Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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पत्नी तो पूर्ण आज्ञाकारिणी है न ? वह तो सीता थे। सेर का दूसरा अर्थ सिंह भी है। उस शेर के T की तरह तुम्हारी बात को मानती है न?
भी चार पांव होते हैं। चालीस शेरों को जीत __युवक ने कहा-आधुनिक पत्नियाँ घर की जितना कठिन है उससे भी अधिक कठिन है मन मालकिन होती हैं। उनके संकेत पर ही पति को को जीतना।
कार्य करना होता है। यदि पति पत्नी की आज्ञा कुरुक्षेत्र के मैदान में वीर अर्जुन ने श्रीकृष्ण । | का पालन न करे तो उसे रोटी मिलना भी कठिन से कहा-यह मन बड़ा ही चंचल है। वायु की तरह र हो जाता है।
इस पर नियन्त्रण करना कठिन है। ऐसा कौन
सा उपाय है जिससे कि मन अपने अधीन में हो देवी ने कहा-अब मेरे अन्तिम प्रश्न का भी
जायउत्तर दे दो । वह प्रश्न है कि तुम्हारा मन तो
चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवददृढम् । तुम्हारे अधीन है न ? तुम मन के मालिक हो या
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ।। गुलाम हो?
श्रीकृष्ण ने चिन्तन के सागर में डुबकी लगाई __ युवक ने कहा-माँ ! मन तो बड़ा चंचल है।
। और उन्होंने कहा-मन को वश में करने के दो ही प्रतिपल प्रतिक्षण नित्य नई कल्पनाएँ संजोता रहता
उपाय हैं अभ्यास और वैराग्य । निरन्तर अभ्यास है । मैं जितना मन को वश में करने का प्रयत्न
करने से मन एकाग्र होता है और संसार के पदार्थों करता रहता हूँ, उतना ही वह अधिक भागता है।
के प्रति मन में वैराग्य भावना उद्भूत होती है तो बहत प्रयास किया पर मन मानता नहीं। __ देवी ने कहा-वत्स ! जब तुम्हारा मन ही
मन चंचल नहीं होता। तुम्हारे अधीन नहीं है तुम उसके स्वामी नहीं हो तो अध्यात्मयोगी आनन्दघनजी एक फक्कड सन्त संसार पर तुम्हारा नियन्त्रण कैसे होगा? जिसने थे। आध्यात्मिक साधना में सदा तल्लीन रहने मन को नहीं जीता, वह संसार को जीत नहीं वाले थे। उन्होंने चौबीस तीर्थंकरों पर सारगर्भित सकता । इसलिए गीर्वाण गिरा के एक यशस्वी अन- और दार्शनिक भावना से संपृक्त चौबीसी का भवी चिन्तक ने कहा है-'मनोविजेता जगतो- निर्माण किया। बड़ी अद्भुत है वह चौबीसी । जब ? विजेता ।' जिसने मन को जीत लिया. वह संसार भी साधक उन पद्यों को गाता है तो श्रोतागण को भी जीत सकता है और जिसने मन को नहीं
में श्रद्धा से झूम उठते हैं। उन्होंने कुन्थुनाथ की प्रार्थना - जीता, वह संसार को कभी जीत नहीं सकता।
में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहो कि 'मन' The
शब्द संस्कृत में नपुंसकलिंग है। नपुसक व्यक्ति में देवी की बात इतनी मार्मिक थी कि युवक के शक्ति नहीं होती। वह कभी भी रणक्षेत्र में जझ एम पास उसका उत्तर नहीं था। मन बड़ा ही चंचल है नहीं सकता। पर मन एक ऐसा नपूसक है जो बड़े बड़े-बड़े साधक भी मन को वश में नहीं कर सके, बड़े वीर शक्तिशाली मर्दो को भी पराजित कर वे भी मन के प्रवाह में बह गये।
देता है। रावण कितना शक्तिशाली था, जिसने हमारे श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्रीपुष्कर देवी शक्तियों को भी अपने अधीन कर रखा था। मुनिजी महाराज ने एक बार कहा कि मन को देवी शक्तियाँ भी उसके सामने काँपती थीं, वह जीतना चालीस सेर से भी अधिक कठिन है । राज- महाबली रावण भी मन का गुलाम था। मन को स्थानी में 'मन' और 'मण' ये दो शब्द हैं । मण जो वह भी न जीत सका । मन के अधीन होकर ही वह एक नाप विशेष है, प्राचीन युग में वह चालीस सेर सीता को चुराने के लिए चल पड़ा। सीता के का एक होता था और एक सेर के चार पाव होते सामने हाथ जोड़कर दास की तरह खड़ा रहता
सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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