Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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श्रीमती उषाजी धर्मपत्नी श्री इन्दरचन्दजी चौरडिया ने मासखमण की उग्र तपस्या की। तपस्या के साथ Kा जो आडम्बर होता था, उसका आपने बहुत विरोध किया । फलस्वरूप इस चातुर्मास में तपस्या पर आड
| म्बर बाजे-गाजे आदि बन्द हो गए। STS बाढ़ पीड़ितों की सहायता- इस वर्ष वर्षाकाल में अत्यधिक वर्षा हुई। जिसके परिणामस्वरूप.
नदियाँ और नालों में भीषण बाढ़ आई और इस बाढ़ ने अपना ताण्डव दिखाया। अनेक स्थानों पर घर मकान ढह गये । लोग बेघर हो गये । अनेक स्त्री और पुरुष तथा बच्चे बाढ़ से घिर गये थे । दया की। मूर्ति, करुणा की सागर महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. ने जब बाढ़ के प्रकोप का विवरण सुना तो उनका हृदय चीत्कार कर उठा । अब आपके प्रवचनों की धारा का प्रवाह बदल गया। अपने प्रवचनों में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिये आप बहुत जोर देने लगीं। इसका परिणाम भी सामने आया।
आपके उपदेशों से प्रेरित होकर दानदाताओं ने मुक्त हृदय से दान दिया और एकत्रित धनराशि बाढ़अशा पीड़ितों के सहायतार्थ भेज दी गई। चांदनी चौक दिल्ली का वषावास हर्ष, उमंग और उत्साह के साथ | सानन्द सम्पन्न हआ। वर्षावास के पश्चात चाँदनी चौक दिल्ली में ही आपके सान्निध्य में जयपर निवासिनी वैराग्यवती कुमारी सविता को आहती दीक्षा प्रदान कर साध्वी विनयप्रभा नाम रखा।
- वर्षावास के पश्चात दिल्ली के उपनगरों में विचरण किया । उपनगरों में भी आपके प्रवचनों (EMI का अच्छा प्रभाव रहा। इसी बीच वीर नगर दिल्ली के श्रीसंघ ने आगामी वर्षावास के लिये विनयपुवक
आग्रह कियः । आपका विचार तो अब पुनः राजस्थान की ओर विहार करने का था किन्तु वीर नगर
वालों की विनती अत्यधिक आग्रह-भरी थी और आप उन्हें इन्कार नहीं कर सकी और वि. सं. २०३५ हा के वर्षावास के लिए वीर नगर वालों को स्वीकृति प्रदान कर दी। चातुर्मास निश्चित हो चुका था।
शेष काल में दिल्ली में वि वरते हुए उत्तर प्रदेश की ओर विहार कर दिया। उत्तर प्रदेश के बड़ौत, काँधला, मेरठ, गाजियाबाद आदि अनेक छोटे-बड़े क्षेत्रों को अपनी पावन चरण रज से पावन किया और
धर्म की गंगा प्रवाहित की। आपके सदुपदेशों से प्रतिबोध पाकर मेरठ निवासी गीता कुमारी के हृदय में (ER) वैराग्य भावना जागृत हुई । वह भी आपके साथ-साथ विहार करती हुई दिल्ली आई।
वि. सं. २०३५ का आपका वर्षावास वीर नगर, दिल्ली में हुआ। वीर नगर जैन कालोनी है। वहाँ सभी जैन धर्मावलम्बी रहते हैं। वे सब पंजाबी हैं। पंजाबी जैन लोगों में धर्म की भावना बहत अधिक थी। प्रवचन में प्रतिदिन अच्छी उपस्थिति रहती थी। तपश्चर्यायें भी प्रचुर मात्रा में हुई। स्थानीय संघ ने स्वागत व विदाई का विराट आयोजन किया। वर्षावास की अवधि में पंजाब के विभिन्न
क्षेत्रों के श्रीसंघ भी उपस्थित हए । सभी ने पंजाब की ओर पधारकर अपने-अपने क्षेत्रों को पावन करने 1 का आग्रह किया। यद्यपि आपकी भावना तो राजस्थान की ओर जाने की थी, किंतु पंजाब के लोगों की
धार्मिक भावना, विनयशीलता और आग्रह को देखकर वर्षावास के पश्चात् पंजाब की ओर विहार करने का आपका मानस बन गया।
पंजाब की ओर-वीर नगर, दिल्ली का चातुर्मास सानन्द सम्पन्न कर आपने दिल्ली से पंजाब की ओर विहार कर दिया। विहार करते हुए आप सोनीपत पधारे । उस समय वहाँ शासन प्रभावक श्री । सुदर्शन मुनिजी म. सा. विराज रहे थे। उनके सान्निध्य में दो वैरागी भाइयों C वाली थी। इसके पूर्व भी कांधला में श्री सुदर्शन मुनिजी म. सा. के दर्शन हो चुके थे और परिचय भी हो
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन |
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थOoes
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