Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur

View full book text
Previous | Next

Page 541
________________ AAT भगवान के मुखारबिन्द से अपने लिए भक्त देव- उसकी वाणी जहर उगलती थी इसलिए वह जन-II ताओं का वल्लभ शब्द सुनत शब्द सनता है तो उसका अन्त- जन का घणा का पात्र बना। थाप तन के रंग को हूं दय बांसों उछलने लगता है वह सोचता है मैं बदल नहीं सकते, पर वाणी को बदलना आपके कितना सौभाग्यशाली हूँ कि प्रभु ने मुझे देवताओं के स्वयं के हाथ में है। आप वाणी को बदलकर जनवल्लभ शब्द से पुकारा है। प्राचीन युग में पत्नी पति जन के प्रिय पात्र बन सकते हैं । मूर्ख व्यक्ति वह को आर्यपुत्र कहकर सम्बोधित करती थी और पति है जो बोलने के पश्चात् सोचता है कि मैं इस || भी देवी कहकर पत्नी को सम्बोधित करता था। एक प्रकार के शब्द नहीं बोलता तो संक्लेश का वातादूसरे के प्रति कितनी शिष्ट भाषा का प्रयोग होता वरण तो उपस्थित नहीं होता। यदि मैं वाणी पर मा था। पर आज ससभ्य कहलाने वाले लोग किस नियन्त्रण रख लेता तो कितना अच्छा होता पर प्रकार शब्दों का प्रयोग करते हैं । वार्तालाप के प्रसंग समझदार व्यक्ति वह है जो बोलने के पूर्व उसके में अपशब्दों का प्रयोग करना, गाली-गलौच देना परिणाम के सम्बन्ध में सोचता है वह इस प्रकार के आज सामान्य बात हो गई है। यदि आपने अपनी शब्दों का प्रयोग नहीं करता, जिससे किसी के दिल पत्नी को गधी कहा है तो आप स्वयं गधे में दर्द पैदा हो, हृदय व्यथित हो। इसीलिए मैंने बन गये । इसलिए शब्दों का प्रयोग करते समय अपने प्रवचन के प्रारम्भ में आपसे कहा कि वाणी 12 विवेक की अत्यधिक आवश्यकता है। अत्यन्त पुण्यवानी के पश्चात् प्राप्त हुई है । जिस || वाणी को प्राप्त करने के लिए आत्मा को कितना भारत के महामनीषियों ने वाणी की तीन प्रबल पुरुषार्थ करना पडा है? कितने कष्ट सहन कसौटियाँ बताई हैं, सत्यं, शिवं, सुन्दरम् । सबसे करने पड़े हैं जो इतनी बहमूल्य वस्तु है हम उसका प्रथम हमारी वाणी सत्य हो पर वह सत्य कटु न दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हैं यदि दुरुपयोग कर हो, अप्रिय न हो, इसलिए दूसरी कसोटी "शिव" लिया तो बाद में अत्यधिक पश्चात्ताप करना होगा । की रखी गई है । हमारे मन में सत्य के साथ यदि अन्त में मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि यदि दुर्भावना का पुट हो तो वह सत्य शिव नहीं है आपकी वाणी अमृतवर्षण नहीं कर सकती है तो और साथ में सत्य को सुन्दर भी होना आवश्यक आप मौन रहें। मौन सोना है और बोलना चाँदी है । सौन्दर्य वाणी का आभूषण है । तन का सौन्दर्य है। मौन शान्ति का मूलमन्त्र है और बोलना विवाद | कुदरत की देन है। यदि किसी का चेहरा कुरूप का कारण है । मौन के लिए कुछ भी पुरुषार्थ करने || है तो वह क्रीम, पाउडर आदि सौन्दर्यवर्द्धक की आवश्यकता नहीं। मौन से आप अनेक विग्रहों 1102 साधन का उपयोग करेगा तो उसका चेहरा बहु- से बच सकेंगे और दीर्घकाल तक यदि आपने मौन || रुपिये की तरह और भद्दा बन जायेगा। कृत्रिम साधना कर ली तो आपकी वाणी स्वतः सिद्ध हो सौन्दर्य प्रसाधन से वास्तविक सौन्दर्य निखरता जायेगी। योगियों की वाणी इसीलिए वचनसिद्ध थी नहीं है । आप जानते हैं श्री कृष्ण वासुदेव का रंग कि वे लम्बे समय तक मौन रहते थे । यदि बोलना | श्याम था किन्तु उनकी वाणी इतनी मधुर थी कि ही है तो विवेकपूर्वक बोलें जिस वाणी से सत्य, लोग उनकी वाणी को सुनने के लिए तरसते थे। अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त के तथा समता, जब कृष्ण बाँसुरी की मुरली तान छेड़ते तब गायें नम्रता, सरलता के सुमन झरें। आशा है आप वाणी भी दौड़कर उनके आसपास एकत्रित हो जाती थीं। का महत्व समझेंगे और अपने जीवन में मधुर बोलने गोपियों के झुण्ड के झुण्ड उनके पास पहुँच जाते का और कम बोलने का अभ्यास करेंगे । तो आपकी थे । इसका एकमात्र कारण उनकी वाणी से अमृत वाणी में एक जादू पैदा होगा और वह जादू जन-जन स्रोत फूटना था। दुर्योधन का वर्ण गौर था किन्तु के मन को मुग्ध कर देगा। सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन 6 . साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Res Jan Education Internationar Yor Private & Personal Use Only vw.jassorary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664