Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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'मेरी लेखनी में बल कहाँ जो,
__ एक पल्लवित-सुरभित कुसुम ! आपके गुण प्रस्तुत करूं। अनन्त गणों की धारक गरुणी,
--डॉ० प्रभाकुमारी "कुसुम' आप जैसा ही विकास करू॥"
-डॉ० सुशील जैन "शशि" । महापुरुषों एवं सन्नारियों का जीवन-चरित्र न स्थानांग सूत्र में 'कुसुम' चार प्रकार से प्रतितो कागजों में ही लिखा जा सकता है, और न उनके पादित हुए हैं। प्रथम दो प्रकार रंग एवं सुगन्ध में गुणों का अंकन साधारण लेखनी द्वारा ही किया जा परस्पर भिन्नता लिये हुए हैं। तृतीय दोनों से शून्य सकता है । उनमें तप, त्याग और संयम की इतनी एवं अन्तिम दोनों गुणों से युक्त है। कुसुम वही गहराई होती है कि साधारण मसि द्वारा तो वह चित्ताकर्षक होता है, जो रंग एवं सुगन्ध एक साथ वणित ही नहीं हो सकती है। उनके वैराग्य, ज्ञान, लिए होता है। विनय, सेवा, विवेक एवं धर्म के प्रति आस्था की परम-विदुषी, महासती श्री कुसुमवतीजी महा
त्रिम पैमानों से तो किसी भी रूप राज के जीवन पर यदि हम एक अवलोकन दृष्टि र में मापा नहीं जा सकता, अतः मैं तो यही विचार डालते हैं तो हमें उनके संयमी जीवन कुसुम में कर रह जाती हूँ कि
आराधना का रंग और साधना की सुगन्ध दोनों "सब धरती कागज बने,
ही अनुभूत होती है। लेखनी सब वन राय।
____ आपश्री के प्रथम-दर्शन का सुअवसर हमें लगसात समुद्र की मसि बने,
भग १६ वर्ष पूर्व प्राप्त हुआ था। भावों की सरलता ___ गुरु गुण लिखा न जाय ॥"
के साथ आपकी वाणी भी उतनी ही सरल है । आप मैं तो दीक्षा-स्वर्ण जयन्ती के शुभ अवसर पर
. अपनी प्रत्येक बात सरल एवं मधुर शब्दों में प्रस्तुत
करते हैं, जिससे श्रोता स्वतः प्रभावित हो जाता आपश्री के चरण सरोजों में श्रद्धा-सुमन समर्पित १ करते हुए आपके दीर्घ जीवन की शुभ कामना
. है। भगवान महावीर के अहिंसा, सत्य, अस्तेय,
ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रहादि सिद्धान्तों का यथाशक्य करती हूँ । श्री गुरुणीजी ! आप चिरकाल तक हमें .
प्राणी मात्र में विकसित हो यही लक्ष्य बनाकर आप आशीर्वाद प्रदान करती रहें, एवं आपके द्वारा धर्मोद्योत होता रहे । इन्हीं शुभ कामनाओं के
सदैव प्रयत्नशील हैं। सहित ।
आप अपने संयमी, जीवन, साधना के ५२ वर्ष 卐-0-9
पूर्ण कर रहे हैं। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस पावन
प्रसंग पर हमारी हार्दिक अभिलाषा है-'आपके जहा जुन्नाई कट्ठाई हव्ववाहो पमत्थइ संयम, साधना, कुसुम की सुवास दीर्घ समय तक एवं अत्तसमाहीए अणिहे । जन-मानस में परिव्याप्त रहे । आपकी मृदुवाणी से
-आचारांग १/४/३ समाज को नई दिशा, नई जागृति मिलती रहे। 19 जिस प्रकार अग्नि सूखे पुराने काठ को भस्म आप ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना कर डालती है, उसी प्रकार अप्रमत्त मुनि ध्यान करते हुए जिनशासन की प्रभावना करें। आप समाधि में लीन होकर कर्म-दल को भस्म कर दीर्घायु बनें, स्वस्थ रहें, यही आपके अभिनन्दन डालता है।
प्रसंग पर शुभकामनाएँ ! 卐-.
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
D साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ