Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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निश्चयपूर्वक यह कहना कठिन था कि जिस वैशाली सिद्ध हो गया है कि यह बज्जियों लिच्छवियों की ॥ 0 की वे तलाश करने में लगे हैं, वह यही है। लेकिन वही रमणीय नगरी है जिसका सरस वर्णन जैन एवं 9 | उन्होंने हिम्मत न हारी। आगे चलकर उनके बौद्धों के आगम ग्रन्थों में उपलब्ध है। उद्योग से १६०३-४ में डाक्टर टी. ब्लाख को और
पुनश्च : लेख समाप्त करने के पहले, यहाँ एक १६१३-१४ में डाक्टर डी. बी. स्पूनर को यहाँ भेजा और बात लिख देना आवश्यक है। श्वेतांबरीय गया । इस खुदाई में मिट्टी की मुहरों पर उत्कीर्णं आवश्यक चूर्णी (ईसा की ७वीं शताब्दी) के आधार |
लेखों की प्राप्ति हुई जिससे कनिंघम साहब का सपना से इन पंक्तियों के लेखक ने भगवान महावीर की पान म सार्थक सिद्ध होता हुआ दिखाई दिया। अब यह सिद्ध विस्तृत विहार-चर्या का विवरण मानचित्र के साथ TE हा गया कि यह वसाढ़ हा प्राचीन वाला है। अपनी रचनाओं “भारत के प्राचीन जैन तीर्थ" जैन र
लेकिन यह काफी नहीं था, अभी बहुत कुछ संस्कृति संशोधन मंडल, वाराणसी, १६५०; "लाइफ की करना बाकी था। भारत सरकार आर्थिक कठिनाई इन ऐन्शियेण्ट इण्डिया ऐज डिपिक्टेड इन जैन कैनन के कारण खुदाई के काम को आगे बढ़ाने में अपनी एण्ड कमेण्टरीज," मुशीराम मनोहर लाल, नई 6 असमर्थता व्यक्त कर रही थी। इस समय हिन्दी के दिल्ली, (संशोधित संस्करण, १९८४) में प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध नाटककार श्री जगदीश चन्द्र माथुर, आई. है। वैशाली प्राकृत संस्थान (मुजफ्फरपुर) में | सी. एस. जो हाजीपुर के एस. डी. ओ. बनकर यहां १६५८.५६ प्रोफेसर पद पर आसीन रहकर, पद
आये थे, वैशाली के गौरव से सुपरिचित थे। उनके यात्रा द्वारा भगवान महावीर की विहार-चर्या ART प्रयत्न से १९४५ में वैशाली संघ की स्थापना की सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करने के सम्बन्ध में एक
गई । इस संघ की ओर से ७ हजार रुपये की रकम विस्तृत योजना संस्थान के डाइरैक्टर के समक्ष KE प्राप्त कर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के प्रस्तुत की गई थी। दुर्भाग्य से वह योजना कार्या
वरिष्ठ अधिकारी श्री कृष्णदेव के अधीक्षण में न्वित न की जा सकी । अभी हाल में उक्त संस्थान II १९५० में खुदाई का कार्य फिर से शुरू किया गया। की कार्यकारिणी का सदस्य होने के नाते, फिर से
इस बार राजा विशाल का गढ़ और चक्रम दास संस्थान के डाइरैक्टर का ध्यान आकर्षित किया o स्थानों पर ही खुदाई केन्द्रित की गई। पांचवीं बार गया, और अनुरोध किया गया कि संस्थान के
बिहार सरकार के काशीप्रसाद जायसवाल अनू- किसी शोध विद्यार्थी को शोध के लिए उक्त विषय संधान प्रतिष्ठान ने डाइरैक्टर सूप्रसिद्ध इतिहास दिया जाये जिससे कि वह छात्र वैशाली के आसतत्ववेत्ता प्रोफेसर ए. एस. आल्तेकर ने चीनी पास के प्रदेशों में पदयात्रा द्वारा भगवान महावीर यात्री श्वेन च्वांग के अभिलेखों के आधार पर की बिहार चर्या सम्बन्धी जानकारी प्रस्तुत कर सके। खुदाई का काम हाथ में लिया । इस समय अभिषेक इस सम्बन्ध में आरा के सुप्रसिद्ध उद्योगपति दिवंगत पुष्करिणी के पास मिट्टी के बने एक स्तूप में से सेठ निर्मल कुमार चक्रेश्वर कुमार जैन के उत्तरा
भगवान बुद्ध के शरीरावशेष की एक मंजूषा धिकारी परम उत्साही श्री सुबोध कुमार जैन को CIB मिली। आगे चलकर १९७६-७८ में भारत सरकार यथाशक्ति आर्थिक सहायता देने के लिये भी राजी
के पुरातत्व विभाग की ओर से फिर से खुदाई की किया जा सकता है। यदि यह योजना आज भी गई । यह खुदाई कोल्हुआ गांव में निर्मित अशोक सम्भव हो सके तो निश्चय ही भारतीय पुरातत्व के स्तम्भ के आस पास की गई और इस खुदाई में जो क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हो सकती है। वर्तमान १.. बहुमूल्य सामग्री प्राप्त हुई उससे वैशाली का समस्त में वैशाली स्थित वैशाली प्राकृत शोध संस्थान का इतिहास प्रकट हो गया। और अब यह पूर्ण रूप से यह महान् योगदान कहा जायेगा।
पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास
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HARASH
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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