Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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जो भी हो वही हमें सौंप दो। वरना"।" शायद भयानक गर्जनाएँ सुनाई देने लगीं। शनैः-शनैः ये ६ ये सब डाकू थे और बोलने वाला उनका सरदार। गर्जनाएँ समीप आती गईं। जिधर से आवाज आभार
"वरना...'वरना.."क्या कर लोगे....'लो....।" रही थी, उधर देखा तो थोड़ी दूर पर दो टिम- II इतना कहकर आपने जोर-जोर से मन्त्राधिराज टिमाते दीये-से दिखाई दिये और उसी के साथ ३ नवकार सुनाना आरम्भ कर दिया। जैसे ही नव- पुनः गजेना । सभी साध्वियों उठकर बैठी हो गई। कार मन्त्र समाप्त हआ वैसे ही बाहर से आवाज प्राण सभा का प्रिय हात ह
प्राण सभी को प्रिय होते हैं। शेर की आवाज से आई-"हमारी भूल माफ करना महाराज सा.।
भय भी लग रहा था । आपने अपना ध्यान आरम्भ
भय भा लग रहा था । अ अब आप निर्भय होकर यहाँ रात बिताओ।" इतना कर दिया । आत्मस्थ हो गयी । थोड़ी देर में शेर कहकर वे वहाँ से हट गये और कूए से पानी पीकर गर्जना करता हुआ चला गया। सबने राहत की अनजान दिशा की ओर चले गये। यह घटना सांस ली और प्रातः होते ही वहां से विहार कर आपकी साधना और साहस की परिचायक है। दिया ।
मासखमण शेर गर्जना करता रहा
सन् १९७८ में आपका वर्षावास चाँदनी चौक ___ एक बार आप अपनी सद्गुरुवर्या के साथ
दिल्ली में था। आपके उपदेशों से प्रभावित होकर विचरण करते हुए देलवाड़ा से उदयपुर पधार रही
श्रीमती उषादेवी चौरडिया ने मासखमण का तप थीं। मार्ग की विषमता और कुछ अस्वस्थता के
किया। उन्होंने भरे-पूरे परिवार को छोड़कर
तपस्या के दिनों में आपके चरणों का शरणा कारण एक दो साध्वीजी को कमजोरी के कारण चलने में कठिनाई हो रही थी । चोरवा घाटे के
लिया। मासखमण की अवधि में श्रीमती चौरऊपर आते-आते उन्होंने जवाब दे दिया। अशक्तता
डिया कभी-कभी अस्वस्थ हो जाती तो आपके इतनी अधिक हो गई थी कि बिलकुल ही चला नहीं ।
- चरणों में झुक जातीं । आप उनको कुछ सुनाती तो जा रहा था। तब चीरवा घाटे के ऊपर ही ठहरने
वे सुनते ही एकदम स्वस्थ हो जातीं। वे कहती हैं का निर्णय कर लिया। वही समीप ही पुलिस वाले
कि महासतीजी की कृपा से उनका मासखमण का भी थे। पुलिस वालों ने कहा भी कि आप लोग
तप हो सका है। यहाँ न ठहरें। यहाँ रात्रि में शेर आते हैं। यहाँ ठहरना अपने आपको खतरे में डालना है। किन्तु और फिर भी भोजन बच गया जब एक कदम भी चला नहीं जा रहा हो तो आगे किस प्रकार बढ़ा जाये ? बाध्य होकर वहीं ठहर सन् १९८७ का आपका चातुर्मास उदयपुर के
गये। रात्रि में पुलिस वालों ने तो अग्नि जलाकर निकट स्थित छोटे-से ग्राम नान्देशमा में था। यहाँ * अपनी सुरक्षा की व्यवस्था कर ली और उनके पास श्रमणसंघीय आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषिजी
की थीं। अग्नि के जलने से प्रकाश भी म. सा. का जन्म जयन्ती का आयोजन किया गया हो गया।
था। जिस भाई के यहाँ भोजन की व्यवस्था थी, इधर जहाँ आप ठहरी हुई थीं, अन्धकार था उन्होंने अनुमान से लगभग दो सौ व्यक्तियों के किन्तु इस अन्धकार के साथ जाप का, संयम का लिए भोजन तैयार करवा लिया। किन्तु इस दिन अद्भुत प्रकाश था? आधी रात के पश्चात् शेर की आसपास के ग्राम नगरों से लगभग तीन-चार सौ
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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