Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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डा० श्रीरंजन सूरिदेव, पटना
आस्था महासती आर्या कुसुमवती जी का सारस्वत अभि
-जगन्नाथ विश्व नन्दन विशिष्ट दृष्टि से यदि समग्र साध्वी-समाज का समादर है, तो सर्वसामान्यता के ख्याल से समस्त संकल्प ही सुनहरे नए कल का रूप है। नारी-समाज का अभिवन्दन है। अर्हत्कृपा से उन्हें सत्कर्म ही सृजन नये मंगल का रूप है . जो ज्ञान-गरिमा, वैदुष्य-वैभव एवं एक सन्नारी के
मेहनत तो रंग लाती है चट्टान तोड़िये योग्य सभी गुणधर्म प्राप्त हैं, उनका उपयोग वह
पावन पसीना ही तो गंगाजल का रूप है समाज के उन्नयन में अहर्निश करती रहती हैं। उनका तो एकमात्र सिद्धान्त है : 'तदेव ननुपाण्डित्यं
बढ़ते ही रहिए रात-दिन प्रतिज्ञा ठानकर
प्रत्येक चरणचिह्न कहीं मंजिल का रूप है यत्संसारात् समुद्धरेत् ।' अवश्य ही, महासाध्वी
जिसने भी चभन को सहा वो ही महक गया कुसुमवती जी अपने पाण्डित्य को लोकहित एवं समाजोद्धार के लिए अकृपण भाव से वितरित करती
दलदल में मुस्कराये वो 'कुसुम' का रूप है रहती हैं। पर के दुःख का निवारण ही उनका धर्म है। दर्द का उपचार है खुशियां बिखेरना वह यही मानती हैं कि 'परस्साअदुक्खकरणं धम्मो।'
सिखलाये प्रीत-प्यार वो गजल का रूप है ____ मैं जगजागरण में सदा निरत रहने वाली महामहिमामयी 'अध्यात्मयोगिनी' के प्रति अपनी विनम्र वन्दना निवेदित करता हूँ। द्वषादिदोषरहितां विदुषीं करुणामयीम् ।
मंगल-मनीषा वन्दे महासतीं दिव्यां लोकजागरणे रताम् ॥ ॐ
-अजीत नागोरी डूंगला रामचन्द्र द्विवेदी, जयपुर परम साध्वी कुसुमवती जी अपने वैदुष्य, उत्तम
दीक्षा जयन्ती की बहार है साधना, प्रवचन कौशल, आध्यात्मिक उत्कर्ष तथा
नमन हमारा शत बार है जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये सुविख्यात हैं।
माता सोहन की ये दुलारी है भगवान् महावीर द्वारा चतुर्विध संघ की स्थापना
पिता गणेश की ये प्यारी है का ही यह सुफल है कि जैनसाधु ही नहीं अपितु उदयपुर सुखकार है, लिया जहाँ पे अवतार है - साध्वीगण भी युगों से जैन आदर्श को व्यवहार का इनकी वाणी में अमृत बरसे है रूप देता आ रहा है। तथापि उनके अवदान को
इनको पाकर तो हम हरसे हैं अधिक रेखांकित नहीं किया गया है । यह भारतीय शासन के ये श्रृंगार हैं, जन-जन के आधार हैं 738 समाज की परम्परा दोषपूर्ण है। वस्तुतः साध्वी
इनके चरणों में जो भी आता है समाज का उतना ही महत्त्वपूर्ण कृतित्व और व्यक्तित्व
जीवन में आनन्द वो ही पाता है रहा है जितना कि साधु-गण का। परम विदुषी, सभी को इनसे प्यार है, ये भी करते उपकार हैं | साध्वीरत्न कुसुमवती जी का अभिनन्दन न केवल
दीक्षा जयन्ती इनकी आई है उनके वैयक्तिक गुणों का यशोगान होगा अपितु वह
रग-रग में सबके खुशियाँ छाई हैं साध्वी-परम्परा का भी अभिवन्दन होगा। यह आवश्यक कर्तव्य था जिसे पूरा करने के लिये अभिनन्दन
जियो तुम वर्ष हजार ये ही हमारे उदगार हैं | ग्रंथ के संयोजक एवं संपादक बधाई के पात्र हैं । )
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 38 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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