Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि दिनकर ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात लिखी है
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो । जहाँ नहीं सामर्थ्य शोध की, क्षमा वहाँ निष्फल है । गरल घूंट पी जाने का विष है वाणी का छल है ॥
जैन आगम साहित्य में ऐसे सैकड़ों प्रसंग हैं जो क्षमा के महत्व को उजागर करते हैं । गजसुकुमाल मुनि जो एकान्त शान्त स्थान पर ध्यानमुद्रा में खड़े थे । सोमिल ने उन्हें देखा और वह क्रोध से तिलमिला उठा । इस दुष्ट ने मेरी पुत्री के साथ विवाह करने का सोचा था पर यह साधु बन गया है । इसने मेरी पुत्री के साथ छल किया है । अब मैं इसे दिखाता हूँ इस छल का चमत्कार । क्रोध से अन्धे बनकर उसने गीली मिट्टी की सिर पर पाल बाँधी और उसमें खैर के अंगारे रख दिये । यदि गजसुकुमाल मुनि आँख उठाकर भी देख लेते तो वह वहीं पर जलकर भस्म हो जाता, पर उस क्षमा के देवता ने क्षमा का जो ज्वलन्त आदर्श उपस्थित किया वह किससे छिपा हुआ है ? मेतार्य मुनि की कहानी, आर्य स्कन्दक मुनि का पावन प्रसंग सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है जब हम उन पावन प्रसंगों को पढ़ते हैं तब हमारा हृदय श्रद्धा से नत हो जाता है ।
हमारे श्रद्धेय सद्गुरुणीजी श्री सोहनकुँवरजी महाराज क्षमा की साक्षात् मूर्ति थे। मैंने अनेकों बार देखा कि कैसा भी कटु से कटु प्रसंग आने पर भी उनका चेहरा गुलाब के 'फूल की तरह सदा खिला रहता था । कटु बात का भी मधुर शब्दों में उत्तर देती थीं । उनकी सहिष्णुता, नम्रता, सरलता का जब भी स्मरण आता है तब मेरा हृदय श्रद्धा से . नत हो जाता है ।
हमें जैनधर्म जैसा पवित्र धर्म मिला है इस धर्म का यही पावन सन्देश है कि हम कषाय को कम करें । कषाय भव भ्रमण का कारण है । संन्यासी
सप्तम खण्ड : विचार - मन्थन
Jain Hon Internation
की तरह हम भी अनन्त काल के उन मित्रों को, जो हमारे साथ अत्यन्त अविकसित अवस्था निगोद में भी रहे हैं और नरक में भी उन्होंने हमारा साथ नहीं छोड़ा, न देवलोक में ही, वे हमारे से बिछुड़े । मित्र वनकर रहे, पर उन्होंने सदा दुश्मनों का पार्ट अदा किया। लेकिन हम भूल से उन्हें मित्र मानते रहे ।
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन मार्ग में बैठे हुए थे । एक व्यक्ति ने नसीरुद्दीन को पूछा कि अमुक गांव कितना दूर है ? नसीरुद्दीन ने कहा - नजदीक भी है और दूर भी है। उसने कहा- तुम तो पहेली बुझा रहे हो । नजदीक भी बता रहे हो और दूर भी । नसीरुद्दीन ने कहा- तुम जिस गाँव की बात कर रहे हो, वह गाँव तो पीछे छूट गया है यदि पीछे लौटोगे तो गाँव नजदीक है और आगे बढ़ोगे तो गाँव दूर होता चला जायेगा । हम भी यदि कषाय के क्षेत्र में पीछे हटेंगे तो मोक्ष दूर नहीं है और यदि आगे बढ़ते चले गये तो मोक्ष दूर होता चला जायेगा । इसलिए हम कषाय से पीछे हटेंगे तो मोक्ष प्राप्त हो जायेगा । यदि हम कषाय के क्षेत्र में आगे बढ़ते चले गये तो मोक्ष दूर होता चला जायेगा । आपको यह स्मरण होगा कि नमस्कार महामन्त्र के पाँच पद हैं। उन पदों का आचार्यों ने रंग बताया है । नमो अरिहंताणं का रंग श्वेत | सिद्धाणं का रंग रक्त है। आचार्य का रंग पीत है । उपाध्याय का रंग नीला है और साधु का रंग श्याम है। रंगों की अपनी दुनिया है । श्वेत रंग पवित्रता का प्रतीक है, रक्त रंग अप्रमत्तता का द्योतक है। यह रंग अतीन्द्रियता की ओर ले जाता है । पीला रंग मन को सक्रिय बनाता है । नीला रंग शान्ति प्रदान करता है। तथा श्याम रंग दृढ़ता का प्रतीक है । वह अवशोषक है । इसीलिए श्वेत वस्त्रधारी श्रमणों का रंग श्याम बताया है । क्योंकि वह कषाय के मित्रों को सदा के लिए मिटाने के लिए उद्यत रहता है और इसीलिए वह प्रबल पुरुषार्थ करता है । हम साधना के क्षेत्र में तभी आगे बढ़ेंगे जब कषाय नष्ट होगा । O
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
४७७
wwww.jairewww.ry.org