Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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___ --कुअध्यवसाय को छोड़कर सुअध्यवसाय में रमण करना ही श्रेष्ठ है। कुअध्यवसाय चतुर्गति
संसार में परिभ्रमण कराता है । जबकि सुअध्यवसाय चतुर्गति संसार से पार कराता है। अतः
अच्छे विचारों में चित्त लगाना ही श्रेष्ठ है । --सुमन विकसित, पुष्पित, पल्लवित होकर दुनिया को सुगन्ध देता है। उनके दिलो दिमाग को
ताजगी पहुंचाता है। ठीक ऐसे ही जिनशासन में सन्त-सती वृन्द सभी जीवों के प्रति जिन
वाणी रूप सुगंध को पहुँचाते हुए आत्मशान्ति की प्रेरणा देते हैं।। -ममता त्यागना बहुत ही मुश्किल है, जहाँ ममता मूर्छा निकल गई, वहां संसार मन से निकल गया, जहां संसार मन से निकल गया, वहां राग द्वष नहीं रहता। राग-द्वेष से रहित व्यक्ति सरलता से संसार से पार हो जाता है। वंदन करना नम्रता का लक्षण हैं । जहां नम्रता है वहां सभी गुणों का निवास हो जाता है। सभी गुण स्वतः आ जाते हैं, तो दुर्गण टिक नहीं सकते हैं। -तीन बातों को जो ध्यान में रखता है, वह कभी भी अशान्ति प्राप्त नहीं कर सकता वे ये हैं
कम खाना, गम खाना, नम जाना। -जीवन एक अमूल्य मणि है यदि यह हाथ से निकल गई तो पुनः पछताने के सिवाए कुछ हाथ
नहीं लगेगा। -महान गुणों की धारिका, अध्यात्मयोगिनी बाल ब्रह्मचारिणी उपर्युक्त सभी गुणों से सुशोभित महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. जिनशासन को अधिकाधिक दिपावें, दीर्घायु हों इसी हादिक इच्छा के साथ वंदन-अभिनंदन स्वीकार हो ।
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सद्गुणों का आज अर्चन आओ हम भी गुनगुनाएँ
-साध्वी गरिमा एम० ए० का आज कुछ कहता पवन है
गगन भी बहका सा लगता सुरभि से महका चमन है
जगत भी चहका सा लगता 3) आज कुछ गाती दिशाएँ
हम भी आओ मुस्करायें आओ हम भी गुनगुनाएँ
आओ हम भी गुनगुनायें विहग भी अविराम स्वर से
सद्गुणों का आज अर्चन गा रहे अपने अधर से
झूमती हरदिल की धड़कन गरिमामय कुछ-कुछ कथायें
दीप श्रद्धा के चढ़ायें आओ हम भी गुनगुनायें
आओ हम भी गुनगुनायें स्वर्ण जयन्ती का है मेला, 'कुसूम अभिनन्दन' की वेला शीश चरणों में झुकायें, आओ हम भी गुनगुनायें
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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