Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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ज्ञानवान् माना गया है। और उसकी मुक्ति क्लेशों श्रीमदभागवत में कृष्ण ने अपने प्रिय भक्त उद्धव के क्षीण होने से होती है। परन्तु कैवल्य की प्राप्ति को ध्यान की विधि बताते हुए कहा हैतो ध्यान करने से ही होती है।
कणिकायां न्यसेन सूर्य सोमाग्नीनुत्तरोत्तरम् । योगिराज अरविन्द के अनुसार हृदय चक्र पर वन्हिमध्ये स्मरेद्र पं ममे तद् ध्यान मंगलम् ॥ एकाग्रता से ध्यान करने पर हृदय चैत्य (चित्त में
अर्थात् हृदय कमल को ऊपर की ओर खिला 1) स्थित) पुरुष के लिए खुलता है। अरविन्दाश्रम की
हआ वाला बीच की कली सहित चिंतन करें और माँ ने लिखा है, 'हृदय में ध्यान करे, सारी चेतना को
उस कली में क्रमशः सूर्य, चन्द्र और अग्नि की बटोरकर ध्यान में डूब जाये इससे हृदय में स्थित
भावना करें और अग्नि के मध्य में मेरे रूप का ईश्वर का अंश जाग उठेगा। और हम अपने को ।
ध्यान करें। यह ध्यान अति मंगलमय है। . भक्ति-प्रेम-शान्ति के अगाध सागर में पायेंगे।'
कुछ साधक अनाहत चक्र पर द्वादश दलात्मक भ्रू मध्य पर एकाग्रतापूर्वक ध्यान करने से मान- रक्तकमल का और उसके मध्य में क्षितिज पर उदय सिक चक्र उच्चतर चेतना के लिए खुल जाता है। होते हुए सूर्य का ध्यान करते हैं। उच्चतर चेतना विकसित होने से अह का विलय यह सब विवेचन अत्यन्त संक्षिप्त है। नियुक्ति. होता है । आत्मा की दिव्य अनुभूति से हमारा तार- चणि, भाष्य, आगम तथा आगमेतर अन्य ग्रन्थों में तम्य (सम्पर्क) हो जाता है।
__ ध्यान के सम्बन्ध में प्रचुर सामग्री प्राप्त होती है । ___ महर्षि रमण के अनुसार यदि आप ठीक से अधिकारी पुरुषों को उक्त ग्रंथों का स्वाध्याय अवश्य ध्यान करते हैं तो परिणामस्वरूप एक अलौकिक करना चाहिए तथा ध्यान के अमोघ लाभ अवश्य विचारधारा उत्पन्न होगी और वह धारा आपके प्राप्त करने चाहिए। मन में निरन्तर प्रवाहित होती रहेगी चाहे आप कोई भी कार्य करें। इसीलिए महर्षि रमण कर्म और ज्ञान में कोई तात्विक भेद नहीं मानते ।
सन्दर्भ १ आवश्यक नियुक्ति गाथा ४८ आवश्यक चूणि पूर्व भाग पृष्ठ २०१ २ आवश्यक चणि पूर्व भाग पृष्ठ ३००
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जह डझइ तणकट्ठ जालामालाउलेण जलणेण । तह जीवस्स वि डज्झइ कम्मरयं झाण जोएण ।।
-कुवलयमाला १७६ जिस तरह तृण या काष्ठ को अग्नि की ज्वाला जला डालती है वैसे ही ध्यानरूप अग्नि से जोव कमरज को भस्म कर देता है।
तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
0665 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ooo
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