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द्वितीय उल्लासः
तथा च[सू० २६] लक्ष्यं न मुख्यं नाप्यत्र बाधो योगः फलेन नो ।
न प्रयोजनमेतस्मिन् न च शब्दः स्खलद्गतिः ॥१६॥ यथा गङ गाशब्दः स्रोतसि सबाध इति तटं लक्षयति, तद्वद् यदि तटेऽपि सबाधः
हेत्वसिद्धिमुद्धरति
लक्ष्यं न मुख्यमिति । ननु लक्षितलक्षणानुरोधादत्राप्यर्थबाध एव लक्षणाबीजमस्त्वित्यत आहयोग इति ।
ननु तीराद्यर्थैः प्रयोजनस्य साक्षात् सम्बन्धाभावेऽपि प्रयोजनाश्रयसम्बन्धित्वं परम्परासम्बन्धोऽस्त्येवेत्यत आह-न प्रयोजनेति । ननु मुख्यार्थबाधादिकं विनैव लक्षणाऽस्त्वित्यत आह-न च शब्द इति । शब्दो लाक्षणिकशब्दः । मुख्यार्थबाधादिनरपेक्ष्येणार्थाबोधकत्वं स्खलद्गतित्वम् ।। नाप्यत्र" (सूत्र २६) तटरूप लक्ष्यार्थ मुख्यार्थ नहीं है, न उस अर्थ के ग्रहण में यहां कोई बाधा है, न उसका शीतत्वपावनत्वातिशय के साथ कोई सम्बन्ध है, न उस प्रयोजन को लक्ष्यार्थ मानने में कोई प्रयोजन है और न गङ्गा शब्द तट के समान प्रयोजन को प्रतिपादन करने में असमर्थ है । इसलिए लक्षणा प्रयोजन को नहीं बता सकती ॥१६॥
___ लक्षित-लक्षणा के अनुरोध से यहाँ (गङ्गायां घोषः में) भी अर्थबाध को ही लक्षणा का बीज मानेंगे तो क्या क्षति होगी, इसे बताते हुए लिखते हैं-'योगः' तट अर्थ का शीतत्वादि के साथ सम्बन्ध नहीं है । सम्बन्धाभाव से लक्षणा नहीं हो सकती, यह पूर्व ग्रन्थ का तात्पर्य है।
. यदि यह कहें कि 'तीरादि अर्थ के साथ प्रयोजन का साक्षात सम्बन्ध नहीं होने पर भी प्रयोजनाश्रय (शीतत्व-पावनत्वातिशय के आश्रय) घोष का सम्बन्ध तीरादि के साथ है ही, इसलिए प्रयोजनाश्रयसम्बन्धित्वरूप परम्परासम्बन्ध होने के कारण "फलेन नो योगः" यह नहीं कह सकते' तो ठीक है, इसी अरुचि को मनमें रखकर आगे लिखा गया है-"न प्रयोजनमेतस्मिन्" प्रयोजन को लक्ष्य तभी माना जा सकता है, जबकि प्रयोजमरूप लक्ष्यार्थ से और कोई प्रयोजन निकले, परन्तु प्रयोजन के लक्ष्य मानने में कोई प्रयोजन नहीं है। इसलिए प्रयोजन को लक्ष्यार्थ नहीं माना जा सकता।
मुख्यार्थबाधादि के बिना ही लक्षणा स्वीकार करने में क्या क्षति है; यह बताते हुए लिखते हैं-"न च शब्दः स्खलद्गतिः" । यहाँ शब्द का अर्थ है लाक्षणिक शब्द। ... मुख्यार्थ बाधादि की अपेक्षा के बिना अर्थ के बोध में असमर्थता ही स्खलद्गतित्व का लक्षण है। लाक्षणिक गङ्गादि शब्द, तट अर्थ के बोधन में स्खलद्गति है; क्योंकि वह उस (तट) अर्थ का मुख्यार्थबाघादि की अपेक्षा किये बिना बोध नहीं करा सकता इसलिए तट अर्थ में गङ्गा शब्द लाक्षणिक है; परन्तु गङ्गा शब्द शीतत्व-पावनत्वातिशयरूप प्रयोजन को बिना मुख्यार्थबाधादि की अपेक्षा किये ही व्यक्त कर सकता है। इसलिए गङ्गा शब्द तट अर्थ को बताने में स्खलद्गति है, बाधितार्थ है परन्तु शीतत्व-पावनत्वतिशयरूप प्रयोजन को बताने में स्खलद्गति नहीं है, बाधितार्थ नहीं है फिर लक्षणा कैसे होगी ? मुख्यार्थबाधादि होने पर वह तट को ही बोधित कर सकता है शीतत्वपावनत्वातिशय को नहीं; क्योंकि उस अर्थ के लिए वह स्खलद्गति नहीं है।