Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
जन्म से दीक्षा तक
जन्मभूमि - त्याग और बलिदान की भूमि है राजस्थान | सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस प्रान्त का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मुख को उज्ज्वल करने वाली महान विभूतियों से भी यह भूखण्ड सदैव परिपूर्ण रहा है। यहाँ की समाजमूलक आध्यात्मिक क्रान्तियों ने समय-समय पर देशव्यापी जनमानस को प्रभावित किया है । सन्तों की समन्वयात्मक अन्तर्मुखी साधना से राष्ट्र का नैतिक स्तर समुन्नत रहा है। उनके सारगर्भित उपदेशों और संयम साधना ने जो आदर्श स्थापित किये, उनसे शताब्दियों तक मानवता अनुप्राणित होती रहेगी । सन्तों का औपदेशिक साहित्य प्राचीन होकर आज भी नवीन और विविध भावनाओं से परिपूरित है । समीचीन तथ्यों का नूतन मूल्यांकन भावी पीढ़ी का समुचित मार्गदर्शन करने में पूर्णतः सक्षम है ।
राजस्थान की भूमि की विशेषता है कि उसने एक ओर अजेय योद्धाओं को जन्म दिया तो दूसरी ओर ऐसे सन्त भी अवतरित हुए जिनके संयम की सौरभ से आज भी दिग्-दिगन्त महक रहा है और जिनकी तपश्चर्या की चमक मुमुक्षु साधक को अनुभव हो रही है। उनकी प्रकाश किरणें और चिन्मय चेतना ऐसा स्फुलिंग है, जो सहस्राब्दी तक अमरत्व को लिए हुए है ।
राजस्थान का एक भाग मेवाड़ - मेदपाट के नाम से सुविख्यात है । उसका स्वर्णिम अतीत अत्यन्त गौरवास्पद रहा है । वीरों की कीर्ति - गाथा से यहाँ की भूमि परिप्लावित होती रही है । नारी जाति का उच्चतम आदर्श यहाँ की एक ऐसी विशेषता है जो अन्यत्र दुर्लभ है ।
मेवाड़ की भूमि में प्रकृति सदैव अठखेलियाँ करती रही है । यहाँ के गिरि-कन्दराओं में आत्मस्थ सौन्दर्य को उद्भुत करने वाली शक्ति और कला के उपादान विद्यमान हैं । इसलिए प्रकृति की गोद में पलने वाली संस्कृति की असस्रधारा का प्रवाह निरन्तर गतिशील रहता है । उसके कण-कण में केवल भौतिक शक्ति का ही स्रोत नहीं बहता अपितु आध्यात्मिक शक्ति का प्रवाह भी परिलक्षित होता है । एक ओर मेवाड़ की यह वीरभूमि है तो दूसरी ओर यह त्यागभूमि भी है । जहाँ एक ओर देश की रक्षा के लिए यहाँ के वीरों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया वहीं दूसरी ओर मानवता के नाम पर होने वाले अमानवीय कृत्यों के विरुद्ध शंखनाद करने वाले भी इस मिट्टी में उत्पन्न हुए जिनकी साधना आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रही है ।
इसी वीर प्रसविनी रत्नगर्भा मेवाड़ भूमि के अन्तर्गत उदयपुर राज्य भी था जो आज राजस्थान का एक भाग है । उदयपुर जिला मुख्यालय है और झीलों की नगरी तथा अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण न केवल भारतवर्ष में वरन् विश्व में प्रसिद्ध है । इसी उदयपुर जिले में देलवाड़ा नामक एक सुन्दर कस्बा है । देलवाड़ा में एक कोठारी परिवार अपनी कीर्तिमयी गौरव गाथा के कारण प्रसिद्ध और लोकप्रिय रहा है । कोठारी परिवार की जानकारी प्रस्तुत करने के पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि संक्षिप्त रूप से उनके वंश और गोत्र की जानकारी कर लें ।
वंश और गोत्र - यह परिवार ओसवाल वंशीय था । ओसवाल वंश की उत्पत्ति मारवाड़ के
१२१
द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
ॐ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
Jain Education International
www.jainelibrary.org