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थी, किन्तु ये समाचार लेकर जो व्यक्ति प्राये थे उन्हें मुनिजी ने स्पष्ट बतला दिया था कि "मैं सदा धार्मिक पदवियों से भी दूर रहा हूँ, अतः अन्य पदवी के सम्बन्ध में मेरे विचार ही कैसे हो सकते हैं | मैंने तो जो मुझे उचित प्रतीत हुआ वैसा ही अपने कर्तव्य का पालन किया है। उसका इस रूप में प्रतिफल लेने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं हैं।" इतना होने पर भी भक्तजन उसके लिये प्राग्रह करने लगे थे, किन्तु मुनिश्री के द्वारा स्पष्ट शब्दों में निषेध करने पर वह बातचीत शान्त हो गई।
मापकी देशभक्ति और राष्ट्ररक्षात्मक प्रवृत्ति से माज भी सारा समाज प्रेरणा प्राप्त कर रहा है और अपनी राष्ट्रीय दृष्टि को मुखरित बना रहा है । अनन्य साहित्यस्रष्टा तथा कलाप्रेमी
मुनिजी की विशिष्ट प्रतिभा से साहित्य और कला के क्षेत्र में कई उपयोगी संस्थानों की स्थापना हुई है। अनेक प्रकार के समारोह तथा भव्य प्रदर्शनों की योजनाएं होती रही हैं तथा संस्कृति और कला के क्षेत्र में पू० मुनि जी विशिष्ट योगदान करते रहे हैं। आपके मार्गदर्शन में ही 'यशोमारती जैन प्रकाशन समिति' तथा 'जैन संस्कृति कलाकेन्द्र' जसी संस्थाएँ उत्तम सेवाकार्य कर रही हैं और इसके अन्तर्गत चित्रकला निदर्शन' नामक संस्था भी प्रगति के पथ पर पदार्पण कर अग्रसर हुई है।
गत वर्ष मुनिराज द्वारा लिखित संकलित और सम्पादित 'तीर्थकर भगवान श्री महावीर' नामक (गुजराती हिन्दी और अंग्रजी चित्र-परिचय के साथ चित्रमय जीवन को प्रस्तुत करने वाले) ग्रन्थ के प्रकाशन का सम्मान भी इस संस्था को प्राप्त हुमा है।
विगत एक दशक से और मुख्य रूप से गत पांच वर्षों से मुनिराज श्री ने विश्ववन्ध भगवान महावीर की शास्त्रीय जीवनकथा को ३५ सुन्दर चित्रों में अंकित करने के लिये भगीरथ पुरुषार्थ किया है। इन चित्रों का निर्माण करने के लिए आपने चित्रकार श्री गोकुलदास कापड़िया को बार-बार परामर्श दिया है, इन्हें भावनामय तथा सुन्दर बनाने के लिए अनेक प्रकार की प्रेरणाएँ दी हैं और उनका एक कलाकार के रूप में सम्मान रखकर उनसे कार्य लिया है।यह ग्रन्थ चिर-स्मरणीय बने इसके लिये प्रत्येक चित्र का परिचय इस प्रकार दिया है कि जिसमें भगवान श्री महावीर की सम्पूर्ण जीवन-कथा शृंखलाबद्ध रूप से आ जाए और उससे वाचक के मन पर भगवान का क्रमिक रेखाचित्र अंकित हो जाए । शास्त्रों का प्राधार लेकर संक्षिप्त शब्दों में यह परिचय तैयार करने का काम बहुत कठिन था, तथापि प्रापकी कुशाग्रबुद्धि और विद्वानों के साथ परामर्श से यह कार्य सफलता से पूर्ण हुआ। विशेष यह कि इस ग्रन्थ का सभी वाचन कर ज्ञान प्राप्त कर सकें इस दृष्टि से परिचयावली का हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद भी दिया गया है।
इस प्रकार चित्रों का परिचय तीनों भाषाओं में देते समय उसके प्रारम्भ में विविध विषय के कलापूर्ण पौर समाज के लिए प्रत्युपयोगी एक-एक शोभन चित्र भी दिये गये हैं, जो जैन संस्कृति, संगीत, योग, भारतीय ज्योतिष, लिपि तथा शिल्प-स्थापत्य का उद्बोधन करते हैं। तथा इस परिचय के नीचे एक-एक कलामय पट्टी देने की प्रापकी मग्रिम सूझ के कारण ग्रन्थ के सौन्दर्य में बड़ी अभिवृद्धि हुई है।
इस ग्रन्थ का अत्यन्त भव्य प्रकाशन समारोह दि.१६-६-७४ को 'बिरला मातुश्री सभागार' बम्बई में हुमा था, जिसमें साधु-साध्वी तथा अग्रगण्य नागरिकों की उपस्थिति स्मरणीय थी। इस अवसर पर महाराष्ट्र राज्य के शिक्षामन्त्री
१. इसमें गुजराती का हिन्दी अनुवाद इन पंक्तियों के लेखक ने किया है ।