Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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चित्र: स्तोष्ये जिनं वीरं, चित्रकृच्चरितं मुदा । प्रतिलोमानुलोमाद्यैः, स्वङ गाद्यैश्चारुभिः ॥ 'चामर-बन्ध' का पद्य इस प्रकार है
श्रीमद्धामसमग्रविग्रह ! मया चित्रस्तवेनामुना, नूतस्त्वं पुरुहूतपूजित विभो सद्यः प्रसद्येधि माम् । ख्यात ज्ञातकुलावतंस सकलत्रैलोक्य- क्लृप्तान्तरस्फार क्रूरतरज्वरस्मरतरत्संरब्धरक्षारत ! ।।२७ । इस प्रकार अपूर्व प्रतिभा के धनी आचार्य जिन प्रभसूरि के स्तोत्र अत्यन्त महनीय गुणों से मण्डित हैं । इनका स्थिति-काल १३०८ ई. का है ।
११ - वीरजिन स्तोत्र - श्रीसोमतिलक सूरि
कविवर सोमप्रभसूरि के पट्टधर, १३वीं शती के समर्थ आचार्य श्री सोमतिलक सूरि ने अन्यान्य अनेक ग्रन्थों के अतिरिक्त 'वीरजिनस्तोत्र' के नाम से चित्रकाव्यात्मक स्तोत्र बनाया है । इसमें विविध दल वाले विभिन्न कमल - बन्धात्मक पद्य हैं । कवि ने स्वयं कहा है
चतुरष्ट षोडश-द्वात्रिंशच्चतुरधिकषष्टिदलं कलितम् । श्रीवीरस्तुति कमलं मवयतु सहृदयजनालि-कुलम् ||१०||
इस स्तोत्र के प्रत्येक चरण के प्रथम अक्षरों का चयन करने पर एक पद्य बनता है जिसमें गुरुनाम, कविनाम और स्तोत्र - प्रकार का निर्देश किया गया है -
श्रीसोमप्रभसूरीश पादाम्भोज प्रसादतः । श्रीसोमतिलकसूरिरकृत स्तुति- पङ्कजम् ॥ इनके अन्य स्तोत्र भी रचना वैशिष्ट्य के कारण स्पृहणीय हैं ।
१२ -- जिनस्तोत्ररत्नकोश - मुनि सुन्दरसूरि
मुनि सुन्दरसूरि सहस्रावधानी थे। आपने 'जिन स्तोत्ररत्न कोश', जिनस्तोत्र महाहद, सूरिमन्त्रस्तोत्र, तपागच्छपट्टावली और 'त्रिदशतरङ्गिणी' आदि ग्रन्थों की रचना की थी । चौदहवीं शती के प्रथम चरण में आपने जो विज्ञप्ति-काव्य पत्र के रूप में
पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास
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लिखकर अपने गुरु देवसुन्दर सूरि के पास भेजा था, उसके सम्बन्ध में हर्ष भूषणमुनि ने 'श्राद्ध विधि-विनिश्चय' में लिखा है कि वह १०८ हाथ लम्बा था और उसमें अनेक चित्रकाव्य अङ्कित थे । उपर्युक्त स्तोत्र भी उसी में था । सम्पूर्ण त्रिदशतरङ्गिणी में लिखित ऐसे स्तोत्रों में ३०० चित्र बन्धों की योजना थी, जिनमें - प्रासाद, पद्म, चक्र, चित्राक्षर, अर्धभ्रम सर्वतोभद्र, मुरज, सिंहासन, अशोक, भेरी, समवसरण, सरोवर, अष्टमहाप्रातिहार्य आदि विशिष्ट हैं ।
१३ -- विज्ञप्ति त्रिवेणी - उपाध्याय श्री जयसागर
सन् १४२७ के निकट वर्तमान उपा० श्री जयसागर ने इस त्रिवेणी सरस्वती, गङ्गा और यमुनानामक तीन वेणियों में विज्ञप्ति प्रेषित की है । इसमें मुक्तक-प्रासङ्गिक स्तोत्रों के रूप में छत्र, कमल, गोमूत्रिका, अर्धभ्रम, बीजपूर, आसन, चामर, अष्टारचक्र, स्वस्तिक आदि चित्रालङ्कारों को योजना की है । यह पूरो रचना १०१२ श्लोकप्रमाण है।
१४ -- चतुर्हारावली - चित्रस्तव - श्रीजयशेखर सूरि
प्रस्तुत रचना १५वीं शती के आरम्भ की है । यह चार हारावलियों में विभक्त है तथा प्रत्येक में १४-१४ पद्य हैं । इनमें क्रमशः वर्तमान, अतीतअनागत और विहरमाण तीर्थङ्करों की चौबीसियों की स्तुतियाँ हैं । अन्तिम पद्य चारों हारावलियों के समान हैं । इसकी विशेषता यह है कि पूर्व और पश्चिम के एक-एक तीर्थङ्कर नाम के अक्षररूप हार से यह ग्रथित है । चार-चार चरणों के आद्यक्षरों से 'श्री ऋषभ', अन्त्याक्षरों से 'महावीर' आदि नाम निकलते हैं । इसके अतिरिक्त प्रत्येक हारावली का १३ वाँ पद्य अन्य चित्रबन्धों की भी सृष्टि करता है, जिनसे २४ दल कमल, स्वस्तिक, वज्र और बन्धुक स्वस्तिक बन्ध बनते हैं ।
१५ - अष्टमङ्गल चित्र ( बन्ध) स्तव - श्री उदय माणिक्य गणि
दस पद्यों से निर्मित यह स्तव जैन धर्म में
साध्वीरत्न ग्रन्थ
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