Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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तो इस प्रकार अल्प साधना नगण्य सहयोग की की दृष्टि से संसार का सर्वाधिक सम्पन्न और सब तर्फ नहीं देखकर जो उपलब्ध है उसे ही सकारात्मक ऋतुओं के अनुकूल वातावरण वाला महान देश रूप देना है, रचनात्मक दृष्टि से लेना है और छोटे भारत गरीब राष्ट्रों की गिनती में आता है। और
छोटे तिनकों से हाथियों को बांध देना है। युवा छोटे-छोटे देशों से भी कर्ज लेकर अपने विकास हर वर्ग इस प्रकार जीवन में रचनात्मक दृष्टि से सोचने और निर्माण कार्य कर रहा है। भारत के हजारों, की आदत डालें।
लाखों युवा वैज्ञानिक और लाखों कुशल डाक्टर शक्ति का उपयोग सर्जन में हो
विदेशों में जाकर बस गये, अपनी मातृभूमि की ।
सेवा न करके, अन्य राष्ट्रों की सेवा में लगे हैं, का युवाशक्ति-एक ऊर्जा है, एक विद्य त है। इसका क्या कारण है ? मेरी समझ में सबसे मुख्य विद्य त का उपयोग संसार में निर्माण के लिए भी कारण है-युवाशक्ति में दिशाहीनता और निराशा होता है, और विध्वंस के लिए भी । अणु-शक्ति का छाई हुई है, कर्तव्य भावना का अभाव और देश व उपयोग यदि शान्तिपूर्ण निर्माण कार्यों के लिए मानवता के प्रति उदासीनता ही इस विनाश और
होता है, तो संसार में खुशहाली छा जाती है और विपत्ति का कारण है। Neil यदि अणबम या अणयुद्ध में उसका उपयोग किया इसलिए आज यवाशक्ति को कर्तव्यबोध करना 419) 30 गया तो सर्वत्र विनाश और सर्वनाश की विभीषिका है। जीवन का उद्देश्य, लक्ष्य और दिशा स्पष्ट 5 छायेगी । यूवाशक्ति भी एक प्रकार की अणुशक्ति करती है।
है, इस शक्ति को यदि समाज-सेवा, देश-निर्माण, राष्ट्रीय-विकास और मानवता के अभ्युत्थान के
संस्कृत में एक सूक्ति हैकार्यों में लगा दिया जायेगा तो बहत ही चमत्कारी यौवनं धन-संपत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता। मा परिवर्तन आ जायेंगे । संसार की दरिद्रता, बेकारी, एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ? पीड़ाएँ, भय, युद्ध, आतंक आदि समाप्त होकर प्रेम, भाईचारा, खुशहाली, सुशिक्षा, आरोग्य, और सभी योवन, धन-सम्पत्ति, सत्ता, अधिकार और को विकास के समान अवसर मिल सकेंगे । आप अविवेक (विचारहीनता)- ये प्रत्येक ही एक-एक देख सकते हैं, जापान जैसा छोटा-सा राष्ट्र जो पर- दानव हैं, यदि ये चारों एक ही स्थान पर एकत्र हो
माणु युद्ध की ज्वाला में बुरी तरह दग्ध हो चुका हो जायें, अर्थात् चारों मिल जाएँ, तो फिर क्या All था, हिरोशिमा और नागासाकी की परमाण विभी- अनर्थ होगा ? कैसा महाविनाश होगा ? कुछ नहीं म षिकाएँ उसकी समूची समृद्धि को मटियामेट कर कहा जा सकता।
चुकी थीं, वही राष्ट्र पुनः जागा, एकताबद्ध हुआ, युवक, स्वयं एक शक्ति है, फिर वे संगठित हो युवाशक्ति संगठित हुई और राष्ट्रीय भावना के ।
. हो जायें, एकता के सूत्र में बंध जायें, अनुशासन में साथ नवनिर्माण में जुटी तो आज कुछ ही समय में संसार का महान धनाढ्य और सबसे ज्यादा प्रगति
___ चलने का संकल्प ले लें, विवेक और विचारशीलता
' से काम लें, तो वे संसार में ऐसा चमत्कारी परिशील राष्ट्र बन गया है।
वर्तन कर सकते हैं कि नरक को स्वर्ग बनाकर दिखा कर्तव्य बोध कीजिए
सकते हैं, जंगल में मंगल मना सकते हैं। इसलिए आज भारत की युवापीढ़ी बिखरी हुई है, दिशा- चाहिए, कुछ दिशाबोध, अनुशासन, चारित्रिक हीन है, और निर्माण के स्थान पर विध्वंस और नियम, अतः मैं इसी विषय पर युवकों को कुछ विघटन में लगी हुई है, इसलिए प्राकृतिक साधनों संकेत देना चाहता हूँ । | चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
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23 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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