Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
ना चाहते हैं । नौकर ने कहा- मुझे आप लिस्ट बना- शिखर पर पहुँचे हैं, उनमें कर्तव्य-पालन की भावना
कर दे दीजिए, जो-जो काम करना है, वह पूरी अवश्य रही है । युवक जीवन में इन मुख्य गुणों के 12 वफादारी से करूगा । उस व्यक्ति ने एक लम्बी साथ-साथ कुछ ऐसे गुण भी आवश्यक हैं, जिन्हें । लिस्ट (सूची) टाइप करवाकर सर्वेन्ट को दे दी। हम जीवन-महल की नींव कह सकते हैं, या जीवन सुबह से शाम तक, यह तुम्हारी ड्यूटी है। उसने पुस्तक की भूमिका कहा जा सकता है। वे सुनने 110) देखा-सुबह, सबसे पहले बॉस टहलने के लिए में बहुत ही सामान्य गुण हैं, किन्तु आचरण में 'मोरनिंग-बाक' के लिए जाते हैं, तब उनके साथ- असामान्य लाभ देते हैं। सच्चाई, ईमानदारी, साथ जाना है।
सदाचार, विनम्रता और सदा प्रसन्नमुखता-ये __एक दिन मालिक नहर के किनारे-किनारे .
गुण ऐसे साधारण लगते हैं, जैसे जीने के लिए
पानी या हवा बहुत साधारण तत्व प्रतीत होते हैं, टहल रहा था, टहलते हुए उसका एक पाँव फिसल
किन्तु जैसे पानी व पवन के बिना जीवन संभव गया और छपाक से नहर में डुबकियाँ लगाने लगा,
नहीं है, उसी प्रकार इन गुणों के बिना जीवन में | चिल्लाया-'बचाओ' ! 'निकालो' ! पीछे-पीछे आता नौकर रुका, बोला, ठहरो-अभी देखता हूँ,
सफलता और सुख कभी संभव नहीं है।
___आज का युवा वर्ग अपने आप को पहचाने, अपनी ड्यूटी की लिस्ट में मालिक के नहर में
अपनी शक्तियों को पहचाने. और उन शक्तियों को गिरने पर, निकालने की ड्यूटी लिखी है,
जगाने के लिए प्रयत्नशील बने,जीवन को सुसंस्काO नहीं ?
रित करने के लिए दृढ-संकल्प ले, तो कोई तो इस प्रकार की भावना, मालिक और नहीं कि युवा शक्ति का यह उद्घोष-इस C नौकर के बीच हो, परिवार और समाज में हो, धरती पे लायेंगे स्वर्ग उतार के सफल नहीं हो। तो वहां कौन, किसका सुख-दुःख बांटेगा? कोई अवश्य सफल हो सकता है । आज के युग में शिक्षा किसी के काम नहीं आयेगा ? अतः आवश्यक है, प्रसार काफी हुआ है, मगर संस्कार-प्रसार नहीं हो । आप जीवन में कर्तव्य पालन की भावना जगाएँ। पाया है, अतः जरूरत है, युवा शक्ति को संस्कारित एक अधिकार के लिए कुत्तों की तरह छीना-झपटी न संगठित और अनुशासित होने की।"...""जीवन करें । संसार में जितने भी व्यक्ति सफलता के निर्माण करके राष्ट्र-निर्माण में जुटने की 0 5 (शेष पृष्ठ २६८ का) प्रत्येक आत्मा जिनागम में प्रतिपादित, मुक्तिमार्ग का जयजगत्' लिखकर विश्व को अपना आशीर्वाद का पालनकर ईश्वरत्व प्राप्त कर सकता है । सहि- प्रदान किया है । भूदान-पद के सम्बन्ध में अपनी ष्णुता, समानता, सर्वजीवसमभावादि की नींव पर देश-व्यापी यात्राओं में सन्त विनोबा दिलों को ही तो टिका है 'सर्वोदय' का दीप-स्तम्भ, जो आज जोड़ने का स्तुत्य प्रयास करते रहे। उनका 'जयकी भटकी मानवता का मार्ग आलोकित कर सकता जगत्' का उद्घोष अहिंसा, अनेकान्तादि समन्वय
वादी सिद्धान्तों को व्यवहार में लाने से ही 'सर्वोआचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा से 'जैनधर्म- दय' को अर्थवत्ता प्रदान कर सकता है। सबकी सार' नामक उपयोगी पुस्तक श्री जिनेन्द्रवर्णीजी ने उन्नति से विश्वबन्धुत्व और विश्व-नागरिकता को तैयार की। उसके 'निवेदन' के अन्त में 'विनोबा सही दिशा मिल सकती है।
MONOMON
-
१ जैनधर्मसार, श्लोक ३-४ ३१०
चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 83-60 साध्वीरत्न कुसमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
ON
Jain E
rion International
Bor Sivale & Personal Use Only