Book Title: Kavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ १७० काव्य-प्रकाशः त्यर्थ इत्यन्ये । एवम् एककोदाहरणं त्वया दतं, क्वचिद् द्वितयवैशिष्टयात् क्वचिच्च त्रितयवैशिष्टयाद् व्यङ्यविशेषप्रतीतिरिति कथं, कथं च वक्त्रादिलक्षण्या लक्ष्यव्यङ्गययोर्व्यञ्जकत्वमवसेयमित्यत आहवक्त्रादीनामिति,द्विकादिभेदे इत्यस्य व्यञ्जकत्वमित्यनेनान्वयः, उदाहरणान्तरमन्विष्य ज्ञेयमित्यर्थः । तेन अत्ता एत्थेत्युदाहरणान्तरं सङ्गच्छते। वस्तुत एण्वेवोदाहरणेषु ज्ञेयमित्यर्थः । अइपिहुलमित्यादौ वक्तृबोद्धव्ययोविशेषात् तत इयामहेत्यादौ वाक्यप्रतिपाद्यतत्प्रेयसीरूपान्यसन्निधानवैशिष्टयादुक्तव्यङ्गयप्रतीतिरेवमन्यत्राप्यूह्यम् । लक्ष्यव्यङ्गययोश्च वैशिष्ट्यं प्रत्युदाहरणं प्रागहमवर्णयमेवेति ज्ञेयम्, यथा निराकाङ्क्षप्रतिपत्तये एकैकस्य पार्थक्येनोदाहरणं तथा द्विकादिभेदेऽप्यस्तीत्यपेक्षायाम् । "श्वश्रूरत्र शेते अत्राहं दिवस एव प्रलोकय । मा पथिक ! रात्र्यन्ध ! शय्यायामावयोः शयिष्ठाः ।। (अत्र) प्रथमार्धन मदीयशय्याभ्रमेण श्वश्रूशयने मा पतिष्यसि। रायन्धेत्यनेन यदि कश्चित् . शब्द की व्यजकता के निरूपण के बाद अर्थव्यजकता के निरूपण का अवसर प्राप्त था इसलिए भी यह सब लिखना और अलग-अलग उदाहरण देना आवश्यक था। "वक्त्रादीनां......भेदेन" की अवतरण संगति : इन उदाहरणों में आपने अलग-अलग वैशिष्ट्यों की अलग-अलग व्यञ्जकता दिखायी है और एक-एक का उदाहरण आपने दिया है; परन्तु कहीं दो वैशिष्ट्यों से और कहीं तीन वैशिष्ट्यों से व्यङ्गय विशेष की प्रतीति होती है; वह कैसे सम्भव है ? और वक्त्रादि की विलक्षणता से लक्ष्य और व्यङ्गय की व्यजकता को कैसे जानें ? इस जिज्ञासा की शान्ति के लिए लिखते हैं-"वक्त्रादीनाम्......भेदेन" । पूर्ववाक्य में "द्विकादिभेदे" इसका 'व्यजकत्वम्' इसके साथ अन्वय मानना चाहिए। इस तरह ग्रन्थकार बताते हैं कि वक्ता आदि के परस्पर संयोग से दो-दो या तीन तीन भेदों की (मिलित) व्यञ्जकता भी होती है। इन द्विक और त्रिक भेदों के उदाहरण (वाक्य से) खोज कर जानने चाहिए। इसी से "अत्ता एत्थ" इस उदाहरणान्तर की संगति बैठती है। वस्ततः इन्हीं उदाहरणों में दिक और त्रिक भेदों के उदाहरण भी जानने चाहिए। जैसे “अइ पिहल" इस उदाहरण में (जो वक्ता के वैशिष्ट्य में दिया गया है) वक्ता और बोद्धव्य दोनों का मिलित वैशिष्ट्य मिलता है, इसलिए यह उदाहरण 'द्विकवैशिष्ट्य' का हो सकता है। इसी तरह 'तइया मह' इस उदाहरण को जो यहाँ वाक्य वैशिष्ट्य-मूलक आर्थी व्यञ्जना के उदाहरण के रूप में आया है त्रिकभेद का भी उदाहरण समझना चाहिए, क्योंकि यहाँ (वाक्य वाच्य दोनों वैशिष्ट्य के साय उस प्रेयसीरूप अन्य (व्यक्ति) के सानिधान का एक तीसरा भी वैशिष्ट्य है, जो वाक्य के द्वारा प्रतिपादित हुआ है। इस तरह ऊह के द्वारा अन्य उदाहरणों में भी द्विक और त्रिक वैशिष्ट्य ढंढ़े जा सकते हैं। मैंने (नैयायिक टीकाकार ने) प्रत्येक उदाहरण में वाच्य की व्यजकता दर्शाते समय लक्ष्य और व्यङ्गय का वैशिष्टय पहले दिखाया ही है उसे वहीं से समझना चाहिए । “यही बात बताते हुए लिखते हैं "अनेन क्रमेण उदाहार्यम्" इस क्रम से लक्ष्य तथा व्यङ्गय अर्थों के व्यजकत्व के उदाहरण समझ लेने चाहिए "क्रम पहले ही समझाया गया है। जैसे निराकाङ्क्षत्व प्रतिपत्ति के लिए (जिज्ञासा शान्ति के लिए एक-एक का अलग-अलग उदाहरण दिया गया है वैसे द्विकादि भेद के भी उदाहरण हैं, इस सन्दर्भ में या अपेक्षा होने पर 'अत्ता एत्थ' "श्वश्रूरत्र" यह उदाहरण दिया जा सकता है। हे रतौंधी के मरीज पथिक, दिन में भली भांति देख लो, यहाँ मेरी सास सोती है, सोती क्या है वह तो मानों नींद में डूब जाती है (निमज्जति) और मैं यहाँ लेटती हूँ। रतौंधी के कारण रात में दिखाई न देने से कहीं मेरी शय्या पर न गिर पड़ना।

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340