Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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आराध्यस्वरू
विशिष्ट-प्रतिभा का एवं प्रबल पुरुषार्थ का ज्वलन्त -साध्वी अनुपमा 'शकुन' जीवन्त प्रतीक हैं । ___भारतवर्ष के विविध अंचलों में राजस्थान का
आप तीर्थस्वरूपा हैं, आपके जीवन प्रयाग पर भी अपना गौरवपूर्ण स्थान है। इस प्रान्त में मेवाड़
ज्ञान की गंगा, दर्शन की यमुना, चारित्र की सरको अपनी महिमा और गरिमा है जिसे शब्दबद्ध कर
स्वती इन तीनों का अपूर्व संगम हुआ है। अतएव पाना सचमुच में कठिन है । मेवाड़ का वीरता और
आप प्रयाग-तीर्थ की भांति आकर्षण का केन्द्र हैं। शक्ति सम्पन्नता की दृष्टि से स्वर्णिम इतिहास है।
आप जन-मानस के पाप-पंक प्रक्षालन का पुण्यस्थल ___ जिनशासन के निर्मल गगन में प्रकाशमानतारिका साध्वीरत्न श्री कुसुमवती जी के जीवन में
तीर्थंकर प्रभु महावीर के चार संघ है उनमें संयम पालन की वीरता और आत्मशक्ति की सम्प
श्रमणी संघ भी अपनी अलौकिक महत्ता को लिए न्नता, मणि-कांचन सहयोग हुआ है।
हुए है । यह संघ एक वाटिका के समान है उसमें
अनेक श्रमणी सुमन अपनी सौरभ से महक रहे हैं। ___ आपका जन्म नाम 'नजर' है। नजर का अर्थ परम-पूज्या जी का जीवन सुमन श्रमणी वाटिका में है-दृष्टि, आप अपने नाम के रूप-अनुरूप बाल्य- अपना अनुपम, अलौकिक, अदभुत, अप्रतिम, काल में ही अन्तर्-दृष्टि की दिव्यता को लिए हुए अपरिहार्य स्थान रखता है। हैं। इसलिये आप लघुवय में अन्तर-जगत की प्रशस्त यात्रा पथ पर अ
__ आपका नाम कुसुम है, जिसका अर्थ फूल है । ___त्याग और वैराग्य की ज्योतिर्मयी प्रतिमा, .
यह केवड़े का नहीं किन्तु गुलाब का है । आपके
जीवन उपवन में गुलाब के फूल की भांति ज्ञान की संयम और समता की भव्यमूर्ति परमाराध्य श्रमणी
सौरभ महक रही है। रत्न श्री सोहनकुँवर जी की अन्तर्मुखी दृष्टि आप पर केन्द्रित हुई। फलस्वरूप आप उनकी प्रधान- आपका प्रवचन और चिन्तन, अपार, अनन्त, शिष्या बनीं और उन्होंने आपका नाम महासती महासागर की भांति गम्भीर है। अतः आपके कुसुमवती रखा।
प्रवचन एवं चिन्तन की गहराई में सभाषितों के आपने गुरुवर्या द्वारा प्रदत्त नाम को न केवल दिव्यरत्न, भव्य-आभा से प्रकाशमान है। जो भी नाम निक्षेप से सिद्ध किया अपितु संयम-साधना आपके श्री चरणों में उपस्थित होता है वह
और ज्ञान-आराधना के पावन क्षेत्र में नित्य-निर- दिव्यरत्नों को पाकर न केवल प्रभावित होता है, न्तर विकास किया। जिससे आपने अपने नाम को अपितु लाभान्वित एवं गौरवान्वित होता है। भाव निक्षेप की दृष्टि से भी चरितार्थ किया। अनन्त असीम आकाश-मण्डल में सूर्य और चन्द्र __ परमपूज्या साध्वी रत्न श्री गुरुणी जी ने नव- अपना अखण्ड, अस्तित्व बनाये हुए है। सूर्य | वर्ष की लघुवय में बहिर्जगत से हटकर अन्तर्जगत में तेजस्विता का प्रतीक है, तथा चन्द्र शीतलता का प्रवेश किया। नव का अंक अखण्ड है अतः आपने द्योतक है । इन दोनों में निज-निज गुण का एक दीक्षित जीवन से अखण्ड-रूपेण सर्वतोमुखी विकास दूसरे में सर्वथा अभाव है। पर आपके जीवन में यात्रा प्रारम्भ कर दी। विकास के स्वणिम सोपान शीतलता और तेजस्विता का युग-पत् सद्भाव है - पर आरोहण करते हुए एक ऐसे उच्च-स्थान पर अतः आप सूर्य और चन्द्र इन दोनों से बढ़कर हैं। प्रतिष्ठित हुई जो आपके अप्रमत्त जीवन का, यही आपके जीवन की विलक्षण बिशेषता है।
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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