Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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Cil को सबसे अधिक महत्व देते हैं । भूत, भविष्य और आत्मा के सम्बन्ध में बौद्धदर्शन की चार मान्य
वर्तमान को अस्तिरूप मानते हैं। ज्ञान-ज्ञ य दोनों तायें हैं
वास्तविक हैं । बाह्य पदार्थों का अस्तित्व स्वीकार १. पाँच स्कन्धों को छोड़कर आत्मा कोई 6 करते हैं । प्रत्येक पदार्थ, उत्पत्ति, स्थिति, जरा पृथक् पदार्थ नहीं है । और मरण इन चार क्षयों तक अवस्थित रहता है।
२. पाँच स्कन्धों के अतिरिक्त आत्मा प्रथक् इसीलिए ये सर्वास्तिवादी कहलाते हैं ।
पदार्थ है। ३. माध्यमिक शून्यवादी अथवा नैरात्मक
३. आत्मा का अस्तित्व तो है, किन्तु उसे अस्ति वादी कहलाते है। इनका कथन है कि पदार्थ का
और नास्ति दोनों नहीं कह सकते हैं। निरोध, उत्पाद, उच्छेद नहीं होता है, न गमन व आगमन होता है । अतः संपूर्ण धर्म माया के समान ४. आत्मा है या नहीं, यह कहना असंभव है। होने से निस्स्वभाव हैं। जो जिसका स्वभाव है, बौद्धदर्शन में प्रमाण और प्रमाण का फल भिन्न
वह उससे कभी अलग नहीं होता है, और अन्य की नहीं है । क्योंकि पदार्थों को जानने के सिवाय GAIB अपेक्षा नहीं रखता । दृश्यमान सभी पदार्थ अपनी- प्रमाण का कोई दूसरा फल नहीं कहा जा सकता है
अपनी हेतु-प्रत्यय सामग्री से उत्पन्न होते हैं । संपूर्ण है। इसलिए प्रमाण और उसके फल को सर्वथा पदार्थ परस्पर सापेक्ष हैं। कोई भी पदार्थ सर्वथा अभिन्न मानना चाहिए। निरपेक्ष दृष्टिगोचर नहीं होता है । जो पदार्थ भाव
। प्रत्येक पदार्थ क्षणिक है। प्रत्येक वस्तु अपने या अभाव रूप से हमें प्रतीत होते हैं, वे केवल - संवृत्ति अथवा लोक सत्य की दृष्टि से प्रतीत होते
उत्पन्न होने के दूसरे क्षण में ही नष्ट हो जाती है।
___ यदि पदार्थों का स्वभाव नष्ट होना न माना जाए हैं । परमार्थ सत्य की अपेक्षा से निर्वाण ही सत्य
तो घड़े और लाठी का संघर्ष होने पर घड़े का नाश
र है । यह परमार्थ सत्य बुद्धि के अगोचर, अनभि
__नहीं होना चाहिये । अवयवों को छोड़कर अबयवी लाप्य अनक्षर है। अभिधेय-अभिधान से रहित है,
__ कोई भिन्न वस्तु नहीं है। किन्तु भ्रम के कारण फिर भी संसार के प्राणियों को निर्वाण का मार्ग
अवयव ही अवयवी रूप प्रतीत होते हैं। बताने के लिए संवृत्ति सत्य का उपयोग करना पड़ता है।
विशेष को छोड़कर सामान्य कोई वस्तु नहीं | ४. योगाचार को विज्ञानवादी भी कहते हैं। है । क्षणिक पदार्थों का ज्ञान उनके असाधारण रूप इसके मत से भी सभी पदार्थ निस्स्वभाव है। से ही होता है । इसलिए सम्पूर्ण पदार्थ स्वलक्षण विज्ञान को छोड़कर बाह्य पदार्थ कोई वस्तु नहीं। (विशेष रूप) है। अनादि वासना के कारण पदार्थों का एकत्व, अन्यत्व यह बौद्धदर्शन के चिन्तन की सामान्य रूपरेखा उभयत्व और अनुभयत्व रूप ज्ञान होता है। के। वास्तव में तो समस्त भाव स्वप्नज्ञान, माया और
सांख्यदर्शन-शुद्ध आत्मा के तत्वज्ञान को गंधर्व नगर के समान असत् हैं। परमार्थ सत्य से
अथवा सम्यग्दर्शन का प्रतिपादन करने वाले अथवा स्वप्रकाशक विज्ञान ही सत्य है। दृश्यमान जगत्
प्रकृति पुरुष आदि पच्चीस तत्वों का वर्णन करने EV) विज्ञान का ही परिणाम है और संवृत्तिसत्य से ही
वाले शास्त्र को सांख्यदर्शन कहते हैं। दृष्टिगोचर होता है । चित्त वासना का मूल कारण है। चित्त में सम्पूर्ण धर्म कार्य रूप से उप- सांख्य वेदों व यज्ञ-यागादि को नहीं मानते हैं। निबद्ध होते हैं।
तत्वज्ञान और अहिंसा पर अधिक भार देते हैं।
तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
30 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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