Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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चिन्तन सूत्र
४. तर्क और श्रद्धा
सड़क पर कार सरपट दौड़ी जा रही थी। एक व्यक्ति सड़क के किनारे चल रहा था। कार की झपट में आ गया और देखते-देखते कार उस पर से होकर आगे बढ़ गयी । खून के फव्वारें छूट गये । इस करुण दृश्य को देखकर एक दयालु व्यक्ति का हृदय द्रवित हो उठा उसने कार के नम्बर नोट किये और कार के ड्राइवर पर कोर्ट में केस कर दिया।
ड्राइवर की ओर से वकील ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि ड्राइवर निरन्तर दस वर्ष से कार चला रहा है इसलिए उसका कोई गुनाह नहीं है ।
उस व्यक्ति के वकील ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि जो व्यक्ति मारा गया है वह व्यक्ति तीस वर्ष से सड़क पर निरन्तर चल रहा था। इसलिए उसका कोई कसूर नहीं है।
जब मैंने प्रस्तुत घटना समाचार पत्र में पढ़ी तो सोचने लगी कि तर्क दुधारी तलवार है । जिसकी बुद्धि तीक्ष्ण है, वह उतनी ही तीक्ष्ण तर्क प्रस्तुत करता है । इस संसार में तर्क से कभी समाधान नहीं हुआ है जब तक श्रद्धा न हो तब तक तर्क भटकाती है । श्रद्धायुक्त तर्क ही सम्यग्दर्शन का भूषण है । आगम साहित्य में जहाँ शंकाएं उत्पन्न होती हैं वहाँ पर श्रद्धा भी साथ में है। आज हम तर्क करना जानते हैं पर बिना श्रद्धा का तर्क केबल बौद्धिक खिलवाड़ है।
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सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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50 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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