Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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और दृष्टा है । इसका चरम और परम विकास लड़खड़ाता नहीं है, गिड़गिड़ाता नहीं है तो वह परमात्मा है।
जीवन संग्राम में कदापि पराजित नहीं हो सकता ।
मानव-जीवन केवल संग्रह और उपभोग के लिए जीवन एक प्रदीप है और ज्ञान उसका दिव्यनहीं है इसमें उपभोग के साथ त्याग भी अनिवार्य है। प्रकाश है।
भोग इस लोक में ही नहीं परलोक में भी कष्ट- जीवन जन्म और मृत्यु के मध्य की कड़ी है। प्रद है वह नरक तक की यात्रा भी करा देता है। जब जन्म हुआ तब से जीवन यात्रा प्रारम्भ हुई
___ और जब मृत्यु हुई तब जीवन लीला समाप्त । जो व्यक्ति भोगों का गुलाम है वह अपने जीवन हई। * को दुःखमय बना देता है।
जीवन एक सरिता है उसका प्रथम छोर जन्म मानव मन के अधीन न बनकर इसको अपने है और अन्तिम छोर मृत्यु । आज्ञाधीन बनाये।
जीवन एक महाग्रन्थ है जिसका हर पृष्ठ अनुआत्मशक्ति का यथार्थ विकास त्याग में है,
ह। भवपूर्ण है। र भोग में नहीं; साधना में है, विराधना में नहीं।
प्रत्येक मानव अपने जीवन में सुख और दुःख धार्मिक मर्यादा में जीवन को चलाने के लिए
१ का अनुभव करता है किन्तु जो उन्हें समान रूप से मनुष्य को मानव-तन के साथ मानव-मन को जोड़े
मान लेता है वह समदर्शी कहलाता है । रखना चाहिए जिसे भी मानव-तन के साथ मानवीय अन्तःकरण जब भी मिल जाता है तब उसके
मानव के जीवन में सुख का फूल भी खिलता है जीवन का प्रत्येक पहलू आनन्द और उल्लास से और दःख के कंटक भी उसके साथ आते हैं । खिल उठता है।
मनुष्य-जीवन के लिए प्रतिज्ञा एक पाल है, एक मानव ! अपने जीवन में कभी भी मान के गज बाँध है, एक तटबन्ध है, जो स्वच्छन्द बहते हुए पर आरूढ मत बनो, विनयशील बनो, यही तुम्हारे जीवन प्रवाह को नियन्त्रित कर देता है, मयोदित जीवन विकास का मलमन्त्र है। कर देता है। 'संयम' एक ऐसा अंकुश है जो हमारे मन रूपी
मानव ! संयम अमृत है और असंयम जहर है गज को वश में कर लेता है।
अतः विष को छोड़कर सुधा का पान करो। जिसके जीवन में संयम का प्रकाश है वह जीवन मानव ! सुख और दुःख यह तो एक चक्र है और वस्तुतः विशिष्ट जीवन है ।
वह घूमता ही रहता है उसे समभाव से देखते रहो,
सुख ज्योति को देखकर हर्ष से फूल की तरह न जीवन एक प्रकार का संग्राम है और मानव फूलो और दुःख के अन्धकार को देखकर मुरझाओ एक योद्धा है, यदि वह विघ्न-बाधाओं को देखकर नहीं। सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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