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द्वितीय उल्लासः
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प्रादिग्रहणात्
एहमेत्तत्थणिया एहमेत्तेहि प्राच्छिवत्त हि । एदहमेत्तावत्था एं।हमेत्तहिं दिअएहिं ।। [एतावन्मात्रस्तनिका एतावन्मात्राभ्यामक्षिपत्राभ्याम् ।
एतावन्मात्रावस्था एतावन्मात्रंदिवसः ॥ इत्यादावभिनयादयः। अतएव श्लेषप्रस्तावे वक्ष्यति 'काव्यमार्गे स्वरो न गण्यत' इतीति सुबुद्धिमिश्राः । एदहमेत्तेति ।
एतावन्मात्रस्तनिका एतावन्मात्राभ्यामक्षिपत्राभ्याम् ।।
एतावन्मात्रावस्था एतावन्मात्रदिवसः ॥१॥ _ अभिनयादय इति । अभिनयो हस्तक्रिया एतावन्मात्रस्तनीत्यत्राङ्गष्ठतर्जनीमध्यमाभिर्बदरा• कारप्रदर्शनेऽल्पस्तनीति भासते, हस्ताभ्यां घटाकारप्रदर्शने स्थूलस्तनीति, एतावन्मात्राभ्यामित्यत्रापि
तर्जन्यग्रप्रदर्शने सूक्ष्मचक्षुरिति, प्रसृत्यादिप्रदर्शने विपुलचक्षुरिति, अगुलीत्रयप्रदर्शने दिवसत्रयं पञ्चाङ्गुलीप्रदर्शने पञ्चदिनानि दशाङ्गुलीप्रदर्शने च दिनदशकं भासत इति भावः । अत एव तत्पदस्य
सुबुद्धि मिश्र का कथन है कि 'काव्यों में उदात्त, अनुदात्त और स्वरित में अर्थविशेष की नियामकता नहीं है, अगर वैसा मानें तो अनुरूप स्वर से किसी एक अर्थविशेष की ही प्रतीति होगी ऐसी स्थिति में श्लेष अलङ्कार का जहाँ कि एक शब्द के अनेक वाच्यार्थ माने गये हैं भङ्ग हो जायगा।' इसीलिए ग्रन्थकार श्लेष के प्रकरण में -लिखेंगे कि "काव्यमार्गे स्वरो न गण्यते" काव्य के मार्ग में स्वर नहीं गिना जाता है। अर्थात् उदात्त, अनुदात्त, स्वरित स्वरों (अर्थविशेष के नियन्त्रणरूप) का महत्त्व काव्यमार्ग में नहीं स्वीकार किया गया है।
कारिका में आदि शब्द से ग्राह्यतत्त्व हैं अभिनयादि । जैसेएतावन्मात्रस्तनिका एतावन्मात्राभ्यामक्षिपात्राभ्याम् । एतावन्मात्रावस्था एतावन्मात्रदिवसैः ॥ इस परिणाह के स्तनोंवाली, इतनी बड़ी आंखों से उपलक्षित वह तरुणी इतने दिनों में ऐसी हो गयी। यहां अभिनय आदि शब्द का एकार्थ में नियन्त्रण करते हैं।
अभिनय हस्त (अङ्ग) की विविध सङ्केतात्मक क्रिया (मुद्रा या चेष्टा) को कहते हैं। उससे यहाँ अर्थविशेष का ज्ञान हो जाता है। जैसे "इस परिणाह के स्तनोंवाली" इस शब्द के प्रयोग के साथ अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों के द्वारा बदरीफल के आकार के प्रदर्शन से 'अल्पस्तनी' इस अर्थ का भान होता है। यदि पूर्वोक्त शब्द के उच्चारण के साथ हाथों के द्वारा घड़े की आकृति का अभिनय किया जायगा तो 'घटस्तनी' इस अर्थ की प्रतीति होगी।
"एतावन्मात्राभ्यामक्षिपात्राभ्याम्" का अभिनय तर्जनी अगली के अग्रभाग से किया जाएगा तो नायिका छोटी-छोटी आँखोंवाली है, ऐसा माना जाएगा, यदि प्रसृति-फैली हुई अंगुली अथवा अञ्जलि आदि के साथ प्रदर्शन किया जायगा तो नायिका 'विशालनेत्रा' मानी जाएगी। "एतावन्मात्रदिवसः” का अभिनय तीन अंगुलियों से करने पर तीन दिनों की प्रतीति होगी, पञ्चांगुलियों या दशाङ्गुलियों के प्रदर्शन से क्रमशः पाँच या दस दिनों का भान होगा। इसीलिए एतत् या तत् सर्वनाम की भी अनेक वस्तुओं की उपस्थिति कराने के कारण से ही अनेकार्थता मानी जाती है, यह निबन्धाओं (वाक्य विन्यास के मर्मज्ञों) का कथन है।