Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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l की संरचना शांति, सुव्यवस्था और समता की ओर सैकेण्ड पर एक बालक, चिकित्सा के अभाव में | उन्मुख रही है।
विकलांग हो रहा है । अमेरिका नाभिकीय युद्ध के सामाजिक मनोविज्ञान का मूलाधार जिस लिए रसायनिक और जेविक तत्त्वों के मिश्रण से व्यवस्था और संस्थावाद को प्रमुखता दे रहा है, ऐसे अस्त्र बना रहा है, जो विशेष जातियों और उसकी निर्मिति मैत्री, समता और भ्रातृत्व पर ही नस्लों को पहचानकर समाप्त कर देंगे एवं मानवीय आधुत है। प्रसिद्ध विद्वान सी० राइट मिल का इच्छाओं का दमन कर जनता की मानसिकता और कथन है कि आज मनुष्य की समस्त चिन्ताधारा आचरण क्षमता को स्वचालित यन्त्र में बदल देंगे । तृतीय विश्व युद्ध को यथार्थ मानकर भ्रमवश विश्व इसके विपरीत प्रेमचन्द के शब्दों में 'विश्व समर शांति की सम्भावना स्वीकार नहीं करती। पी० का एकमात्र निदान है विम्व-प्रेम ।' इस सन्दर्भ में
सोरोकिन का भी यही अभिमत है। उसकी दृष्टि आज विश्व साहित्य में तकनीकी संस्कृति का घोर o में आज सामाजिक व्यवस्था और सांस्कृतिक जीवन विरोध हो रहा है। ब्रस मेजलिस ने १९८० में
मल्यहीन, प्रत्ययहीन, आस्थाहीन हो गए हैं और लिखा कि आविष्कारों की महानता और उनके Gll स्पर्धा एवं संकटग्रस्त होकर चारों ओर विनष्टि- परिणामों के हीनता की घोर विषमता से मैं हैरान वादी कटुता का बोलबाला है।
हूँ। नारमन कंजिल्स ने कहा कि 'अंतरिक्ष की ___ आइन्सटीन ने तो स्पष्ट कह दिया था, 'हमें मानवयात्रा का महत्व यह नहीं है कि मनुष्य ने मानवता को याद रखना है जिससे हमारे समक्ष चन्द्रमा पर पैर रखे पर यह है कि उसकी दृष्टि १ स्वर्ग का द्वार खुल जायेगा अन्यथा सार्वभौम मृत्यू वहाँ भी अपनी पृथ्वी पर ही लगी रही।' यही । को ही झेलना होगा। कोई अंधी मशीन हमें अपने सोचना है कि मनुष्य की इस सर्वव्यापी चारित्रिक |
विकराल वज्र दन्तों में जकड़ लेगी।' एक ओर आन्तरिक बाह्य अस्मिता के संकट से मुक्ति का CV/ विश्व संहार का यह भय और आतंक है, तो दूसरी उपाय अहिंसक क्रान्ति देकर क्या स्थायी शांति और /
ओर यह मान्यता जोर पकड़ रही है कि रचनात्मक सुव्यवस्था का प्रमाण बन सकती है ? इसी दृष्टि से पदार्थवाद और नैतिक क्रान्ति मानवीय मूल्यों के आज गम्भीर विचारक और चिन्तक अहिंसा के । मानदण्ड के रूप में ही अहिंसक समाज व संस्कृति दार्शनिक और धार्मिक पक्ष के साथ-साथ उसकी के लिए स्थायी विश्वशान्ति के हेत बन सकते हैं। सामाजिक, आथिक और राजनैतिक उपयोगिता सामाजिक व सांस्कृतिक विकास आज द्वयर्थक हो और इयत्ता पर उन्मुक्त भाव से विचार कर रहे हैं । रहा है। एक ओर तकनीकी व वैज्ञानिक आवि- एक उदाहरण पर्याप्त होगा। कारों ने राष्ट्रों के आचार-विचार-व्यवहार में परि- टी. के. उन्नीथन एवं योगेन्द्रसिंह के सर्वेक्षण के वर्तन कर दिया है तो दूसरी ओर सत्ता व शासन की अनुसार आज नेपाल, श्रीलंका और भारत का अमित महत्वकांक्षाओं ने चुनौतियाँ उत्पन्न करतनाव ७० प्रतिशत कुलीन बर्ग और ६३८ सामान्य वर्ग और संघर्ष उपस्थित किया है। कोई राष्ट्र अन्य उन्नत अहिंसा को प्रधानतः राजनीतिक और सामाजिक राष्ट्रों से पिछड़ना नहीं चाहता, दूसरी ओर सामान्य स्वरूप में स्वीकार करता है। ये वर्ग सभी धर्मों के जनता शान्ति, सुव्यवस्था और सामाजिक परि- हैं । इन वर्गों की दृढ़ मान्यता है कि अहिंसा की वर्तनों की मांग कर परस्पर सौमनस्य और सौरस्य उपलब्धि से मानव जाति का नैतिक और आध्याका आग्रह कर रही है । युद्ध की भयावहता इससे त्मिक विकास होगा। उन्नीथन ने अहिंसा की। ही स्पष्ट है कि आज संहार अस्त्रों पर तीस हजार संगति और स्वीकृति का समाजशास्त्रीय पद्धति से डालर प्रति सैकेण्ड खर्च हो रहे हैं और उधर हर दो विश्लेषण कर यह निष्कर्ष निकाला है कि "हमारे । ३४४
चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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