Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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सामाजिक चरित्र के
नैतिक उत्थान में जैनधर्म के दश लक्षणों
को
प्रासंगिक उपयोगिता
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- प्रो० चन्द्रशेखर राय विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, बी० एस० एस० कॉलेज, बचरी, पोरो, भोजपुर, बिहार
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आत्म-स्वरूप की ओर ले जानेवाले और समाज को संधारण करने वाले विचार एवं प्रवृतियाँ धर्म हैं । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञान भौतिक जगत् के नियमों का अनुसन्धान करता है, उसी प्रकार धर्म नैतिक एव तात्विक जगत् के आन्तरिक नियमों का अन्वेषण करता है । दोनों ही अपने-अपने ढंग से मनुष्य जगत के लिए मोक्ष का द्वार प्रशस्त करते हैं । अतः जो प्राणियों को संसार के दुःख से उठा कर उत्तम मुख ( वीतराग सुख ) में धारण करे उसे धर्म कहते हैं । 2
संसार के प्राचीनतम धर्मो में जैन धर्म भी एक है । यह विश्व का एक अति प्राचीन तथा स्वतन्त्र धर्म है । यह स्मरणातीत काल से इस भारतभूमि पर अपना विकास एवं विस्तार कर रहा है। वर्तमान युग में भी इसकी प्रासंगिक उपयोगिता ज्यों की त्यों है। राग-द्वेष रूप दुर्भावों से उत्पन्न मानसिक अवस्थाओं के लिए दस प्रकार के धर्मों का निरूपण किया गया है। इनका आचरण करने से आत्मा में कर्म का प्रवेश रुक जाता है । ये दस धर्म निम्नलिखित हैं
जैन दर्शन में उपशमन के
उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यत्ब्रह्मचर्याणि धर्मः ।
अर्थात् - उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शोच, सत्य, संयम, तपत्याग, आकिंचन्य, और ब्रह्मचर्य - ये दस उत्तम धर्म हैं । इन दस धर्मों का सामान्य परिचय इस प्रकार है
(१) उत्तम क्षमा - सहनशीलता अर्थात् क्रोध न करना और साथ ही उत्पन्न क्रोध को विवेक एवं नम्र भाव से दबा डालना ही उत्तम क्षमा है । दूसरे शब्दों में क्रोध की स्थितियों में भी मन के संयम को विकृत न होने देना उत्तम क्षमा है, जिस क्षमा से कायरता का बोध हो, आत्मा में दीनता का अनुभव हो, वह धर्म नहीं है, बल्कि क्षमाभास है, दूषण है । मन पर विजय पाना बहुत बड़े साहसी और वीर पुरुष का कार्य है । शक्ति के अभाव के कारण बदला न लेना क्षमा नहीं है | क्षमा के लिए जीव में निम्नलिखित भावों का होना अनिवार्य बताया गया है
(१) क्रोधोत्पन्न स्थिति में अपने में क्रोध का कारण ढूँढना,
(२) क्रोध से होने वाले दोषों का चिन्तन करना,
(३) दूसरे के द्वारा अपमान किए जाने पर नासमझ समझकर बदले की भावना का परित्याग करना ।
तृतीय खण्ड : धर्मं तथा दर्शन
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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