Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
--
-----
-
-
-
० डॉ० गंगाराम गर्ग प्राध्यापक महारानी श्री जया कालिज, भरतपुर
नीतिकाव्य के विकास में हिन्दी
जैन मुक्तक काव्य की भूमिका
-
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश साहित्य की तरह देवीदास, जयपुर के वुधजन और पार्श्वदास जैसे हिन्दी में भी नीतिकाव्य की समृद्ध परम्परा रही महाकवियों ने 'बनारसी विलास' के अनुकरण पर है।'कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे' की धारणा के अनु- क्रमशः 'धर्मविलास', 'परमानन्द विलास', 'बुधजन सार नीति-सिद्धान्तों की प्रेरणाप्रद चर्चा साहित्य का विलास', 'पारस विलास' जैसे विशाल काव्यग्रन्थों का चरम लक्ष्य भी है।
प्रणयन किया। इनमें अनेक गेय पदों के अतिरिक्त उत्तर मध्यकाल में शासक का लक्ष्य स्वार्थ- लघु रचनाओं के रूप में पर्याप्त अगेय मुक्तक भी लिप्सावश प्रजा का शोषण रह गया तथा अधिकांश हैं। जिनका प्रधान विषय नीति प्रतिपादन है। समाज नीतिभ्रष्ट होकर सुरा-सुन्दरी में लिप्त जैन नीतिकाव्य की इसी परम्परा में अध्यात्म होना अपना आदर्श मानने लगा। हिन्दी के अधि
___ मत के अनुयायी कोसल देश के विनोदीलाल, दादरी कांश कवि भी अर्थलोलुप होकर घोर शृंगारिक देश के धामपुर निवासी मनोहरदास तथा लक्ष्मी
तथा पतनोन्मुखी प्रेम प्रसंगों व झूठे प्रशस्तिगान को चंद ने कवित्त-सवैयों की रचना की। पं. रूपचंद ६ । अपना कर्तव्य मानकर शब्दों का इन्द्रजाल दिखाने
की 'दोहा परमार्थी' हेमराज के 'दोहा शतक' और लगे। तब अनेक जैन कबियों ने समसामयिक
मसामायक 'बुधजन सतसई' के दोहे का प्रमुख प्रतिपाद्य भी वातावरण से प्रभावित न होकर ब्रजभाषा और
नीति ही रहा । गुजरात और राजस्थान में विहार का || उसमें प्रयुक्त दोहा, कवित्त, सवैया आदि छन्दों में
करने वाले महान् सन्त योगिराज ज्ञानसार की ही ऐसा काव्य प्रस्तुत किया, जो व्यक्ति, समाज स्तवनपरक और भक्तिपरक रचनाएँ राजस्थानी में 8 और शासन को आदर्श पथ प्रशस्त कर सके। होते हुए भी दो नीति प्रधान रचनाएँ सम्बोध
__ श्रीमाल परिवार में जन्मे श्वेताम्बर जैन बना- अष्टोत्तरी और प्रस्ताविक अष्टोत्तरी पश्चिम हिन्दी रसीदास ने विभिन्न मत-मतान्तरों का रसपान कर की रचनाएँ हैं। सद्यप्राप्त सोनीजी की नशियाँ एक नया भक्ति-रसायन तैयार किया. जिसमें आत्म- अजमेर में विद्यमान क्षत्रशेष कवि द्वारा विरचित चिन्तन और सदाचार का पुट था। अब निर्गुण ५०० कवित्तों का ग्रन्थ 'मनमोहन पंचशती' नीतिसन्त कवियों के समान जैन संतों की भक्ति और काव्य का अनुपम ग्रन्थ है। उक्त सभी ग्रन्थों में उपासना-पद्धति में सदाचार ने पहले से ज्यादा विद्यमान जैन नीति परम्परा का समन्वित रूप स्थान पा लिया। यही कारण है कि बनारसीदास भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है। नीति के परवर्ती दिल्ली के द्यानतराय, बुन्देलखंड के परम्परा के चतुर्मुखी रूप-आचारनीति, अर्थनीति पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private Personal use only
www.jainelibrary.org
४०३
Jaih Education International