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[४८ ] व्याख्या– यज्ञेश्वर यज्वन्
मद्रास कैटलाग १२८२१ में इसके उद्धरण दिए हैं। मद्रास गवर्नमेन्ट हस्त-सूची, खण्ड २२, पृ० २६२३ पर भी सूचना है। इसके प्रारम्भ तथा अन्त में इस प्रकार लिखा है
"स्त्रीणामदार: श्रीकान्तः श्रियं दिशतु मे प्रभुः। पस्याहुरीक्षरणमिदं विश्वं नगमसूक्तयः ॥ १॥ उपास्य विदुषो वृद्धान् यज्वा यज्ञेश्वराह्वयः । व्याख्या काव्यप्रकाशस्य विदधाति यथामात ॥२॥"
"इति यज्ञेश्वरविरचिते काव्यप्रकाशाख्याने दशम उल्लासः ।" [ ४६ ] श्लोकदीपिका- जनार्दन विबुध
इनके गुरु का नाम 'अनन्त' है। इन्होंने 'रघुवंश' तथा 'वृत्त-रत्नाकर' की भी टीकाएं लिखी हैं । कहीं इन्हें व्यास भी कहा है किन्तु डा० डे का मत है कि 'ये जयराम न्यायपञ्चानन के शिष्य, विट्ठल व्यास के पौत्र, बाबूजी व्यास के पुत्र, प्रसिद्ध लेखक जनार्दन व्यास से भिन्न हैं। इसका प्रोफेक्ट भाग १, १०१ बी, भाग २, १६ बी० (तथा १ स्टीन की रिपोर्ट ६१ में अपूर्ण) उल्लेख है। दे० पृ० १६०, सं० का० शा० का इति० भाग १ पृ० १६० । [ ५० ] सङ्केत- दामोदर (?)
० के० में इसका सूचन है । यह स्टीन ने अपनी रिपोर्ट में २६१ (D) 'उज्जन D P. ६५' का उल्लेख किया है।
किन्तु हमने स्वयं उज्जैन जाकर वहाँ के सिन्धिया प्राच्यविद्या-मन्दिर की प्रति निकलवा कर देखी है, जो कि प्राचार्य माणिक्यचन्द्र की 'सङ्कत' टीका ही है और वहाँ दामोदर रचित कोई टीका नहीं है। अतः यह भ्रम से ही लिखा गया है। [ ५१ ] सजीवनी
के० के० में यह सूचन है तथा विद्याचक्रवर्ती की 'सम्प्रदाय-प्रकाशिनी' में इसका उल्लेख होना बतलाया है । [ ५२ ] सारबोधिनी- भट्टाचार्य
के० के० में इसकी सूचना है । मण्डलिक लायब्रेरी, फरग्यूसन कालेज पूना की हस्तग्रन्थसूची में पृ० ७० पर भी इसका उल्लेख है।
[ ५३ ] साहित्यचन्द्र-नरसिंह (नसिंह) सूरि
ये तिम्माजी मन्त्री के पुत्र थे तथा इनके पितामह का नाम रंगप्रभु था। ये वेल्लमकोण्ड परिवार के थे। 'अड्यार लाइब्रेरी, मद्रास' की सूची में इसका अंकन है। का०प्र० की 'ऋजुवति टीका के लेखक भी ये ही हैं तथा पालवार १०४६ एक्स्ट्रा २१८ पर भी उल्लेख है। [ ५४ ] साहित्यचन्द्र
काव्यप्रकाश में आनेवाली कारिकाओं पर रचित यह टीका है, जिन्हें यहाँ भरत-विरचित कहा गया है। इस