Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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एक महान जीवन गौरव रही है। धर्म, समाज, संघ, परिवार में नारी
नारायणी के रूप में प्रतिष्ठित रही है। -महासती श्री पुष्पवती जी
श्रया सद्गरुणी जी श्री सोहन कुवर जी म. सर्वज्ञ सर्वदर्शी श्रमण महावीर ने अपने पावन
का जीवन त्याग, तपस्या, सयम सेवा का एक ऐसा
आलोक स्तम्भ था जिसमें पवित्रता और प्रशम रस । प्रवचन में यह वज्र आघोष किया कि जितना पुरुष
की किरणें विकीर्ण होती थीं। वे युग-युग तक आध्यात्मिक समुत्कर्ष कर सकता है उतना ही नारी
मानव जीवन को ऊर्ध्वगामिता का पावन सन्देश भी कर सकती है। उन्होंने चतुर्विध संघ की संस्था
सुनाती रहीं। उन्हीं के चरणारविन्दों में मैंने तथा पना की । उसमें दो संघ नारी से सम्बन्धित हैं। यह
ज्येष्ठ गुरु बहिन कुसुमवतीजी ने आहती दीक्षा ग्रहण एक ऐसी मिशाल है जो अन्यत्र ढूंढ़ने पर भी नहीं
की। उन्हीं के नेश्राय में रहकर ज्ञान-ध्यान की मिल सकती।
आराधना की। आज जो कुछ भी है उसी सद्गुरुणी __नारी शक्ति का अक्षय स्रोत है। वह चन्द्रकान्त का आशीर्वाद का ही सुफल है। मणि की तरह अपनी दिव्य किरणों से जन-जन को ।
__महासती कुसुमवती जी मेरी गुरु वहिन रही पथ-प्रदर्शन करती है। अतीत के वे स्वर्ण पृष्ठ इस हैं। उन्होंने मेरे से पूर्व दीक्षा ग्रहण की। साथ ही बात के साक्ष्य हैं कि बाह्मी, सुन्दरी की सुरीली स्वर हमारा परस्पर अत्यधिक स्नेह रहा और वर्षों तक लहरियों ने बाहुबली को जाग्रत किया। राजीमति साथ में हमने संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी, जैन दर्शन और के ओजस्वी व तेजस्वी वचनों ने रथनेमि को प्रबुद्ध
नाम का प्रबुद्ध अन्य दर्शनों का अध्ययन किया। अध्ययन करने किया।
पर भी आप में ज्ञान का अहंकार नहीं है। कुशल __ कमलावती के चिंतन ने राजा इक्षकार को प्रवचन की होने पर भी आपमें सरलता-सहृदयता सत्पथ पर आरूढ़ किया। याकिनी महत्तरा के उदबोधन ने आचार्य हरिभद्र को सत्य के कठोर कंटका
मुझे यह जानकर अपार आल्हाद हुआ कि मेरी कीर्ण मार्ग पर आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया।
गुरु बहिन का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रत्नावली के उपालम्भ ने तुलसीदास को सन्त
__रहा है। जिस ग्रन्थ में उनका व्यक्तित्व और कृतित्व
र तुलसी बनाया। इस प्रकार सहस्राधिक उदाहरण हैं ।
ह उजागर होगा। मेरी यही मंगल कामना है कि वे जिसमें नारी अपनी उदारता सहृदयता स्नेह
ह सदा-सर्वदा निस्पृह निरपेक्ष भाव से साधना के पावन और सद्भावना से जन-जन के मन में दिव्य तेज का
_पथ पर निरन्तर अप्रमत्त भाव से बढ़ती रहें, और । संचार करती रही है।
अपने ज्ञानादि सद्गुणों की सौरभ दिग् दिगन्त में __ चाहे क्रान्ति हो, चाहे शान्ति हो दोनों ही स्थि- फैलाती रहें। वे चिरंजीवी बनें । और उनके तियों में व्यक्ति भ्रांति के चक्कर में न उलझे अतः जीवन सुमन की लुभावनी महक जन-जन को वह अपना शानदार दायित्व का निर्वाह करती रही लुभाती रहे। है। नारी के विविध रूप रहे हैं। वह कभी ममतामयी माँ रही है तो कभी सहज स्नेह प्रदान करने वाली भगिनी रही है। तो कभी श्रद्धा स्निग्ध सद्भावना को प्रदान करने वाली कन्या रही है। तो कभी सर्वस्व समर्पित करने वाली सहधर्मिणी भी
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
0: साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ