Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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आपका शिष्या परिवार भी योग्य है। मेरा कण पौंछता है, आँधियाँ भी आती हैं तो उसके IKES विगत २५ वर्षों से आप से सम्पर्क रहा है क्योंकि मार्ग के कांटों को उड़ा ले जाती हैं। मेरे दोनों सुपुत्र पण्डित श्री रमेश मुनि जी, उप- दैवी जीवन के सद् लक्षण मानव देहधारी प्राणी प्रवर्तक श्री राजेन्द्र मुनि जी ने श्रद्धेय उपाध्याय को यथार्थ मानव का गौरव प्रदान करते हैं, न श्री पुष्कर मुनि जी म० एवं उपाचार्य श्री देवेन्द्र केवल तन से ही, वह मन से भी मानव होकर एक मनि जी म. द्वारा दीक्षित हैं इसी कारण से विशिष्ट दिव्यता का अधिकारी पात्र बन जाता है, इन २५ वर्षों से सम्पर्क बना हुआ है । अभिनन्दन की विश्व बन्धुत्व की महत् धारणाओं का वह न केवल इस पावन वेला पर मैं अपनी ओर से और गुरुणी चिंतक रह जाता है, अपितु अपने जीवन द्वारा प्रवरा श्री नान कुँवर जी म., श्रद्ध या श्री हेमवती प्रस्तुत करता है, कि मुग्ध सामान्य जन जीवन की जी म की ओर से यही हार्दिक मंगल कामना करतीं सार्थकता है, सफलता है। हूँ कि हे महासाध्वी ! चत्वारि तव वर्धन्ति आयुर्विद्या आध्यात्मिक जीवन यशोबलम्-आपके जीवन में आयु-विद्या-यश एवं अपरिमित ज्ञानालोक से जगमगाता जीवन बल में सदा अभिवृद्धि होती रहे।
आध्यात्मिक स्तरीय जीवन है जिसमें सम्यग्ज्ञान की लौ प्रचण्ड प्रकाश को विकीर्ण कर स्वानुकुल आच
रण हेतु न केवल प्रेरणा देती है वरन् इस मार्ग के शासनप्रभाविका
सभी व्यवधान तिमिरों को निर्मूल कर देती है। US
यही आध्यात्मिक जोवन की आधारभूत विशेषता है। एक -साध्वी सत्यप्रभा
आध्यात्मिक जीवन एक मंजूषा है जो रत्नत्रय ॥ भारत के ऋषि-महर्षियों ने जीवन को तीन
की जगमगाहट से सदा ज्योतिर्मय रहती है । सम्यभागों में विभक्त किया है-आसुरी जीवन, दैवी
रज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र की यह त्रिवेणी
गंगा-यमुना-सरस्वती के समान आध्यात्मिक जीवन जीवन, आध्यात्मिक जीवन ।
को तीर्थराज प्रयाग की ही भाँति न केवल गरिमा ___आसुरी जीवन में भोग-विलास, राग-द्वेष व पवित्रता देती है, वह तो उद्धारक रूप का की प्रधानता रहती है। जो जीवन में ईट, डिक एण्ड निर्माण भी करती है। बी मेरी-खाओ, पीओ, मौज करो का समर्थक ऐसे अति उच्च, श्लाघ्य एवं गरिमामय जीवन रहा है, इस प्रकार आसुरी जीवन की बुनियाद है के धनी ही तो हैं परमादरणीया महासती जी श्री अनन्त कामनाएं, वासनाएँ, सांसारिकताएँ, भौतिक ,
कुसुमवती जी। सुखाभिलाषाएं, आदि आदि जो वस्तुतः मृग मरी
मुझे महासती जी के दर्शनों का सौभाग्य समचिकाएँ हैं, और मनुष्य को भटकाती रहती हैं। दडी ग्राम में प्राप्त हुआ। महासती जी का जीवन ___आसुरी जीवन के विपरीत-दैवी जीवन है हिमालय से भी ऊँचा और सागर से भी गहरा है । जिसमें सत्य, स्नेह की मधर सवास बनी रहती है.
र सुवास बना रहता है। आप सूर्य के समान तेजस्वी हैं तो शशि के समान | जहाँ अहिंसा का आलोक हो, प्रेम का प्रदीप हो, निर्मल. स्वच्छ व शीतल भी हैं। प्रकाण्ड विद्वत्ता के करुणा का कमनीय कुंज हो, संयम का शस्त्र हो, धनी होते हुए भी स्वभावतः विनम्र हैं, आपके इस
आत्मानुशासन का आधार हो, मानवोचित समस्त अभिनन्दन की पावन बेला पर मैं शतशः वन्दन । सहजधर्मों और गुणों का समुच्चय हो, इस जीवन में, नमन करती हुई अन्तर्ह दय से यही मंगल कामना
आत्मा का दीपक उसके मार्ग को आलोकित करता करती हूँ कि आप दीर्घायु बन हमें सदा मार्गदर्शन है, शीतल पवन का आंचल उसके श्रमजन्य स्वेद- प्रदान करती रहें।
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
3 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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