Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
सर्प चला गया
आना-जाना शुरू हुआ (मांगलिक सुनने आया था)
डूंगला की यह घटना इसी वर्ष (वि. सं. २०४६) __ यह घटना इसी वर्ष १९८६ की है। आप अपनी की है। यहाँ के श्री भंवरलाल जी मेहता की पुत्रशिष्याओं के साथ चित्तौड़ से उदयपुर पधार रही वध को विवाह के पश्चात् से उसके पितृ परिवारमा
परशन करवाना था। में नहीं भेज रहे थे। लगभग आठ वर्ष बीत गए । उदयपुर से बीस कि० मी० दूर डबोक नामक गाँव समाज के लोगों ने समझाने का प्रयास किया । है। वहीं चौराहे पर श्री शान्तिलाल जी कोठारी के कुछ सन्त-सतियों ने भी समझाया, लेकिन मायके वहां ठहरे । रात्रि प्रतिक्रमण के पश्चात् वहाँ कहीं भेजना स्वीकार नहीं किया। से एक सर्प आ गया। उस सर्प को भगाने का
संयोग से इस वर्ष महासती श्री कुसुमवतीजी प्रयास किया गया, किन्तु वह नहीं गया। नहीं गया, यहा तक तो ठीक था, पर उसने फफकारा भी नहीं म. सा. चातुर्मास डूंगला में हुआ। महासतीजी म. और शान्त बैठा रहा । जब देखा कि सर्प नहीं जा के सम्मुख भी यह समस्या आई । महासती जी के रहा है तो आपने उसे लक्ष्य कर मांगलिक सताया। सरल, शान्त जीवन, प्रभावोत्पादक प्रवचनों एवं मांगलिक सुनते ही वह सर्प चुपचाप चला गया। प्रर
या प्रेरणा का प्रभाव हुआ और पुत्रवधू को मातृ-गृह उसके जाने के थोड़ी ही देर बाद आसपास देखा. जाने-आने को अनुमति मिल गई। इस आठ वर्ष चारों ओर देखा, किन्तु वह कहीं भी दिखाई पुरानी समस्या को इतनी आसानी से सुलझी हुई, नहीं दिया । जहाँ हम ठहरे थे, उन घर वालों ने जानकर न केवल दोनों परिवारों में हर्ष और आनंद कहा कि हमें यहाँ रहते हुए छः वर्ष हो गये हैं। व्याप्त हो गया, वरन् सम्पूर्ण गाँव में प्रसन्नता को हमने कभी यहाँ सर्प देखा ही नहीं। सभी को इस लहर फैल गई । अब सब आनन्द हो आनन्द है। घटना से बड़ा आश्चर्य हआ। सर्प तो मांगलिक सुनने आया था, सुनकर चला गया।
महासती श्री कुसुमवतीजी महाराज साहब की प्रेरणा से
स्थापित सस्थाओं का परिचय १. तारक गुरु जैन धार्मिक पाठशाला, डबोक- पाठशालायें समुचित व्यवस्था के अभाव में कुछ 0व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान दिन तक चलकर बन्द हो जाती हैं। लेकिन उदय
होना भी आवश्यक है। उसके अभाव में जीवन पुर के समीप ग्राम डबोक में आपकी प्रेरणा से पतनोन्मुख हो सकता है। इसलिए महासती जी स्थापित धार्मिक पाठशाला ३०-३२ वर्षों से नियसदव धार्मिक शिक्षण के लिए भी समाज को प्रेरणा मित चल रही है। प्रदान करती रहती हैं। समय-समय पर आप अपने इस पाठशाला में अभी तक अनेक बालक-
उपदेशों में बालक/बालिकाओं को धार्मिक शिक्षा/ बालिकायें सामायिक, प्रतिक्रमण, स्तोत्र, थोकड़े है संस्कार दिलाने के लिए धार्मिक पाठशालायें स्था- आदि धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन व्यवहार
पित करने की बात पर भी जोर देती हैं। आपके की शिक्षा एवं संस्कार प्राप्त कर चुकी हैं । इसके सदुपदेशों से अनेक स्थानों पर धार्मिक पाठशालायें परिणामस्वरूप वे अपना सांसारिक जीवन सुखखोली गई। प्रायः ऐसा होता है कि ये धार्मिक पूर्वक व्यतीत कर रहे हैं । द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
१७१
100
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
Jalleducation International
Private
Personal use only
www.jainerbrary.org