Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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एक महान जीवन गौरव
हृदयोद्गार -महासती किरणप्रभा
- महासती प्रिय दर्शना ___ जीवन तो सभी प्राणी जीते हैं पर जीने की शब्दों की एक सीमा है। वे अन्तर्हृदय के र कला सभी प्राणियों में नहीं होती। वे कूकर और असीम को व्यक्त करने में कभी सक्षम नहीं होते। शकर की तरह जीवन जीकर अपना जीवन बर्बाद असीम भावों को ससीम शब्दावली कभी व्यक्त करते हैं। जीवन जीना उन्हीं का सार्थक है जो नहीं कर पाती। तथापि हृदयाकाश में उमड़तेअपने आपको खपाता हो। दुर्गुणों को जीतकर घुमड़ते भावों को व्यक्त करने का साधन केवल मात्र अपने जीवन को महान बनाता हो।
भाषा ही है । भाषा के रथ पर बैठकर ही भावों परम विदुषी साध्वी रत्न कुसमवती जी म० की यात्रा प्रारम्भ होती है। किसी भी विशिष्ट का जीवन एक विशिष्ट जीवन है। जिनके जीवन व्यक्ति के सम्बन्ध में लिखना कठिन ही नहीं, में त्याग और वैराग्य की सुगन्ध है। स्वयं कष्ट कठिनतर है । सहन कर दूसरों को प्रेरणा प्रदान करती हैं। परम विदुषी साध्वीरत्न कुसुमवती जी एक अपनी निर्मल वाणी से प्रसुप्त जीवन में अभिनव विलक्षण प्रतिभा की धनी श्रमणी हैं। मेरे सद्चेतना का संचार करती हैं। मैंने अनेकों वार गुरुणी जी पुष्पवती जी की वे ज्येष्ठ गुरु बहिन हैं। आपके दर्शन किये हैं । सद्गुरुणी श्री पुष्पवती जी अतः बहुत ही निकटता से उन्हें देखने के अवसर म० के साथ । मदनगंज-किशनगढ़ में साथ में वर्षा- जीवन में अनेकों बार आये हैं। और जब भी आये : वास करने का भी अवसर भी मिला । मैंने जब भी हैं तब उनके मधुर व्यवहार से मैं प्रभावित हुई । आपको देखा तब आपके चेहरे पर मधुर मुस्कान हैं। उन्होंने कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजअठखेलियाँ करती हई पाई। कभी भी उनके चेहरे
इपाइ । कभी भी उनके चहर स्थान, मध्य-प्रदेश की यात्रा कर जन-जन को पर क्रोध या तनाव व झुलझुलाहट की कुटिल प्रेरणा प्रदान की, जहाँ भी गयी वहाँ जन-मानस रेखाएँ नहीं देखीं । हाँ, अपनी सुशिष्याओं के प्रति में आस्था संचार किया। आत्मकल्याण के साथ | भी आप में वात्सल्य का निर्मल झरना प्रवाहित उन्होंने अनेक जनकल्याणकारी कार्य भी किये हैं। होते हुए देखा है। आपकी प्रवचन कला चित्ता
मैं हृदय से महासती कुसुमवती जी के अभिकर्षक है। उसमें चिन्तन-मनन और अनुभवों का
नन्दन का स्वागत करती हैं। जो अभिनन्दनीय त्रिवेणी संगम है । वाणी में मधुरता होने के कारण
होते हैं उनका सहज अभिनन्दन होता ही है। वह सहज ग्राह्य है। __मैं अपनी अपार श्रद्धा महासती जी के श्री
卐 . चरणों में समर्पित करते हए यह मंगल कामना
जो वाणी से सुन्दर व मधुर बोलता है, करती है कि आपका यशस्वी जीवन संघ के लिए
कर्म से सदा शुभ आचरण करता है, वह प्रेरणास्पद रहे।
व्यक्ति समय पर बरसने वाले मेघ की भांति सबको प्रिय लगता है।
-ऋषिभाषित ३३/४ .)
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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