Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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शत-शत प्रणाम
के प्रकाशन करने के सकारात्मक प्रयत्न जारी हैं।
श्रद्धय महासती जी जैसा नाम वैसा ही गुण वाली -श्रीचन्द डोसी
कहावत चरितार्थ करती हुयी समाज को ऊँचा (अध्यक्ष, मेडता श्रावक संघ) उठाने में, मार्ग भूले हुए पथिकों को सत्य मार्ग बतभगवान महावीर ने ४ प्रकार के तीर्थ प्ररूपित लाते हुए दान दया के शुभ कार्य कराते हुए हजारों किये हैं-साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका । हजारों को सप्रेरणाएँ प्रदान की हैं।। वर्षों से आज भी यह तीर्थ भगवान महावीर के आपकी वाणी में जो प्रभावशाली हृदय को बताये गये त्याग मार्ग पर चलता आया है और छूने वाली शक्ति रही हैं, उससे भक्तबन्धु आपकी आज भी स्थान-स्थान पर पूज्य मुनिराजों के श्रावक वाणी से आकर्षित होकर अपने जीवन को सत्य की संघों द्वारा चातुर्मास कराये जाते हैं। हमारे श्रावक ओर अग्रसर करके सफलता को प्राप्त कर रहे हैं। संघ का परम सौभाग्य रहा कि २०४१ में पूज्या आपकी आत्मा तो सफल है ही, अभिनन्दन की इस महासती जी का चातुर्मास प्राप्त हुआ, उस चातु- पुनीत वेला पर मैं अन्तर् हृदय से यही मंगल मास में दान-शील-तप-भाव की अपूर्व प्रभावना हुई। कामना कर रहा हूँ कि आप सदा स्वस्थता को यह सब आपकी ओजस्वी मधुर वाणी का प्रताप प्राप्त करते हुए समाज को राह बतलाते रहें, भूलेथा, आपकी प्रवचन कला मन-मोहक है, उसमें भटके प्राणियों को भगवान महावीर के मार्ग की तात्विक ज्ञान के साथ ही जीवन जीने की कला का ओर प्रेरित करते रहें, अन्त में मैं अपनी ओर से, भी विश्लेषण होता है। जीवन व्यवहार के अनेक जैन श्रावक संघ कपासन, अखिल भारतीय जैन पहलुओं पर महासती जी प्रकाश डालती हैं जिससे दिवाकर संगठन समिति, स्थानकवासी जैन कांफस जीवन में सुख और शान्ति का संचार होता है। दिल्ली आदि सभी की ओर से श्रद्धा सुमन समर्पित आपका मधुर व्यवहार चुम्बक की तरह हर व्यक्ति कर रहा हूँ। को आकषित करता है।
कोटि-कोटि वन्दन दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस सुनहरे अवसर पर
___-कन्हैयालाल गौड़, उज्जैन मैं अपनी ओर से अपने परिवार व समाज की ओर
वे सविचार को नित जीवन में गति देती. से आपके श्री चरणों में कोटिशः वन्दन करता हुआ पावन दृष्टि लिये जोवन से उलझो रहती, यही शासनेश प्रभु महावीर से प्रार्थना करता हूँ कि आप चिरायु हों और जन-जन के मन में स्नेह
पथ करती सबका प्रशस्त, रखती हृदय विशाल, सद्भाव सत्य अहिंसा की सरिता प्रवाहित करते
हो मगंलमय जीवन उनका रहे यशस्वी भाल ।
है जीवन दिव्य-प्रकाश युक्त देता नूतन संदेश,
0 पाकर दर्शन उनका पूरा हो जाता जीवनका उद्देश्य, श्रद्धा सुमन
गागर में सागर भरने का,जिनमें है साहस औ क्षमता,
ऐसा ही परम-विदुषी के कारण उज्जवल भारत देश । नायुलाल चण्डालिया, कपासन उनमें-सागर-सी गहराई, देख उसे मानवता हर्षायी, . परम श्रद्धय मधुर एवं प्रेरणादायक प्रवचन मैं-अकिंचन माटी का लघुकण करता शत-शत वन्दन, र भूषण विदूषी महासती श्री कुसूमवती जी म० की ज्ञात से अज्ञात की और ही हैजीवन का परम-लक्ष्य, दीक्षा स्वर्णजयन्ती के उपलक्ष्य में समाज द्वारा दीक्षा स्वर्ण-जयन्ती पर है, कोटि-कोटि अभिनन्दन । साध्वी जी के श्रद्धा सुमन के रूप में अभिनन्दन ग्रंथ
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
। साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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