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इसी प्रकार
'अंशुं दुहन्ति स्तनयन्तमक्षितं कवि कवयोऽपसो मनीषिणः ।१ तथा- उदीरय कवितमं कवीनामुनत्तमभि मध्वा · श्रुतेव ।२
इत्यादि मन्त्रों में सोम और सूर्य के अर्थों में कवि शब्द का प्रयोग हमा है। एतरेय ब्राह्मण में कवि का 'पितर'' और शतपथ में 'विद्वान्' अर्थ अभिप्रेत है किन्तु उपनिषदों में प्राय: कवि शब्द का प्रयोग ब्रह्म के लिए ही हुआ है । यथा--
स पर्यगाच्छुकमकायमवरणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम् ।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान व्यवधाच्छाश्वतीम्य: समाभ्यः । । यही ब्रह्म उत्तरकाल में प्रकृति-तत्त्वान्वेषी, सामाजिक नेता, विचारक ऋषि आदि विभिन्न स्तरों को पार करता हा प्रजापति के रूप में शब्दसृष्टि का यथेच्छ-विधाता कहलाया।
अपारे काव्यसंसारे कविरेव प्रजापतिः ।
यथाऽस्मै रोचते विश्वं तत्तथा परिवर्तते ॥ ऐसे कवि का कर्म ही 'काव्य' कहलाता है। कवि कभी अपने मानस-प्रत्यक्ष से और कभी जागतिक-प्रत्यक्ष से भावों को जब शब्ददेह प्रदान करता है तो उसे काव्य की संज्ञा दी जाती है। नैसगिक लावण्य से युक्त गद्य-मयी, पद्यमयी अथवा उभयरूप सङ्कलना की कोई एक इकाई 'काव्य' के रूप में जनमानस को आन्दोलित करती है, हठात् अपनी ओर आकृष्ट करती है और भावों के सरोवर में नहला कर एक अपूर्व आनन्द प्रदान करती है।
लौकिक काव्य का प्रारम्भिक स्वरूप केवल 'सूक्ति' तक ही सीमित था । तत्कालीन समाज गोष्ठियों में कवि के मुख से किसी अनूठी सूक्ति को सुनने के लिए उत्कण्ठित रहता था । गुप्त सम्राट् (समुद्रगुप्त) (३२० से ३७८ ई०) के प्रयाग के अभिलेख (३५० ई०) में कहा गया है कि
अध्येयः सूक्तमार्ग्यः कविमतिविभवोत्सारणं चापि काव्यं,
को नु स्याद् योऽस्य न स्याद् गुरगमति विदुषां ध्यानपात्रं य एकः ।। इसके अनुसार--सूक्तमार्ग की जिसकी सुभाषित-रचनाएँ पठनीय हैं और जिसका काव्य भी अच्छी सक्तियों के कारण अन्य कवियों के कल्पना विभव को उखाड़ देनेवाला है' इत्यादि कहते हुए सूक्ति को काव्य का तत्त्व व्यक्त किया है। राजशेखर ने भी कवि की वाणी-काव्य को सूक्तिधेनु कहा है
या दुग्धापि न दुग्धेव कविदोग्धभिरन्वहम् । हृदि नः सन्निधत्तां सा सुक्तिधेनुः सरस्वती ॥
-काव्यमीमांसां अ०३ १. ऋग्वेद ८।७२।६। २ वहीं ५।४२॥३॥ ३. ए व तेन पूर्वे प्रेतास्ते वै कवयः ।६।२०। ४. ये वै विद्वांसस्ते कवयः ७११४।४। ५. ईशावास्योपनिषद्, ८ । ६. साहित्यदर्पण, प्रथम परिच्छेद-विश्वनाथ । ७. कवेः कर्म स्मृतं काव्यम् । काव्यकौतुक-भट्टतौत