Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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ज्ञान आराधना को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। नियमित करती हैं। चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, आठ दस वर्षों तक निरन्तर अध्ययन में जुटे रहे। अशक्त हों, रुग्ण हों, फिर भी आपका जप निरन्तर आपने आगमों का गहन अभ्यास किया। बत्तीस चलता रहता है। किसी भी स्थिति में आप जप ही आगमों का आपने कई बार अवलोकन/अवगाहन बन्द नहीं करती हैं। किया । लघु सिद्धान्त कौमुदी, सिद्धान्त कौमुदी को प्रभावक प्रवचनदात्री-प्रवचन गद्य-साहित्य की
कण्ठस्थ किया। हिन्दी, संस्कृत और प्राकृत के अन्य एक विशिष्ट विधा है। साधारण वाणी को वचन Sill साहित्य का अध्ययन भी किया। साहित्यिक कहा जाता है किन्त सन्त मनिराजों और आध्या
अध्ययन के साथ-साथ आपने दार्शनिक ग्रन्थों का त्मिक अनुभवियों और विचारकों का कथन प्रवचन
भी अध्ययन किया। कर्म, आत्मा, जीव-जगत्, कहलाता है। प्रवचन में आत्मा का स्पर्श, साधना ॐ मोक्ष, स्याद्वाद, सप्तभंगी, ईश्वर कर्तृत्व आदि का तेज और जीवन का सत्य परिलक्षित होता है। रहस्यों को जाना-समझा। आपने पाथर्डी
हा प्रवचन का प्रभाव तीर की भाँति बेधकड़ता लिये | परीक्षा बोर्ड से जैन सिद्धान्त आचार्य तक की परी- होता है। उसमें प्रयुक्त शब्द, मात्र शब्द नहीं होते,
क्षाएँ दी और बनारस की व्याकरण मध्यमा परीक्षा वे जीवन की गहराइयों और अनुभवों की ऊँचाइयों CAM भी उत्तीर्ण की। आपने संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी का अर्थ लिये होते हैं। भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है। प्रवचनों में पाण्डित्य का प्रदर्शन न होकर
ज्ञान के साथ-साथ आप आचार के भी प्रबल उनका उद्देश्य शास्त्रों में निहित गूढ तथ्यों/रहस्यों पक्षधर हैं। आप अपनी संयमसाधना के प्रति हर को सरल से सरल शब्दों में अभिव्यक्त कर जन5 समय सजग हैं। साधुमर्यादा के विपरीत चलना मानस तक पहुँचाना है। इसी भावना से अभिप्रेरित GB आपको बिलकुल नहीं सुहाता है। आपने सुदूर होकर महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. प्रवचन
प्रान्तों में भी विचरण किया है। वहाँ विषम परि- फरमाती हैं। स्थितियों में भी आप अपनी मर्यादाओं में दृढ़ रहीं। आप अपने ओजस्वी प्रवचनों के माध्यम से दिल्ली और पंजाब में जब आप पधारी तो अनेक सुप्त जन-जीवन को जागृत कर सत्य, शील, सेवा, स्थानों पर समस्याएँ उपस्थित हो जाती थीं-जैसे सदाचार के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करती माइक में बोलने की, व्याख्यान हॉल में पंखे चलने हैं। आपकी मधुर वाणी में संघ एकता, समन्वय, की, फ्लश में निपटने की। लेकिन आप इसका जन-सेवा एवं सामाजिक कुरीतियों के निवारण की स्पष्ट और प्रत्यक्ष विरोध कर देती थीं। आप इस पावन प्रेरणा गूंजती रहती है। बात की चिन्ता नहीं करती थीं कि व्याख्यान में जब आप प्रवचन फरमाती हैं तो श्रोतावर्ग
श्रोताओं की उपस्थिति कम रहेगी। चातुर्मास की मन्त्रमुग्ध हो जाता है। शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को ही स्वीकृति के पूर्व आप लोगों से इस प्रकार की आप सरलतम भाषा में किसी दृष्टान्त के माध्यम
स्वीकृति ले लेती थीं और उसके पश्चात् ही अपनी से स्पष्ट करती हैं। अपने कथन के प्रमाण में स्वीकृति फरमाती थीं।
शास्त्रीय प्रमाण भी प्रस्तुत करती हैं । प्रवचन को || जप साधिका-जपासिद्धिः जपातसिद्धिः सरस और आकर्षक बनाने के लिए बीच-बीच में जपासिद्धि नं संशयः ।
आप काव्य पंक्तियों का भी सस्वर पाठ करती हैं। र आप जप की भी बड़ी दृढ़ साधिका हैं। प्रातः प्रवचन में आपकी भाषा सरल और प्रवाहमयी मातीन चार बजे उठकर जप, माला, ध्यान करती होती है, किन्त वाणी ओजस्वी है। वाणी का प्रभाव
हैं। सायंकाल भी एक घण्टा माला, ध्यान आदि तो यह है कि यदि आपके प्रवचन चल रहे हों और
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 00858
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