Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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संयम जीवन का सौन्दर्य है । मन का माधुर्य है, आत्म-शोधन की प्रक्रिया है और मुक्ति का मुख्य हेतु है ।
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आत्मा पृथक है, शरीर पृथक है । इन दोनों का आधार - आधेय सम्बन्ध है । इस सम्बन्ध को वास्तविक समझना अज्ञान है ।
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सूक्तियाँ
सत्य एक प्रज्वलित प्रदीप है, जो जन-जीवन को दिव्य प्रकाश प्रदान करता है ।
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जहाँ अहिंसा है, वहीं जीवन है । अहिंसा के अभाव में जीवन का सद्भाव सम्भव नहीं । O
सत्य का जन्म सर्वप्रथम मन में होता है, वह वाणी के द्वारा व्यक्त होता है तथा आचरण के द्वारा वह साकार रूप लेता है ।
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क्षमा एक ऐसा सुदृढ़ कवच है जिसे धारण करने के पश्चात् क्रोध के जितने भी तीव्र प्रहार हैं वे सभी निरर्थक हो जाते हैं ।
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तप अध्यात्म-साधना के विराट और व्यापक रूप का बोध कराता है । उसके अभाव में मानव के जीवन में साधना का मंगल-स्वर मुखरित नहीं हो सकता।
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सप्तम खण्ड : विचार मन्थन
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तप के अभाव में अहिंसा और संयम में तेज प्रकट नहीं होता । तप साधना रूपी सुरम्य प्रासाद की आधारशिला है ।
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तप अग्नि स्नान है । जो इस तप रूपी अग्नि में कूद पड़ता है उसके समग्र कर्म-मल दूर हो जाते हैं, वह निखर उठता है ।
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जो साधक राग-द्व ेष की ज्वालाओं को शान्त करता है, मन की गाँठें खोलता है, वही धर्म का सम्यक् रूप से आराधन कर सकता है । O
अहिंसा वह सरस संगीत है, जिसकी मधुर स्वरलहरियाँ जन-जीवन को ही नहीं वरन् सम्पूर्ण प्राणी जगत को आनन्द विभोर कर देती हैं । O
सत्य एक ऐसी आधारशिला है जिस पर मानव अपना जीवन व्यवस्थित रूप से अवस्थित कर सकता है ।
0 धर्म वस्तुतः मंगलमय है वह विश्व का कल्याणकारी और सम्पूर्ण प्राणी जगत के योग-क्षेम का संवाहक है ।
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सत्य का पावन पथ ऐसा पथ है जिस पर चलने वाले को न माया ही परेशान करती है न अहंकार सताता है ।
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समता लहराता हुआ परम-निर्मल सागर है । जो साधक उसमें स्नान कर लेता है वह राग-द्वेष के कर्दम से मुक्त हो जाता है ।
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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