Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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निवासियों को मांसाहार को अभक्ष्य प्रमाणित कर उसका त्याग करने के लिए प्ररणा प्रदान की। बहुत-सी महिलाओं को आपने नियम भी करवाये कि आप अपने घर में/रसोईघर में मांस नहीं पकाओगी। उन लोगों में आपने जैनधर्म की शिक्षाओं का भी प्रचार किया। आपने उन लोगों को नमस्कार महामन्त्र का महत्व और उसका अद्भुत प्रभाव भी बताया। इसका परिणाम यह हुआ कि अनेक स्त्री-पुरुष और बच्चों ने श्रद्धा से नमस्कार महामन्त्र को कंठस्थ किया। आपने लोगों को नमस्कार महामन्त्र के नित्य स्मरण से होने वाले विशिष्ट लाभों को भी बताया।
श्रीनगर प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से जहाँ एक ओर भारत का स्वर्ग है, वहीं दूसरी ओर का पशुओं का मांस लटकने के कारण वीभत्स बना हुआ नरक भी लगता है। यहाँ पशुओं का वध कर उनका मांस खुलेआम बाजारों में बिक्री के लिए लटका दिया जाता है। श्रीनगर में श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी, मूर्तिपूजक, तेरापंथी आदि सब मिलाकर जैन मतावलम्बियों के कुल २०-२५ घर हैं। महासतो श्री कुसमवतीजी म. सा. ने इन सभी को साम्प्रदायिक भेद भुलाकर संगठित रूप से एक होकर रहने का उपदेश दिया । आपके प्रवचनों का यहाँ भी अच्छा प्रभाव रहा।
उग्र विहार और अवरोध-जम्मू से विहार कर आप अपनी शिष्याओं के साथ पन्द्रह दिन में 2 श्रीनगर पहुंची थी। दस दिन तक श्रीनगर में ठहरकर आपने जैनधर्म की प्रभावना की। इसके । पश्चात् श्रीनगर से लम्बे-लम्बे विहार कर वर्षावास हेतु आप पन्द्रह दिन में जम्मू पधारी। बीस पच्चीस किलोमीटर का विहार तो आपका प्रायः होता ही था किन्तु एक बार इकत्तीस और एक बार छत्तीस 1 किलोमीटर का विहार किया। उधर मौसम की अनिश्चितता रहती है। कभी वर्षा रोक देती, तो । कभी पहाड़ों पर पड़ी बर्फ ठिठुरा देती अ
र पडी बर्फ ठिठरा देती और मार्ग अवरुद्ध कर देती। जब मार्ग ही बन्द है तो फिर
कस प्रकार सम्भव होता। इसी प्रकार की अनेक कठिनाइयों का सामना करते हए वि. सं. ॥ २०३७ के वर्षावास हेतु जम्मू नगर में आपका पदार्पण हुआ।
वर्षावास जम्मू-जम्मू आगमन पर श्रीसंघ जम्मू ने आपका भावभीना स्वागत किया और टूर Co समारोहपूर्वक नगर प्रवेश करवाया। जम्म महिला संघ की सेक्रेटरी श्रीमती कलावतीजी ने आपका
स्वागत करते हुए कहा-"हमें तो विश्वास ही नहीं था कि आप वहाँ तक पधारकर वापस यहाँ पधार ' जावेगी। क्योंकि इतने कम समय में तीन सौ कि० मी० जाना और वापस आना और उस पर मार्ग
की अनेक बाधायें और असुविधायें, यह सब अति दुष्कर कार्य था। किन्तु आपने जैसा, सोचा वैसा । A कर दिखाया । वास्तव में आप मेवाडसिंहनी हैं। आप जैसी दृढ इच्छा शक्ति वाली साधिका के ही सामर्थ्य का यह कार्य है।"
सम्पूर्ण चातुर्मास काल विभिन्न धर्माराधनाओं में व्यतीत हुआ और इस प्रकार यह ऐतिहासिक चातुर्मास सानन्द उल्लासमय वातावरण में समाप्त हुआ।
विहार और पुनः सन्त-मिलन-चातुर्मास समाप्त होते ही आपने अपनी शिष्याओं के साथ र विहार कर दिया । अमृतसर, जालन्धर, लुधियाना आदि पंजाब के प्रमुख बड़े-बड़े क्षेत्रों को पावन किया । मार्ग में आने वाले छोटे-छोटे गाँवों में भी धर्म-ध्यान का उपदेश फरमाया ।।
लुधियाना में शान्त-दांत, गुण-गम्भीर, उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्दजी म. सा., कविचक्र चूड़ामणि श्री चन्दनमुनिजी म. सा. आदि मुनिवृन्द एवं साध्वीप्रमुखा महासती श्री लज्जावतीजी म. सा., महासती श्री अभयकुमारी जी म. सा. आदि साध्वी वृन्द के दर्शन हुए। मिलन हुआ। पण्डितरत्न श्री
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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