सार्थक परिचर्चा है, पर्यवेक्षण है और प्रतिपत्ति है, विद्वान विचारकों की अपनी-अपनी दृष्टि
से....
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