Book Title: Kavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 262
________________ ११० काव्यप्रकाश 'गङ्गायां घोष' इत्यादौ ये पावनत्वादयो धर्मास्तटादौ प्रतीयन्ते न तत्र गङ्गादिशब्दाः सङ केतिताः। [सू० २५] हेत्वभावान्न लक्षणा ॥१५॥ मुख्यार्थबाधादित्रयं हेतुः । गङ्गाया-मित्यादि, तथा च पावनत्वादिप्रयोजनं न गङ्गापदाभिधाप्रतिपाद्यं गङ्गापदभिन्न पद] सङ्केतविषयत्वादित्येवमनुमानमिति भावः । हेत्वाभावादिति । अत्रापि पावनत्वादिकं न गङ्गापदनिष्ठलक्षणाप्रतिपाद्यं प्रकृतपदलक्षणाजन्यज्ञानसामग्रीरहितत्वादिति प्रयोगे तात्पर्यम्, एवं तात्पर्याख्यवृत्तिनिषेधस्योपसंहारात् पावनत्वादिकं न तात्पर्याख्यवृत्तिप्रतिपाद्यं गङ्गादिपदार्थसंसर्गभिन्नत्वादित्यपि बोध्यम् । अर्थात् गङ्गायां घोषः यहाँ तटादि में प्रतीत होनेवाले पावनत्वादि धर्म में गङ्गा शब्द संकेतित नहीं है इसलिए अभिधा शीतत्व-पावनत्वादि को नहीं बता सकती। अनुमान का प्रकार इस तरह होगा "पावनत्वादि प्रयोजनं न गङ्गापदाभिधाप्रतिपाद्यम् गङ्गापदभिन्नपदसङ्केतविषयत्वात्" पावनत्वादि प्रयोजन गङ्गापद की अभिधा से प्रतिपाद्य नहीं है, .. क्योंकि वह शीतत्वातिशय प्रयोजन गङ्गा पद से भिन्न पद के संकेत का विषय है। यहाँ यह कहना चाहिए कि गङ्गा पद के संकेत का विषय नहीं होने से वह अभिधा-प्रतिपाद्य नहीं हो सकता। प्रयोजन को लक्ष्यता का निराकरण लक्षणा के द्वारा भी शीतत्व-पावनत्वातिशय की प्रतीति नहीं हो सकती ॥१५॥ (१) मुख्यार्थ का बाध और उसके साथ-साथ (२) मुख्यार्थ से सम्बन्ध तथा (३) रूढि और प्रयोजन में से एक, ये तीनों लक्षणा के प्रयोजक निमित्त हैं। उनका यहाँ अभाव है। इसलिए लक्षणा भी नहीं हो सकती। यहाँ भी अनुमान किया जा सकता है कि पावनत्वादि गङ्गापदनिष्ठलक्षणाप्रतिपाद्य नहीं हो सकता; क्योंकि प्रकृत पद (गङ्गा पद) में लक्षणाजन्य ज्ञान के लिए अपेक्षित सामग्री (मुख्यार्थबाधादि हेतुत्रय) का अभाव है। इस तरह यहाँ 'हेत्वभावात्' का तात्पर्य है कि लक्षणों के प्रयोग में (उदाहरण में) हेतुओं का अभाव होने से (लक्षणा नहीं होगी)। इसी तरह तात्पर्याख्य वृत्ति के निषेध का भी उपसंहार में उल्लेख किया गया है। इसलिए यहां यह भी समझना चाहिए कि पावनत्वादि तात्पर्याख्यवृत्ति-प्रतिपाद्य नहीं है क्योंकि पावनत्वादि, गङ्गादि-पदार्थों के बीच भासित होनेवाले संसर्गों से भिन्न हैं। तात्पर्या वृत्ति वाक्यार्थ में भासित होनेवाले पदार्थ-संसर्ग को बताती है। पावनत्वादि पदार्थसंसर्ग नहीं है । इसलिए उसे तात्पर्या वृत्ति से बोध्य नहीं माना जा सकता । अभिधा मुख्यार्थ को, लक्षणा लक्ष्यार्थ को और तात्पर्या वाक्यार्थ-कुक्षि-प्रविष्ट पदार्थ-संसर्ग को बताकर सामर्थ्यहीन हो गयी है। इसलिए उनमें से कोई भी प्रयोजनवती लक्षणा के उदाहरणों में प्रतीत होनेवाले शीतत्व, पावनत्वादि फल को नहीं बता सकती। अतः फल की प्रतीति के लिए पूर्वोक्त व्यापारों से अतिरिक्त एक चतुर्थ व्यापार अवश्य स्वीकार करना चाहिए। लक्षणा के हेतुनों का प्रभाव "हेत्वभावात्" में प्रदर्शित हेतु की असिद्धि दिखाने के लिए सूत्र २६ को उद्धृत करते हैं-"लक्ष्यं न मुख्यं

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