Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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शत-शत वन्दन अभिनन्दन
समन्वय है, १२ वर्ष की लघुवय में संसार की असा
रता समझकर आपने संयम के महापथ पर कदम --साध्वी मुक्तिप्रभा बढ़ाये हैं, संयम ग्रहण कर आपश्री ने संस्कृत, प्राकृत, (सुशिष्या महासती श्री सिद्धकुवरजी म.) हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं का गहन अध्ययन !
किया, आपकी प्रवचन शैली ओजस्वी व तेजस्वी श्रमण संस्कृति की गौरवशाली परम्परा में जो है। स्थान पुरुषवर्ग का है वही स्थान नारी वर्ग का भी इस अभिनन्दन की पावन पुण्य वेला पर मैं रहा है । पुरुषों की भाँति नारियों ने भी यहां इति- अन्तर् हृदय से यही मंगल कामना करती हूँ कि हास बनाया है । पुरुषों की भाँति नारियों का नाम आप दीर्घायु बनकर जिनशासन की गौरव गरिमा भी सदा सम्मान के साथ याद किया जाता है, जिस में चार चाँद लगाएँ । श्रद्धा के साथ राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध का स्मरण किया जाता है उसी श्रद्धा के साथ चन्दना, सीता, द्रौपदी, सुलसा आदि का स्मरण किया जाता है ।
साधना की ज्योतिर्मय मूति जिनशासन की प्रभावना में जितना योगदान
-साध्वी प्रकाशवती श्रमण वर्ग का रहा है उतना श्रमणी वर्ग का भी है । श्रमणीवर्ग ने जिनशासन की गरिमा को अभि
परम विदुषी साध्वीरत्न कुसुमवती जी म. का वृद्ध किया है, उसी पावन पुनीत श्रमणी परम्परा जीवन निरन्तर ज्ञान-ध्यान-सेवा-सत्कर्म में चलने में यथानाम तथागूण परम विदूषी, सरलता की वाला जीवन है । आपका जीवन उस बहुमूल्य हीरे || साकार प्रतिभा परमादरणीया श्री कसमवतीजी का की तरह है जो अपने मुंह से अपनी प्रशंसा नहीं नाम आदर के साथ लिया जा सकता है। नाम के करता-हीरा मुख से कब कहे लाख हमारा मोल ।
अनुरूप ही आप में सद्गुणों की सौरभ है। कुसूम आपका हृदय सरल सरस है, मन में कहीं पर भी न कहते हैं-फूल को, जिस प्रकार फूल अपनी भीनी- दुराव-छिपाव नहीं, जितने भाव सुन्दर हैं उतनी
भीनी महक से सारे वातावरण को सरभित कर वाणा भी सुन्दर है। देता है, स्वयं भी सुगन्धित होकर महक को मुक्तमन आपका जन्म राजस्थान की वीरभूमि मेवाड़ में I से दूसरों को लुटाता है, उसी प्रकार आप भी ज्ञान हुआ, आप उस वीरांगना की भाँति हैं जो वीरभूमि ITS रूपी महक से सुवासित हैं और दूसरों को भी सुवा- में युद्ध के नगाड़ों को श्रवण कर घबराती नहीं हैं | .सित कर रहे हैं।
अपित दुगने वेग से झझती हैं। उसी प्रकार आप भी
साधना काल में आए कष्टों में सदा आगे बढती मुझे भी आपश्री के दर्शनों का सौभाग्य मिला,
रही हैं, श्रमण भगवान महावीर की वाणी आपके मैंने पाया आप एक मधुर स्वभाबी मिलनसार
जीवन में आदर्श बन चुकी है-अप्पाण भयं न ! प्रकृति के धनी हैं, आप एक अच्छी पढ़ी-लिखी
दसए-अपने को कभी भयभीत न होने दो। सुलझे विचारों की धनी हैं, छोटों के प्रति आपके
___अध्ययन की दृष्टि से भी आपने संस्कृत, प्राकृत, ॐ हृदय में अपार स्नेह सद्भावना है, सचमुच आप हिन्दी आदि भाषा का गहन अध्ययन किया है। एक वात्सल्य की मूर्ति हैं।
अनेक परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। ज्ञान के साथ-साथ आप एक ख्यातिप्राप्त साध्वी हैं, आपके जीवन आपमें ध्यान की व जप की रुचि भी अत्यधिक रही में सरलता, सादगी और सहनशीलता का अद्भुत है।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 0 8 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ dered Forprivate a personalise only
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