Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
37
200000000000000000626
इनके अतिरिक्त नारी, बहन-पुत्री आदि के रूप में भी अपना कर्तव्य निर्वाह करती है। वह कई CH स्थानों पर शांति की अग्रदूत बनकर भी सामने आई है । वह अद्भुत साहस की प्रतिमूर्ति भी है।
नारी : त्याग की प्रतिमूर्ति :-नारी के सदृश त्याग और बलिदान आज तक न तो किसी ने किया है और न कोई करेगा।
जहाँ तक अपने लिए त्याग करना, अपने परिवार के लिए त्याग करना आदि बातों का प्रश्न बसा है, नारी के ऐसे त्याग से ग्रन्थों के पृष्ठ भरे पड़े हैं। वास्तव में त्याग का दूसरा नाम ही नारी है। Sil किन्तु अपने स्वामी (मालिक) के लिये अपनी संतान का बलिदान कर देना विश्व इतिहास का एक अनु
पम उदाहरण है। यह सर्वविदित है कि पन्नाधाय ने अपने भावी राजा की प्राण-रक्षा के लिये अपने पुत्र
का बलिदान कर दिया था। क्या विश्व में ऐसे बलिदान का उदाहरण कहीं मिल सकता है ? नहीं, ॐ कदापि नहीं। यह भारतीय नारी का ही साहस है कि वह ऐसा बलिदान कर सकती है । इसके अति( रिक्त अपने शील की रक्षा के लिए हँसते-हंसते जौहर की ज्वाला में अपने प्राणों की आहुति भी भारतीय नारी ही दे सकती है । रानी पद्मिनी के जौहर जैसा उदाहरण भी मिलना दुर्लभ है।
नारी : कुशल उपदेशिका-माता के रूप में नारी एक कुशल शिक्षक है । साध्वी रूप में उसका यह रूप और भी विकसित हो जाता है। संयमव्रत अंगीकार करने के पश्चात् वह जिनवाणी का प्रचार तो करती ही है, लोगों को अपने उपदेश से प्रतिबोधित भी करती है । उनका पथ प्रशस्त करती है।
यह सर्वविदित है कि भगवान ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र बाहुबली संयम ग्रहण करने के पश्चात् एक वर्ष तक तपस्या करते रहे और झूठे अहं में भी रहे। घोर तपश्चर्या करने के पश्चात् भी केवलज्ञान नहीं हुआ। उनको प्रतिबोधित करने के लिए भगवान ऋषभदेव ने ब्राह्मी और सुन्दरी को भेजा। दोनों बहनें वन में उस स्थान पर गईं जहाँ बाहुबली तपस्यारत थे। उनकी उत्कट तपस्या देखकर दोनों र रोमांचित हो उठी । ब्राह्मी और सन्दरी ने उस समय समवेत स्वर से गाया
वीरा ! म्हारा गज थकी उतरो,
गज चढ्या केवल न होसी रे ! जब यह मधुर स्वर बाहुबली के कर्ण कुहरों में पड़ा तो उनका चिन्तन चल गया। अन्तर झकCL झोर उठा। कौन-सा गज ? कैसा गज ? और तभी उन्हें अहसास हुआ 'अहंकार' रूपी गज का। हाँ, मैं कर
अहंकार रूपी हाथी पर बैठा हूँ । अहंकार चूर-चूर हो गया। अनुजों को वन्दना के लिये उनके कदम उठे | और उन्हें केवलज्ञान हो गया।
रथने मि को प्रतिबोध प्रदान कर सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करने वाली राजीमति भी तो नारी ही थी।
महासती महत्तरा याकिनी ने हरिभद्र को प्रतिबोध प्रदान कर उनकी दिशा ही पलट दी और राज आचार्य श्री हरिभद्रसरि जैन धर्म में सैकड़ों ग्रंथों के रचयिता विद्वान आचार्य के रूप में विख्यात हैं। र
ये कुछ उदाहरण अवश्य हैं किन्तु ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। इन सबसे नारी 2 की महत्ता प्रतिपादित होती है। इस क्षेत्र में भी नारो नर से पीछे नहीं है ।
जैन धर्म में नारी-इस विषय पर तो बहुत कुछ लिया जा सकता है किन्तु यहाँ हमारा उद्देश्य मात्र यही स्पष्ट करने का है कि जैनधर्म का नारी के प्रति दृष्टिकोण क्या है ? निष्पक्ष दृष्टि से देखा जाय तो जैन धर्म में लिंग भेद के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। जो स्थान पुरुष को प्राप्त है, वही स्थान
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
(20 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ oes
Jain Elion International
FO Pate & Personal Use Only
www.jainelibrary.org