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१०३ [३०] टीका-विद्यारण्य
___ मैसूर की संस्कृत हस्तग्रन्थ सूची में इसके होने का उल्लेख के० के० में हुआ है। पृ० २८२ पर भी इसका सूचन है। [३१ ] टोका- राजानन्द
मद्रास कैटलॉग ११८२० में इसके उद्धरण दिये हैं तथा प्रौफंक्ट भाग २, २० ए० में इसका उल्लेख हुआ है। टीका का कोई नाम नहीं दिया गया है। [३२] तत्त्वबोधिनी-ले० प्रज्ञात
श्रीवत्सलाञ्छन द्वारा "प्रजातकर्तृकायास्तत्वबोधिन्याः" तथा "प्रधिकं तत्त्वबोधिन्यां द्रष्टव्यम्" इन बाक्यों से 'सारबोधिनो' में इस टीका का उल्लेख किया गया है। कुछ विद्वानों का कथन है कि-'भट्रोजी दीक्षित के शिष्य तथा संन्यास ग्रहण करने के पश्चात् श्रीवामनेन्द्र सरस्वती के शिष्य ज्ञानेन्द्रसरस्वती ने ही वैयाकरणसिद्धान्तकौमदी की 'तत्वबोधिनी' टीका के समान काव्यप्रकाश की यह 'तत्त्वबोधिनी' टीका लिखी है। इसका सूचन कविशेखर धीबद्रीनाथ झा ने अपनी भूमिका में पृ० १३ पर किया है। [३३ ] दर्पण
क० के० के अनुसार an BOR1 ३२ माफ १६१६-१८, २. माफ १६१७-१८) में इसका सूचन है। किन्तु डिस्क्रप्टिव कंटलाग में सूचन नहीं है । [ ३४ ] दीपिका
के० के० में इसका सूचन है और यह रिपोर्ट प्राफ राज० तथा सी० पाइ० पृ०६ पर अंकित है। [ ३५ ] द्योतन-बालकृष्ण
के० के० में सूचन करते हुए इसका उज्जैन की हस्तलिखित अन्तिम सूची ३५२ पर उल्लेख बताया है। यह प्रति प्रब वहाँ ५६२६ पर अंकित है तथा इसके कुल १५ पत्र ही वहाँ हैं । प्रारम्भ के पत्र १ से १०४ तक नहीं है। इसकी प्रतिलिपि राधाकृष्ण व्यास ने सं० १९१५ में की थी। [ ३६ ] दीपिनी-कृष्णकान्त विद्याविनोद
के. के. में इसका सूचन है। [ ३७ ] पदवृत्ति- नागराज केशव
प्रोफ़ेक्ट भाग १, पृ० १०१ बी. पर इसका निर्देश है। तथा किलहान सम्पादित हस्तलिखित ग्रन्थ सूची के आधार पर कैट० कैट० १०२ में सूचन हुआ है। [ ३८ ] बोधिनो
कै० के० में इसके बारे में कहा गया है कि 'लखनऊ म्यूजियम' में इसकी पाण्डुलिपि है। [ ३६ ] बुधमनोरञ्जिनी-मल्लारि लक्ष्मण शास्त्री
इसका प्रकाशन तेलुगु लिपि में मद्रास से १८९१ ई० में हुआ है।