Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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शिक्षा आयोग ने चरित्र की शिक्षा पर बल दिया श्यकता है, जो नैतिकोन्मुखी हो। यही कारण है तथा घर, विद्यालय एवं समाज की नैतिकता आच- कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत नैतिक रण के प्रति आस्था को चरित्र-निर्माण के लिए मूल्यों के शिक्षण तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था पर महत्वपूर्ण बताते हुए शिक्षक एवं विद्यालयीन जीवन बल दिया गया है। जिससे राष्ट्रीय समस्याओं को को समृद्ध किए जाने की सिफारिश की। १६५८- हल करने हेतु एक नया प्रकाश प्राप्त हो सके। ५६ में नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा की आवश्यकता एवं सम्भावनाओं पर विचार हेतु श्रीप्रकाश ।
राष्ट्रीय समस्याओं के हल हेतु महत्वपूर्ण 5 समिति का गठन किया गया। इस समिति ने नात
नैतिक मूल्यों का शिक्षा में समावेश होविद्यालयों में नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का देशवासियों में एकता की भावना विकसित शिक्षण वांछनीय माना तथा विद्यालयों का कार्य करने हे
करने हेत शिक्षा में सार्वजनीन तथा शाश्वत मल्यों क्रम मौन प्रार्थना से शुरू करने का सुझाव दिया। का विकास करना होगा जिनसे धार्मिक १९६२ की भावात्मक एकता समिति ने भी राष्ट्रीय विश्वास, कट्टरता, असहिष्णुता, हिंसा तथा भाग्यएकता के सन्दर्भ में चरित्र-निर्माण को महत्वपूर्ण वाद का अन्त किया जा सके और विद्यार्थियों में बताते हुए धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की आवश्य- राष्ट्रीय एकता का दृष्टिकोण विकसित किया जा कता पर बल दिया। १९६४-६६ के कोठारी शिक्षा सके। छात्रों को एक-एक क्षण का सदुपयोग करना आयोग ने नई पीढ़ी में मूल्यहीनता पर चिन्ता सिखाने के लिए विद्यालयों में विभिन्न पाठ्यक्रम व्यक्त की तथा शिक्षा में नैतिक, आध्यात्मिक एवं सहगामी क्रियाओं जैसे स्काउटिंग, एन० एस० एस०, ON सौन्दर्यात्मक मूल्यों के विकास को अत्यधिक महत्व- एन० सी० सी०, खेलकूद आदि का आयोजन रखा पूर्ण माना । विभिन्न आयोगों के अतिरिक्त शिक्षा जाये । विद्यालयों में साम्प्रदायिक संकीर्णता नहीं की राष्ट्रीय, राज्य तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बनी आने देने के लिए साम्प्रदायिकता की शिक्षा न समितियों ने एकमत से मूल्य संकट तथा चारि- देकर आध्यात्मिक व धार्मिक त्रिक संकट से देश को बचाने हेतु नैतिक तथा बल दिया जाना चाहिए । छात्रों को सामाजिक एवं धामिक शिक्षा को किसी न किसी रूप में विद्यालयीन आथिक परिस्थितियों से परिचित कराकर उन्हें कार्यक्रम के साथ जोड़ना अत्यधिक आवश्यक इस योग्य बनाया जाय कि वे अपने विचार तथा
लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा जगत में किये व्यवहार में उदार बन सकें, भाषा, सम्प्रदाय, जाति. जाने वाले अब तक के अनेक प्रयास तथा योजनाएँ लिंग पर आधारित पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर हमारी राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने में राष्ट्रीय हितों की बात सोच सकें। इसके लिए सफल नहीं हो पायी हैं। शिक्षा की इस गम्भीर आवश्यक है कि विद्यालय ही नहीं बल्कि घर का स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही देश में एक नई वातावरण ऐसा सरस व सुन्दर बनाया जाए कि शिक्षा नीति १९८६ में लाग की गयी है, जो राष्टीय नैतिक मूल्यों का विकास हर सदस्य अपना सामूएकता तथा अखण्डता को बनाए रखकर राष्ट्रीय हिक उत्तरदायित्व समझे । विद्यालयी शैक्षिक तथा आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके और भारतीय सहशैक्षिक कार्यक्रमों में सभी धर्मों के त्यौहारों को संविधान के संकल्पों के अनुसार नई पीढ़ी को प्रति- समान रूप से मनाना, महापुरुषों के जीवन से योगिता के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर आत्मविश्वास के प्रेरणा देने हेतु विचार गोष्ठी रखना, वादविवाद साथ खड़ी करने में समर्थ कर सके । इसके लिए आयोजित करवाना तथा सामाजिक सेवा कार्यक्रमों का अपने कर्तव्यों के प्रति उन्मुख नागरिकों की आव- को आवश्यक रूप से जोड़ा जाना चाहिए।
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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