Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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(५) महासती एजाजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के शिशोदे ग्राम निवासी भेरुलाल जी की धर्मपत्नी कत्थूबाई की कुक्षि से हुआ था । आपका विवाह वारी (मेवाड़) में हुआ और वहीं दीक्षा भी हई । इनकी कोई शिष्या नहीं है। यह परम्परा यहीं तक है।
__महासती नवलाजी की द्वितीय शिष्या गुमनाजी थीं। उनकी शिष्या परम्पराओं में विदुषी महासती आनन्दकुंवरजी हुईं। उनकी अनेक शिष्याओं में से एक बालब्रह्मचारिणी अभयकँवरजी हुई। आपका जन्म वि० सं० १९५२ फाल्गुन कृष्णा १२ मंगलवार को राजवी के बाटेला गांव (मेवाड़) में हुआ। आपने अपनी माताजी हेमकुंवरजी के साथ महासती आनन्दकुंवरजी के सान्निध्य में वि० सं० १९५० मृगशिर शुक्ला १३ को पाली-मारवाड़ में दीक्षा ग्रहण की । आपकी प्रवचन शैली आकर्षक थी। आप भीम में स्थिरवास रहीं और वि० सं० २०३३ के माघ मास में संथारे सहित आपका स्वर्गवास हुआ।
आपकी दो शिष्याएँ महासती बदामकुँवरजी तथा महासती जसकुवरजी हुईं। महासती नवलाजी की तृतीय शिष्या केसरकुवरजी थीं। उनकी शिष्या छगनकुवरजी हुई।
महासती छगनकुवरजी--आप कुशलगढ़ के सन्निकट ग्राम केलवाड़े की निवासिनी थीं। आपका पाणिग्रहण लघुवय में ही हो गया था। कुछ समय पश्चात् पति का देहावसान हो गया। महासती गुलाबक़ वरजी के प्रवचन से वैराग्य हुआ और दीक्षा ग्रहण कर ली। आपका ससुर पक्ष मूर्तिपूजक आम्नाय के प्रति आकर्षित था । आपकी अनेक शिष्याएँ हुईं। वि० सं० १९६५ में संथारे के साथ उदयपुर में आपका स्वर्गवास हुआ।
महासती ज्ञानकुंवरजी-आप महासती श्री छगनकुवरजी की शिष्या थीं। आपका जन्म वि० सं० १९०५ में जम्मड़ गांव में हुआ था। आपका विवाह बम्बोरा निवासी शिवलाल जी के साथ हुआ था। आपने वि० सं० १६५० में महासती छगनकुंवरजी के पास जालोट में दीक्षा ग्रहण की । आपके पुत्र हजारीमल ने भी वि० सं० १९५० ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी के दिन समदड़ी में दीक्षा ग्रहण की और मुनि नाम ताराचन्द जी म० रखा गया। वि० सं० १९८७ में उदयपुर में संथारे सहित आपका स्वर्गवास हुआ।
___ महासती फूलकुवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के अन्तर्गत दुलावतों के गुड़े के निवासी भागचन्दजी की पत्नी चुन्नीबाई की कुक्षि से वि० सं० १९२१ में हुआ। लघुवय में आपका विवाह तिरपाल में हुआ। पति के देहान्त के बाद सत्तरह वर्ष की आयु में महासती छगनकुँवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आप तीक्ष्ण बुद्धि थीं। आपको अनेक शास्त्र कंठस्थ थे। आपकी प्रवचन शैली मधुर थी। आपकी सात शिष्याएँ (१) महासती माणककुबर (२) महासती धूलकुगर (३) महासती आनन्दकुगर (४) महासती लाभकुगर (५) महासती सोहनकुनर (६) महासती प्रेमकुगर (७) महासती मोहनकुगर हुईं। आप बारह दिन के संथारे के साथ स्वर्ग सिधारी ।
महासती माणककुवर-आपका जन्म उदयपुर राज्य के कानोड़ ग्राम में वि० सं० १९१० में हुआ । आपकी प्रकृति सरल, सरस थी। सेवा-भावना भी अत्यधिक थी। ७५ वर्ष की आयु में वि० सं० १९८५ के आसोज में आपका उदयपुर स्वर्गवास हुआ।
महासती धूलकुवर-आपका जन्म उदयपुर राज्य के मादड़ा ग्राम निवासी पन्नालालजी चौधरी की धर्मपत्नी नाथीबाई की कुक्षि से वि. सं. १९३५ माघ कृष्णा अमावस्या को हुआ था। तेरह वर्ष की आयु में वास निवासी चिमनलालजी ओरडिया के साथ आपका विवाह हुआ। कुछ समय बाद पति का
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द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ