Book Title: Kavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 338
________________ १८६ ] ६-विविध रंगों वाली डाक-टिकिटों से ही तैयार किए हुए भगवान् श्रीपार्श्वनाथ तथा श्रीहेमचन्द्राचार्य जी के चित्र। ७-भरत काम (गूंथन) में सपरिकर भगवान् पार्श्वनाथ आदि। . ८-रंगीन काँच पर सोने के पतरे द्वारा तैयार किया गया विविध प्राकृतियों का विशिष्ट संग्रह । ह-जम्बूद्वीप तथा अढ़ीद्वीप के स्केल के अनुसार ड्रेसिंग क्लाथ पर तैयार किए गए ५ फुट के नक्शे (सं. २००३) १० मिरर (बिल्लोरी) काच-ग्लासवर्क में तैयार कराए हुए चित्र । ११-जैन साधु प्रातःकाल से रात्रि शयन तक क्या क्या प्रवृत्ति करते हैं ? इससे सम्बद्ध दिनचर्या के तैयार किए जा रहे रंगीन ३५ चित्र। १२-प्रतिक्रमण और जिन-मन्दिर में होनेवाले विधि-अनुष्ठान आदि उपयोगी, आसन-मुद्राओं से सम्बन्धित पहली बार ही तैयार किया गया ४२ चित्रों का संग्रह । (यह प्रदर्शन और प्रचार के लिए भी उपयोगी है।) ___ १३-'पेपर कटिंग कला' पद्धति में पूर्णप्राय ‘भगवान् श्रीमहावीर' के ३० जीवन प्रसंगों का कलासम्पुट । (यह सम्पुट भी भविष्य में मुद्रित होगा।) १४-इनके अतिरिक्त मुख्यरूप से भगवान् श्री आदिनाथ, श्री शान्तिनाथ, श्रीनेमिनाथ और श्री पार्श्वनाथ इन चार तीर्थङ्करों के (और साथ ही साथ अवशिष्ट सभी तीर्थङ्करों के जीवन-प्रसङ्गों के) नए चित्र चित्रित करने का कार्य (द्वितीय चित्रसम्पुट की तैयारी के लिए) तीन वर्ष से चल रहा है। लगभग ३० से ४० चित्रों में यह कार्य पूर्ण होगा । भगवान् श्रीपार्श्वनाथ का जीवन तो चित्रित हो चुका है तथा भगवान् श्री आदिनाथ जी का जीवन-चित्रण चल रहा है। यह दूसरा चित्र-सम्पुट मुद्रण-कला की विशिष्ट-पद्धति से तैयार किया जाएगा। -भगवान् श्रीमहावीर के चित्रसम्पुट में कुछ प्रसंग शेष हैं वे भी तैयार किए जाएंगे अथवा तो पूरा महावीर-जीवन चित्रित करवाया जाएगा। १५-हाथी दांत, चन्दन, सुखड़, सीप, काष्ठ आदि के माध्यमों पर जिनमूर्तियां, गुरुमूर्तियाँ, यक्ष-यक्षिणी, देव-देवियों के कमल, बादाम डिब्बियाँ, काजू, इलायची, मुंगफली, मुंगफली के दाने, ___ खारेक-छुहारा, चावल के दाने तथा अन्य खाद्य पदार्थों के प्राकारों में तथा अन्य अनेक प्राकारों की वस्तुओं में पार्श्वनाथ जी, पद्मावती आदि देव-देवियों की प्रतिकृतियाँ बनाई गई हैं। तथा मुनिजी ने कला को प्रोत्साहन देने और जन-समाज कला के प्रति अनुरागी बने इस दृष्टि से अनेक जैनों के घर ऐसी वस्तुएँ पहुँचाई भी हैं। इसके लिए बम्बई के कलाकारों को भी आपने तैयार किया है, जिसके परिणामस्वरूप अनेक साधु, साध्वीजी, श्रावक और श्राविकाओं को मनोरम बादाम, कमल आदि वस्तुएँ सुलभता से प्राप्त हो सकती हैं । मुनि जी के पास इनका अच्छा संग्रह है। --बालकों के लिए भगवान् महावीर की सचित्र पुस्तक तैयार हो रही है। शिल्प-साहित्य १६-शिल्प-स्थापत्य में गहरी प्रीति और सूझ होने के कारण अपनी स्वतन्त्र कल्पना द्वारा शास्त्री

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