Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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आत्मा है, वह ज्ञान ही है । आत्मा और ज्ञान में करना है । जिसमें यह तैयारी पूर्ण रूप से हो गयी भिन्नता नहीं है।
वह जीवन सफल है।
प्राणी जगत में मानव सबसे अधिक विकसित धर्म मनुष्य-जीवन को सुखी, स्वस्थ और एवं पूर्ण प्राणी है । वस्तुतः मानव जीवन महत्व- प्रशान्त बनाने के लिए एक वरदान लेकर पृथ्वी| पूर्ण है । परन्तु उससे भी महत्वपूर्ण है जीवन-यात्रा मण्डल पर अवतरित हुआ है। को संयमपूर्वक गतिशील बनाये रखना।
असत्य वास्तव में अशक्त है अपने अस्तित्व के आत्मा ही एक ऐसा तत्व है जो ज्ञान और लिए असत्य को भी सत्य का छदमरूप धारण है। दर्शन से युक्त है । ज्ञान और दर्शन के अतिरिक्त करना पड़ता है। | जितने भी भाव हैं वे सभी बाह्य-भाव हैं।
धर्म मानव मन में छिपी (घुसी) हुई दान- || संसार कानन में परिभ्रमण करने का प्रधान ।
- वीय-वृत्तियों को निकालता है और मानवता की bs कारण मोह है। मोह से मगध मानव जो वस्ताएँ पावन प्रतिष्ठा करता है। नित्य नहीं है उन्हें नित्य मानता है।
ब्रह्मचर्य जीवन का अद्भुत सौन्दर्य है, जिसके ___ मैं अकेला है, एक हैं, इस संसार में मेरा कोई
बिना बाहरी और कृत्रिम सौन्दर्य निरर्थक है। नहीं है और मैं भी किसी का नहीं हूँ, मैं शुद्ध स्वरूपी हूँ, अरूपी हूँ।
सत्य वस्तुतः वह पारसमणि है जिसके संस्पर्श
मात्र से ही मनुष्य जीवन रूपी लोहा सोना बनकर __ माता-पिता, पुत्र-पुत्री ये सभी मेरे से पृथक हैं निखर उठता है । यहाँ तक कि यह शरीर भो मेरा नहीं है, वह भी आत्मा से भिन्न है।
धर्म का जीवन के सभी क्षेत्रों में सार्वभौम रूप
से प्रवेश होने पर ही आनन्द का निर्मल निर्झर सत्य स्वयं अनन्त शक्ति है । इसे किसी के आश्रय प्रवाहित हो सकता है। की किंचित् मात्र भी अपेक्षा नहीं रहता है।
जिस मानव के जीवन में सत्य का प्रकाश जगसत्य का सूर्योदय होते हो असत्य का सघन मगाने लगता है वह सत्य के पीछे सर्वस्व न्यौछावर अंधेरा तिरोहित हो जाता है।
करने को तैयार हो जाता है ।
श्रद्धा मानव-मन में सद्विचारों की सुधा और धर्म मानव जीवन के विकास का अभिनव सत्काया का प्रबल-प्ररणा का आभसचार भा प्रयोग है. जीवनयापन की अतीव विशिष्ट कला है। करती है।
सत्य मनुष्य जीवन की कसौटी अवश्य करता ___ जीवन एक यात्रा है । एक ऐसी यात्रा जिसका है, जो सत्य की कसौटी पर खरा उतर जाता है संलक्ष्य ही आगामी विशिष्ट यात्रा हेतु तैयारी वह मानव से महामानव बन जाता है।
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सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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