Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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विलक्षण प्रतिभा की धनी
प्रेरणा स्रोत -चुन्नीलाल धर्मावत, उदयपुर
-खुमानसिंह काग्रेचा, सिंघाड़ा (कोषाध्यक्ष : तारक गुरु जैन ग्रन्थालय)
भारत की पावन भूमि अनन्त काल से त्याग परमादरणीया महासती श्री कुसुमवती जी म० व तप की स्थली रही है । श्रमण संस्कृति का प्रतिस्थानकवासी जैन समाज की एक प्रतिभा सम्पन्न निधित्व करने वाले अनेक महापरुष स
वाले अनेक महापुरुष समय-समय | AL साध्वीरत्न हैं। आपका अध्ययन विशाल एवं पर यहाँ होते रहे हैं जिन्होंने अहिंसा, सत्य, अपरि
चिन्तन गहरा है। वर्षों से समाज सेवा के कार्य में ग्रह, संयम, क्षमा आदि का प्रचार-प्रसार किया। लगे रहने के कारण मैं साध्वी जी म० के अति उनकी पावन वाणी से हजारों हजार का आत्मनिकट रहा हूँ। कई बार वर्ष में दशनों का लाभ उद्धार हुआ है। महापुरुषों अथवा महासतियों के भी प्राप्त होता है । उदयपुर में एक स्थानक भवन जीवन-चरित्र की यह विशेषता रही है कि उनके की आवश्यकता थी । उस समय आप अजमेर चातु- उपदेशों को श्रवण कर सम्पूर्ण मानव जाति का र्मास हेतु विराजमान थीं। सेठ सम्पतमल जी लोढा मस्तक गौरव से ऊँचा उठता है । विनय और श्रद्धा पाठ का भव्य भवन उदयपुर में था, पूज्या महासतीजी की से सिर झुक जाता है। प्रेरणा से वह भवन हमें मिला जो आज श्री तारक हमारा यह सम्पूर्ण शेरा वाकल व झालावाड़ गुरु जन ग्रन्थालय के नाम से सुविख्यात है।
प्रान्त पूज्य गुरुदेव के प्रति सदा से ही आस्थावान ____ आपके जीवन में सरलता है, सहजता है, समा- रहा है । पूजनीया महासती श्री कुसुमवती जी म° जोत्थान की मंगल भावना सदा आपके दिल में से मेरा लम्बे समय से परिचय रहा है, प्रायः प्रतिसमाई हुई रहती है। गहन अध्ययन होने के बाव- वर्ष आपके दर्शनों और प्रवचनों का लाभ मिलता जूद भी नम्रता का गुण आप में विशेष रूप में है, मैं साधिकार कह व लिख सकता हूँ कि आपका विद्यमान है । आप उदयपुर की पावन पुण्य भूमि जीवन अन्तर् बाहर से सरल व सहज है । जो भी में जन्मी, और सद्गुरुणी श्री सोहनकुवर जी म० आपके सम्पर्क में एक बार पहुँचता है वह प्रभावित । के सान्निध्य को पाकर आपने बाल्यकाल में ही हुए बिना नहीं रह सकता, आपकी मधुर व ओजसंयम धारण किया । आप जैसी विदुषी साध्वी पर पूर्ण वाणी का उसके हृदय में असर होता है। समाज को गौरव है।
दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस पावन अवसर पर मैं ____ दीक्षा स्वर्ण जयन्ती की इस पावन बेला पर मैं अपनी ओर से सम्पूर्ण प्रान की ओसवाल समाज ३५ अपनी ओर से एवं श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, की ओर से एवं वर्धमान जैन स्वाध्याय संघ सायरा ) श्री अमर जैन साहित्य संस्थान व अमर जैन की ओर से शतशः वन्दन अभिनन्दन करता हुआ ?
स्वाध्याय भवन उदयपुर के समस्त सदस्यों की आपकी दीर्घायु की मंगल कामना करता हूँ । IB ओर से शुभकामनाएँ समर्पित करता हुआ वीतराग
देव से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप चिरायु रह-0 कर हमें सदा मार्गदर्शन प्रदान करते रहें ।
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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