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[ १८७ यता को पूर्णरूपेण सुरक्षित रखते हुए, विविध प्रकार के अनेक मूर्तिशिल्प मुनिजी ने तैयार करवाए हैं, इनमें कुछ तो ऐसे हैं कि जो जैन मूर्तिशिल्प के इतिहास में पहली बार ही तैयार हुए हैं । इन शिल्पों में जिनमूर्तियाँ, गुरुमूर्तियाँ, यक्षिणी तथा समोसरणरूप सिद्धचक्र आदि हैं। आज भी इस दिशा में कार्य चल रहा है तथा और भी अनूठे प्रकार के शिल्प तैयार होंगे, ऐसी सम्भावना है।
___ मुनिजी के शिल्पों को आधार मानकर अन्य मूर्ति-शिल्प गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के जैनमन्दिरों के लिए वहाँ के जैनसंघों ने तैयार करवाए हैं।
पूज्य मुनिजो द्वारा विगत १६ वर्षों से प्रारम्भ की गई अनेक अभिनव प्रवृत्तियों, पद्धतियों और प्रणालियों का अनुकरण अनेक स्थानों पर अपनाया गया है जो कि मुनिजी की समाजोपयोगी दृष्टि के प्रति आभारी है।
प्रचार के क्षेत्र में जैन भक्ति-साहित्य के प्रचार की दिशा में 'जैन संस्कृति कला केन्द्र' संस्था ने पू० मुनि श्री की प्रेरणा से नवकार-मन्त्र तथा चार शरण की प्रार्थना, स्तवन, सज्झाय, पद आदि की छह रेकर्ड तैयार करवाई हैं । अब भगवान् श्रीमहावीर के भक्तिगीतों से सम्बन्धित एल. पी. रेकर्ड तैयार हो रही है और भगवान् श्री महावीर के ३५ चित्रों की स्लाइड भी तैयार हो रही है।
भगवान् श्रीमहावीर देव की २५००वों निर्वाण शताब्दी के निमित्त से जैनों के घरों में जैनत्व टिका रहे, एतदर्थ प्रेरणात्मक, गृहोपयोगी, धार्मिक तथा दर्शनीय सामग्री तैयार हो, ऐसी अनेक व्यक्तियों को तैयार इच्छा होने से इस दिशा में भी वे प्रयत्नशील हैं।
धार्मिक यन्त्र-सामग्री ___ मुनिजी ने श्रेष्ठ और सुदृढ पद्धति पूर्वक उत्तम प्रकार के संशोधित सिद्धचक्र तथा ऋषिमण्डलयन्त्रों की त्रिरंगी, एकरंगी मुद्रित प्रतियाँ लेनेवालों की शक्ति और सुविधा को ध्यान में रखकर विविध प्राकारों में विविध रूप में तैयार करवाई हैं तथा जैनसंघ को आराधना की सुन्दर और मनोऽनुकूल कृतियाँ दी हैं । ये यन्त्र कागज पर, वस्त्र पर, ताम्र, एल्युमीनियम, सुवर्ण तथा चाँदी आदि धातुओं पर मोनाकारी से तैयार करवाए हैं। ये दोनों यन्त्र प्रायः तीस हजार की संख्या में तैयार हुए हैं। - पूज्य मुनिजी के पास अन्य अर्वाचीन कला-संग्रह के साथ हो विशिष्ट प्रकार का प्राचीन संग्रह भी है।
इस संग्रह को दर्शकगण देखकर प्रेरणा प्राप्त करें ऐसे एक संग्रहालय (म्यूजियम) की नितान्त आवश्यकता है। जैनसंघ इस दिशा में गम्भीरतापूर्वक सक्रियता से विचार करे यह अत्यावश्यक हो गया है । दानवीर, ट्रस्ट आदि इस दिशा में आगे आएँ, यही कामना है।
प्रकाशन समिति