Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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और विश्व का कण-कण उनका सदैव ऋणी है, एवं शासनेश प्रभु से आपके स्वास्थ्य तथा दीर्घायु की 5 ऋणी रहेगा।
मंगल-कामना करती हुई दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पार ऐसी ही कोटि में महान साधिका दिव्य त्याग- पुनात अवसर पर शत-शत अभिनन्दन और भाव । मौत, सरलात्मा, ज्ञाननिधि, करुणावत्सल. तपोधनी. मरा आमनन्दन । महान साधिका श्री कुसुमवती जी महाराज हैं। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती की पुण्य बेला पर, आपश्री जी संयम में मेरु के समान अडिग, अचल,
यही कामना करती हूँ। स्थिर हैं, जिस प्रकार आँधी, तूफान आदि आने
तुम जिओ हजारों साल, पर भी वह चलायमान नहीं होता है, वह स्थिर होता है, उसी प्रकार आप भी अनेक परीषह उपसर्ग
यही भावना भाती हूँ। आने पर संयम-साधना में निष्कम्प तथा अविचल हैं । संयम तो आपके रोम-रोम में समाया हुआ है। ___ बाल्यावस्था में मुझे दिल्ली चाँदनी चौक में अनेक बार आपके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । किन्तु आज भी मेरे स्मृति-फ्टल पर अंकित
जैन साध्वी जयश्री है कि आपका प्रतिभासम्पन्न एवं तप से आलोकित चमचमाता हुआ, वह दिव्य आनन बड़ा ही जीवन चन्द्र से भी शीतल है, जिसका चरित्र क्षीर
जिसका हृदय कुसुम से भी कोमल है, जिसका शान्तप्रिय है । और आपके मुखमण्डल पर भीनी- से भी उज्ज्वल है, ऐसे परम ज्ञान क्रिया के धारक भीनी मुस्कराहट छाई रहती है। आप बड़ ही जैन जगत की उज्ज्वल तारिका महासती श्रीकसमशान्त वीर-धीर-गम्भीर तथा प्रकृति से ही, बच्चों से नदी
वतीजी म. हमारे स्थानकवासी जैन समाज के एक लेकर बुड्ढे-बुजुर्गों के साथ एक ही जैसा प्रेमपूर्वक
ज्योतिर्मय नक्षत्र हैं। आपका जीवन सागर से भी वार्तालाप किया करते हैं ।
अधिक गहन है, पृथ्वी से भी अधिक धैर्यवान है। जैसे कमल सूर्य की ओर ही मुंह किये रहता सुमेरु पर्वत के समान अडोल है, अकम्प है, आकाश है, इसी तरह आपश्री सदैव अपने इष्टदेव प्रभु की से भी अधिक विशाल है। स्वाध्याय में लीन रहते हैं।
जिसने एक क्षण के लिए भी संयम स्वीकार 2 आप महान आत्मा के किन-किन गुणों को उद्- कर लिया हो तो भी वह धन्य बन जाता है तो भाषित करू, आपके जीवन के गुणों की माला तो जिसने संयमसाधना के ५० से भी अधिक वर्ष । इस प्रकार गुथी हुई है, जिसका कोई ओर-छोर ही सम्पन्न कर लिए हों उन्हें जितना भी धन्यवाद नहीं है, जिधर से भी देखो, जिधर से पकड़ो सर्वत्र अर्पण किया जाए उतना ही कम है। आपने अपनी गुण ही गुण दृष्टिगोचर होते हैं।
मातेश्वरी श्री कैलाशकुवर जी के संग संयम शत-शत अभिनन्दन
स्वीकार कर जिनशासन की जो प्रभावना की है।
वह हम सभी साधिकाओं के लिए प्रेरणास्पद है । ____ आपश्री जी संयम-यात्रा के ५२वें वर्ष में मंगल प्रवेश कर चुके हैं। आपकी बहुमुखी साधना से मैं श्रद्धान्वित हूँ, व आपके गौरवमय, प्रेरणाप्रद निर्मल साधनामयी जीवन का हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ,
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
20 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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