Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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बहता ज्ञान निर्झर कथा वस्तु की रोचकता एवं इस प्रकार हम देखते हैं दोनों आचार्यों के रचित सौन्दर्य प्रसाद तथा माधुर्य इसका समवेत रूप- ग्रन्थ जैन ही नहीं अपितु विश्व साहित्यकाश के इन सभी गुणों का एक साथ दर्शन इस कृति से बेजोड़ नक्षत्र हैं। सुधी पाठक स्वयं ही निर्णय करे होता है । इस ग्रन्थ का सम्पादन जर्मन के डा० कलिकाल केवली आचार्य श्री हरिभद्रसूरि या कलिहरमन जैकोबी ने सन् १९२६ में किया था जो रायल काल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि कौन 'सूर' है एशियाटिक सोसायटी कलकत्ते से छपा है। लिखने या कौन 'शशि' है। का सारांश यह है कि लाखों श्लोक परिमाण
पुरातत्वाचार्य स्व० मुनि जिनविजयजी आचार्य साहित्य की रचना आचार्य हरिभद्रसूरि ने की है। श्री हरिभद्रसरि से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ___ आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने भी इतना ही विपुल हरिभद्रसरि की मूत्ति स्वयं अपने अर्थ से निर्मित साहित्य संस्कृत में रचा है, उसका भी परिमाण कराई और हरिभद्रसरि के चरणों में अपनी मूर्ति लाखों श्लोकों का है। आचार्य हेमचन्द्र का भी पूरा भी खूदवा दी और चित्तौड़गढ़ के प्रवेश मार्ग पर साहित्य उपलब्ध नहीं हैं। इनकी भी प्रतिभा हेम-सी ही श्री हरिभद्रसूरि ज्ञान मन्दिर बनवा दिया जिसका निर्मल थी।
संचालन आजकल श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ वे ज्ञान के विपल भण्डार थे। पाश्चात्य कलकत्ता कर रहा है। विद्वानों ने तो आचार्य हेमचन्द्र को 'ज्ञान-समुद्र' कह कर सम्बोधित किया है। हेम शब्दानुशासन
मुनिजी को इस बात का गहरा दुःख व्याकरण और त्रिषष्ठि शलाका परुष चरित था कि वर्तमान में जैन समाज ने हरिभद्रआचार्य श्री की अद्भुत रचनायें हैं। जर्मनी के डा० सूरि को भुला दिया है, उनको यथोचित्त सम्मान जार्ज वल्हर ने हेमचन्द्राचार्य के ग्रन्थों से प्रभावित नहीं मिला। होकर जर्मनी भाषा में आचार्य हेमचन्द्रसूरि का सर्व- जैनियों को हरिभद्रसूरि के नाम से विश्व प्रथम जीवन चरित्र लिखा जिसका अनुवाद हिन्दी विद्यालय खोलना चाहिए था-गुजरात में में स्व० श्री कस्तूरमल जी बाँठिया ने किया है। हेमचन्द्राचार्य को तो बहुत आदर से याद किया
हेमचन्द्र की पारगामी प्रज्ञा पर दिग्गज विद्वानों के जाता है, जगह-जगह उनकी प्रतिमायें व चरण हैं 11 मस्तिष्क झुक गये। उन्होंने कहा
भारत सरकार का कर्तव्य है ऐसे दो महान ज्ञानकिं स्तुमः शब्द पयोधे हेमचन्द्र ते मंतिम् । पुंज भारतीय जैन आचार्यों का यथोचित सम्मान ___ एकेनासीह येने दृक् कृतं शब्दानुशासनम् । कर उनकी स्मृति में ज्ञान मन्दिर-विद्या मन्दिर
___ अर्थात्-शब्द समुद्र हेमचन्द्राचार्य की प्रतिभा बनवाये। 17 की क्या स्तुति करें जिन्होंने इतने विशाल शब्दानु
शासन की रचना की है।
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पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास
0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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