Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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जो भौतिकवाद के युग में भी तप त्याग के पावन प्रतीक हैं। आज भी जैन शासन में अनेक प्रभावशालो, तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी सन्तसतियां हैं ।
साध्वीरत्न श्री कुसुमवतीजी इसी प्रकार की एक प्रतिभा सम्पन्न साध्वी हैं । आप में सेवा के, त्याग के, जप के अनेक गुण हैं । आप जहाँ भी पधारी हैं, वहाँ सम्प एवं संगठन की सौरभ फैलाई है ।
विहार की दृष्टि से भी आपने भारत के विभिन्न अंचलों में हजारों मीलों की पदयात्रा कर लाखों हृदयों को धर्म के निर्मल सरोवर में स्नान कराया है । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन अवसर पर मैं अपनी ओर से व तारक गुरु जैन ग्रन्थालय के समस्त सदस्यों की ओर से आपका हार्दिक वन्दन अभिनन्दन करता हूँ व जिनशासन देव से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप दीर्घायु हों ।
यथानाम तथागुण
परमादरणीया विदुषी साध्वीरत्न श्री कुसुमवतीजी म. उस चौथे पुष्प के सदृश हैं जो यथानाम तथागुण के धारक हैं, आप आकृति व प्रकृति दोनों दृष्टि से सुन्दर हैं ।
जैसे लोहा पारस का स्पर्श पाकर स्वर्ण बन प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंना
जाता है उसी प्रकार कुसंस्कारों में पड़ा मानव सन्त सतिजन के संसर्ग से अपने जीवन को स्वर्णवत् बना देते हैं ।
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महासती श्री कुसुमवतीजी म. की कृपा हमारे परिवार पर लम्बे समय से रही है, साथ हो मदनगंज श्रावक संघ पर आपकी विशेष अनुकम्पा रही है । जब भी श्रावक संघ आपकी सेवा में चातुर्मास की प्रार्थना को लेकर पहुँचा, आपने उदारतापूर्वक अपना व अपनी शिष्याओं का चातुर्मास दिया ।
आपका जीवन विविध गुणों से सम्पन्न हैं, विद्या, विनय, विवेक, सरलता, नम्रता, सेवा, शिक्षा आदि कई विशेषताएं मैंने आप में पाई हैं । आप परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. एवं उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी म. की विद्वान साध्वी है ।
- चाँदमल मेहता, मदनगंज
स्थानांग सूत्र में ४ प्रकार के पुष्पों का वर्णन है। कितने ही पुष्प दिखने में सुन्दर दिखलाई देते हैं। पर उनमें सुगन्ध - सौरभ का अभाव होता कितने हो पुष्प देखने में सुन्दर नहीं होते हुए भी उनमें सुगन्ध मौजूद रहती है और कितने ही पुष्पों में न तो सुगन्ध होती है और न देखने में ही सुन्दर होते हैं, इसके विपरीत कुछ पुष्प ऐसे भी होते हैं जो देखने में भी सुन्दर व सुगन्ध से भी भरपूर होते हैं ।
दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस पावन अवसर पर मैं अपनी व अपने परिवार की ओर से आपका हार्दिक अभिनन्दन वन्दन करता हुआ यही मंगल कामनाएँ प्रेषित करता हूँ कि आप सदा स्वस्थ व दीर्घायु रहकर समाज को मार्ग-दर्शन प्रदान करते रहें ।
हार्दिक अभिनन्दन
- प्रमोद चन्द्र जैन
हमें याद है दिल्ली चांदनी चौक का वह चातुमांस काल जब आप हमारे संघ की विनती स्वीकार कर जयपुर से उग्र विहार कर दिल्ली पधारीं ! आपने पूरे ४ मास तक तीर्थंकर भगवान महावीर की ओजस्वी वाणी से सभी को लाभान्वित किया । आपकी चारित्रनिष्ठा पर समस्त श्री संघको गौरव है । हम वीर प्रभु से यही मंगल कामना करते हैं कि आप जिनशासन का नाम रोशन करते हुए हम मुमुक्षु प्राणियों को जिन-मार्ग पर चलते रहने का प्रतिबोधन देती रहें ।
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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